– उत्तराखंड महिला मंच के 30वें स्थापना दिवस पर महिलाओं से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा
देहरादून:उत्तराखंड महिला मंच का 30वां स्थापना दिवस बुधवार को नगर निगम ऑडिटोरियम में मनाया गया। इस मौके पर आयोजित सम्मेलन में महिला अधिकारों, महिलाओं पर होने वाले अपराध और घरेलू हिंसा, महिला कानून, नशे की बढ़ती प्रवृत्ति से महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभाव जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई।
इस मौके पर मंच की ओर से तैयार की गई पुस्तिका ‘उत्तराखंड का जनहितकारी भूकानून कैसा हो’ पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। विमोचन प्रसिद्ध पर्यावरवरणविद् डॉ. रवि चोपड़ा, वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत, सर्वोदय मंडल के बीजू नेगी, किसान सभा के सुरेन्द्र सिंह सजवान, जन विज्ञान के विजय भट्ट आदि ने किया। इससे पहले सतीश धौलाखंडी, जयदीप सकलानी और त्रिलोचन भट्ट ने जनगीत प्रस्तुत किया।
सम्मेलन के प्रथम सत्र में पुस्तिका के विमोचन के बाद वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने उत्तराखंड भूकानून पर मुख्य वक्ता के रूप में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि भूमि सिर्फ जमीन का कोई टुकड़ा नहीं होता, बल्कि यह जीवन का आधार होता है। उन्होंने उत्तराखंड राज्य के गठन से लेकर अब तक भूकानून में किये गये बदलावों पर चर्चा की और अफसोस जताया कि मौजूदा सरकार ने भूकानून में ऐसा संशोधन किया है, जो आम लोगों के लिए नुकसानदेह और धन्नासेठों को लाभ पहुंचाने वाला है।
पड़ोसी हिमाचल प्रदेश का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने अपनी जमीन बचा रखी है, जबकि उत्तराखंड की ज्यादातर जमीन धन्नासेठों ने खरीद ली है। श्री रावत ने हाल के वर्षों में सैकड़ों गांवों का नगर निकायों में शामिल किये जाने का एक बड़ी साजिश बताया। उन्होंने कहा कि नगर निकायों में शामिल होते ही गांवों की जमीन लैंड यूज चेंज सहित कई दूसरी बाध्यताओं से मुक्त हो जाती है।
सम्मेलन का दूसरे सत्र में अलग-अलग वक्ताओं ने महिलाओं से संबंधित मुद्दों का पर अपनी बात रखी इस सत्र की अध्यक्षता उत्तराखंड महिला मंच की तीन वयोवृद्ध सदस्य भुवनेश्वरी कठैत, पद्मा गुप्ता और दर्शनी पंत ने की। संचालन निर्मला बिष्ट ने किया। इस सत्र की शुरुआत मंच की अध्यक्ष कमला पंत ने महिलाओं की विभिन्न समस्याओं और उत्तराखंड महिला मंच द्वारा जन सरोकारों के लिए बीते 30 वर्षों में की संघर्ष यात्रा का विवरण दिया। चंद्रकला ने पिछले वर्ष की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
इस सत्र में गीता गैरोला ने महिला हिंसा पर बात रखी। उन्होंने कहा कि महिलाओं की उपेक्षा का दौर उसी दिन शुरू हो जाता है, जिस दिन बेटियों की तुलना में बेटों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। महिलाओं पर हिंसा मां के पेट में भी होती है।
उन्होंने सवाल किया गया 2011 कर जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 664 थी, तो फिर 116 लड़कियां कहां चली गई? उन्होंने कहा कि महिलाओं को लेकर सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियों से बाहर निकलने की जरूरत है।
एडवोकेट रजिया बेग ने महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को लेकर अपनी बात रखी और महिलाओं के लिए बनाये गये विभिन्न कानूनों के बारे में बताया। उन्होंने मुख्य रूप से घरेलू हिंसा और कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने के लिए बनाये गये कानूनों के बारे में जानकारी दी और कहा कि महिलाओं को कभी न कभी इन दोनों समस्याओं से गुजरना पड़ता है।
इसलिए हर महिला को इन कानूनों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले जमीन-जायदाद में महिलाओं का हक नहीं होता था, लेकिन अब पति की जायदाद पर आधी हिस्सेदारी पत्नी की होती है। महिला संबंधी अन्य कई कानूनों की भी उन्होंने जानकारी दी।
डॉ. शिवानी पांडे ने नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण महिलाओं पर पड़ रहे प्रभाव के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि नशा बेशक पुरुष करते हैं, लेकिन इससे सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि सरकार घर-घर नशा पहुंचाने में जुटी हुई है। नशा सरकार ने अपनी आमदनी का प्रमुख साधन बना दिया है। इससे छोटे-छोटे बच्चे भी नशे के आदी हो रहे हैं।
सरकार नशा बेचने को लेकर इतनी तत्पर है कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय और रान्य मार्गों पर शराब की दुकाने न खोलने का आदेश दिया तो सरकार ने राज्य मार्गों को जिला मार्ग घोषित कर दिया। डॉ. शिवानी पांडे ने यह भी कहा कि महिला सिर्फ शराब की नहीं बल्कि धर्म के नशे के कारण भी प्रभावित हो रही हैं। धर्म की राजनीति करने वालों के लिए महिलाएं आसानी निशाना बन गई हैं।
इंदु नौडियाल ने राजनीति में महिलाओं की स्थिति को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने माना कि पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण के बाद भी महिला सदस्यों का काम आमतौर पर परिवार के पुरुष देख रहे हैं, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इससे महिलाएं सीख भी रही हैं।
उन्होंने कुछ महिला ग्राम प्रधानों का उदाहरण देकर बताया कि कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद वे डीएम सहित तमाम अधिकारियों का जवाब तलब कर रही हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में प्रधान पति या पार्षद पति जैसे शब्दों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। तान्या ने एकल महिलाओं का सवाल उठाया और कहा कि महिलाओं के लिए आवासीय सुविधा की व्यवस्था की जानी चाहिए।