देहरादून: उत्तराखंड के लिए आज का दिन बेहद खास है. आज से उत्तराखंड में शीतकालीन चारधाम यात्रा का आगाज हो गया है. उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी ने ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर से शीतकालीन चारधाम यात्रा का शुभारंभ किया.
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सबसे पहले शीतकालीन चारधाम यात्रा शुरू करने की पहल की थी. जिसे उत्तराखंड सरकार ने गंभीरता से लेते हुए इस पर काम किया. उत्तराखंड शीतकालीन चारधाम यात्रा के 4 प्रमुख पड़ाव होंगे. इन पड़ावों को धार्मिक पर्यटन से जोड़ने की कोशिश उत्तराखंड में की जा रही है.
शीतकालीन चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव ऊखीमठ ओंकारेश्वर मंदिर है. इस यात्रा के शुभारंभ के लिए ओंकारेश्वर मंदिर को चुना जाना बेहद खास है. ऊखीमठ का ओंकारेश्वर मंदिर में बाबा केदार शीतकाल में प्रवास करते हैं. सर्दियों में 6 महीने यहां भगवान केदार की पूजा होती है. केदारनाथ यात्रा शुरू होने पर यहां से भगवान केदार की चल विग्रह डोली विभिन्न पड़ावों से होती हुई केदारनाथ पहुंचती है. जहां 6 महीने केदारनाथ यात्रा चलती है.
इस दौरान लाखों श्रद्धालु केदारनाथ पहुंचते हैं. केदारनाथ मंदिर 3562 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां पहुंचना आसान नहीं है. बाबा केदार के दर्शनों के लिए भक्तों को कई किलोमीटर पैदल चलना होता है. हेलीकॉप्टर की भी सुविधा भी यहां है, मगर इसका असर सीधे भक्तों की जेब पर पड़ता है. ऐसे में जो श्रद्धालु केदारनाथ नहीं जा सकते हैं वो शीतकाल में ऊखीमठ ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचकर बाबा केदार के दर्शन कर सकते हैं.
इस दौरान भक्तों को परेशानियां भी कम होंगी. भीड़भाड़ के साथ ही ट्रैफिक की समस्या भी नहीं जूझना होगा. इतना ही नहीं शीतकाल में ऊखीमठ ओंकारेश्वर मंदिर मंदिर के साथ ही आस पास की लोकेशन को भी एक्सप्लोर किया जा सकता है. इसके पास तुंगनाथ, देवरियाताल, त्रियुगीनारायण जैसे डेस्टिनेशन हैं. इन जगहों पर जाकर सर्दियों का लुत्फ उठाया जा सकता है.
शीतकालीन चारधाम यात्रा के दूसरे पड़ाव में जोशीमठ आता है. जोशीमठ में प्रसिद्ध नृसिंह मंदिर है. यहां नृसिंह भगवान की मूर्ति है. जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी. इस मंदिर में आदि शंकराचार्य की गद्दी की पूजा होती है. हिंदुओं के लिए यह मंदिर काफी खास है. आदि गुरू शंकराचार्य ने ही चारधामों की परिकल्पना की थी. उन्होंने हिंदु धर्म को स्थापित किया. जिसके कारण आज भी उनकी पूजा होती है.
जोशीमठ एक हिल स्टेशन भी है. इसके आससाप औली जैसा विंटर डेस्टिनेशन है. औली में सर्दियों में विंटर गेम्स होते हैं. इसके अलावा भी यहां बड़ी संख्या में बर्फबारी का आनंद लेने पहुंचते हैं. इसके पास ही पांडुकेश्वर भी है. जहां उद्धव जी की पूजा होती है. शीतकालीन चारधाम यात्रा में बिना किसी जद्दोजहद के आराम से यात्रा की जा सकती है. ये ही इस यात्रा का उद्देशय है.
ये दोनों पड़ाव एक ही रूट पर पड़ते हैं. इनका प्रमुख पड़ाव रुद्रप्रयाग है. यहां से इसका रूट अलग हो जाता है. रुद्रप्रयाग और चमोली में पड़ने वाले इन पड़ावों पर शीतकालीन चारधाम यात्रा के अलावा भी कई टूरिस्ट प्लेस हैं. इन टूरिस्ट प्लेस को इस दौरान कैप्चर किया जा सकता है. इस समय इन स्थानों की यात्रा आपको बजट फ्रेंडली भी पड़ेगी.
शीतकालीन चारधाम यात्रा का तीसरा पड़ाव खरसाली है. खरसाली उत्तरकाशी में पड़ता है. खरसाली में मां यमुना की सर्दियों में पूजा होती है. ये यमुना का शीतकालीन प्रवास स्थल है.खरसाली के शनि देव मंदिर में यमुना का वास होता है. खरसाली मंदिर लकड़ियों और पत्थरों का बना है. बताया जाता है कि ये मंदिर महाभारत के समय का बना हुआ है. पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. शीतकालीन चारधाम यात्रा शुरू होने से खरसाली के साथ ही इसके आसपास के स्थानों को भी एक पहचान मिलेगी. इससे इस इलाके में पर्यटन बढ़ेगा. जिससे सरकार को बंपर कमाई होगी.
शीतकालीन चारधाम यात्रा का चौथा पड़ाव मुखबा है. गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद शीतकाल में यहां मां गंगा की पूजा होती है. शीतकालीन चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु मुखबा गांव में ही मां गंगा के दर्शन और पूजा अर्चना कर सकेंगे. इस यात्रा के शुरू होने से इस सीजन में यहां के लोगों को बेरोजगार मिलेगा. इससे पलायन कम होगा. शीतकालीन चारधाम यात्रा शुरू होने से धामों पर पड़ने वाला दबाव भी कम होगा.
शीतकालीन चारधाम यात्रा को लेकर उत्तराखंड सरकार उत्साहित है. सीएम धामी ने खुद इसकी कमान अपने हाथ में ली है. शीतकालीन चारधाम यात्रा शुरू होने से न केवल उत्तराखंड में टूरिज्म बढ़ेगा बल्कि इससे सरकार को भी बंपर कमाई होगी. इसके साथ ही चारधाम यात्रा पर पड़ने वाले दबाव को भी इससे कम किया जा सकता है. शीतकालीन चारधाम यात्रा उत्तराखंड को एक नये नजरिये से देखने की पहल है. इसमें अध्यात्म, पर्यटन, एडवेंचर सब कुछ शामिल है.