उदय दिनमान डेस्कः इसमें कोई शक नहीं कि जितने रहस्यमयी ब्लैक होल जैसे पिंड हैं. उनके बारे में हमारे वैज्ञानिकों ने कम जानकारी हासिल नहीं की है. लेकिन यह भी एक हैरान करने वाली सच्चाई है, जितना हम ब्लैक के बारे में पता कर पा रहे हैं उनका रहस्य और भी गहराता जा रहा है.
दुनिया के उन्नत टेलीस्कोप और उपकरण भी अब ब्लैकहोल के बारे में और जानकारी देने लगे हैं. हाल ही में खगोलविदों ने एक नासा के जेम्स वेब स्पेस टेसीस्कोप (JWST) और चंद्रा एक्स रे वेधशाला की मदद से शुरुआती ब्रह्माण्ड के सबसे भूखे ब्लैक होल का पता लगाया है जिसने अपनी सामग्री निगलने की काबिलियत से उन्हें चौंका दिया है.
ब्लैक होल खास तौर से शुरुआती ब्रह्माण्ड में बने विशाल आकार के सुपरमासिव ब्लैक होल वैज्ञानिकों के लिए बड़े रहस्य बने हुए हैं. वे इस बात से हैरान है कि इतने कम समय में ये ब्लैक होल कैसे इतने विशाल बन गए थे. साइंटिस्ट्स ने ऐसे ब्लैक होल की सामग्री निगलने की दर की अधिकतम सीमा को भी निर्धारित किया था. लेकिन इस नई खोज ने उन्हें चौंका दिया.
LID-568 की खोज अंतरराष्ट्रीय जेमिनी वेधशाला/NSF NOIRLab के खगोलशास्त्री ह्येवोन सुह की अगुआई में खगोलविदों की एक टीम ने की थी, जिसमें कई संस्थानों के एक्सपर्ट शामिल थे. सुह की टीम ने चंद्रा एक्स-रे वेधशाला के “कॉस्मोस लेगेसी सर्वे” से गैलेक्सी के नमूने का निरीक्षण करने के लिए जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) का उपयोग किया.
सुह की टीम ने पाया है कि यह ब्लैक होल बहुत ही ज्यादा भूखा और केवल 1.2 करोड़ साल के अंदर उसने 70 लाख सूर्यों के भार जितनी सामग्री को निगल लिया है. यह किसी भी ब्लैक होल की सैद्धांतिक वृद्धि दर से काफी अधिक है. यह खोज यह भी बताती है की कैसे ब्लैक होल शुरुआती ब्रह्माण्ड में बहुत ही कम समय में कैसे पनप गए थे.
नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित इस अध्ययन के शोधपत्र की सह लेखिका और अंतरराष्ट्रीय जेमिनी वेधशाला की जूलिया शार्वाचटर, ने एक बयान में कहा, “यह ब्लैक होल एक दावत का आनंद ले रहा है.” हबल स्पेस टेलीस्कोप और JWST ने प्रारंभिक ब्रह्मांड में सैकड़ों मिलियन या अरबों सौर द्रव्यमान वाले ब्लैक होल वाली गैलेक्सी पाई हैं. वैज्ञानिक यह समझ नहीं पाए हैं कि ब्लैक होल कैसे बने और इतनी जल्दी आकार में कैसे बड़े हो गए. दूरबीनों की मदद से वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ब्लैक होल को देखा है जो विशाल बनने की प्रक्रिया में है.
ब्लैक होल LID-568 बिग बैंग के 1.5 अरब साल बाद अस्तित्व में आ गया था और पहली बार दूर ब्रह्मांड में चमकदार एक्स-रे उत्सर्जित करने वाले पिंडों के सर्वेक्षण में देखा गया था. एक्स-रे के आधार पर इसकी सटीक स्थिति निर्धारित करना मुश्किल था. अंतरराष्ट्रीय जेमिनी वेधशाला में एक खगोलशास्त्री और अध्ययन की सह-लेखक इमानुएल फ़रीना ने कहा, “इसकी मंद प्रकृति के कारण, JWST के बिना LID-568 का पता लगाना असंभव होता. इंटीग्रल फील्ड स्पेक्ट्रोग्राफ का उपयोग करना हमारे अवलोकन के लिए जरूरी हो गया था.”
सुह और उनकी टीम ने पाया कि LID-568 अपनी एडिंगटन सीमा से 40 गुना अधिक दर पर पदार्थ को निगल रहा है. यह सीमा उस अधिकतम चमक से संबंधित है जिसे एक ब्लैक होल हासिल कर सकता है, साथ ही यह कितनी तेजी से पदार्थ को अवशोषित कर सकता है. जूलिया ने कहा, “यह चरम मामला दिखाता है कि एडिंगटन सीमा से ऊपर एक तेज़-फ़ीडिंग तंत्र इस बात को बताता है कि हम ब्रह्मांड में इतनी जल्दी इन बहुत भारी ब्लैक होल को क्यों देखते हैं.”