सुपौल. कोसी नदी का प्राचीन नाम कौशिकी है. हिमालय से निकलकर नेपाल के हरकपुर में कोसी की दो सहायक नदियां दूधकोसी तथा सनकोसी मिलती हैं. सनकोसी, अरुण, प्रज्वल तमर नदियों के साथ त्रिवेणी में मिलती हैं. इसके बाद नदी को ‘सप्तकोशी’ कहा जाता है. नेपाल के ही बराह क्षेत्र में यह तराई क्षेत्र में प्रवेश करती है और इसके बाद से इसे कोशी (या कोसी) कहा जाता है. इसकी विभिन्न शाखाएं बिहार के सहरसा, सुपौल, मधेपुरा जैसे जिलों में अलग-अलग भी बहती हैं.
बिहार में कोसी की मुख्यधारा सुपौल के भीम नगर के रास्ते से भारत में प्रवेश करती है. इस नदी की बारे में प्राचीन धार्मिक मान्यताएं तो कई हैं, लेकिन कुछ ‘लोक मान्यताएं’ भी हैं जो आम जन जीवन के जेहन में रची बसी हैं. ऐसी ही मान्यता है कोसी नदी का ‘लाल पानी’… जिसे देख लोगों के चेहरे का रंग बदल जाता है, लोग दहशत में आ जाते हैं और जीने का ढंग बदल जाता है.
दरअसल, बिहार के मधेपुरा, सहरसा और सुपौल जिलों में कोसी क्षेत्र में लोग पानी का रंग देखकर बाढ़ आने का अंदाजा लगा लेते हैं. कोसी में जैसे ही ‘लाल पानी’ उतरता है लोग सचेत हो जाते हैं. जानकारों की राय में यह पानी इस बात का संकेत होता है कि इस मौसम का यह पहला पानी है जो हिमालय से उतर गया. कोसी क्षेत्र में रह रहे लोग जैसे ही नदी में ‘लाल पानी’ देखते हैं कि उसे अंदाजा हो जाता है कि अब नदी के पानी का उतार-चढ़ाव चलता रहेगा. पानी का रंग बदलते ही लोगों के जीने का ढंग भी बदल जाता है.
‘लाल पानी’ के आते ही कोसी का जलस्तर बढ़ने लगता है. लोग बाढ़ से सुरक्षा की तैयारी शुरू कर देते हैं. लाल पानी का उतरना तटबंध के अंदर के गांवों में एक अजीब सी परिस्थिति पैदा कर देता है. फिलहाल कोसी में लाल पानी उतर चुका है. अब पानी पर पल-पल नजर रखकर उसके रंग और वेग को परखेंगे. मानसून की आवक कुछ ही दिनों बाद होने वाली है, जिसके बाद बाढ़ का खतरा मंडराने लगेगा.
‘लाल पानी’ का एक संदर्भ कोसी के लोग कोसी मइया (सनातन संस्कृति में नदी को माता की मान्यता है) के आंख लाल होने से लगाते हैं. यहां के लोगों का मानना है जब हमलोग ‘लाल पानी’ देख लेते हैं तो मान बैठते हैं कि अब कोसी ने आंख दिखाना शुरू कर दिया है.
कोसी में ‘लाल पानी’ मई के अंतिम और जून के प्रथम सप्ताह के बीच अमूमन उतर जाता है. ‘लाल पानी’ के उतरते ही लोगों में बाढ़ का भय समाने लगता है ओर इसी बीच सरकार की तैयारी भी शुरू हो जाती है. जून से बाढ अवधि शुरु होते ही नाव की व्यवस्था से लेकर कोसी के डिस्चार्ज की प्रशासन द्वारा प्रति घंटे जानाकरी ली जाती है.
जब पानी बिल्कुल साफ दिखाई देता है तो लोग निश्चिंत होते हैं कि कोसी अभी स्थिर है. पानी का रंग जब बिल्कुल ही मटमैला होता है और उसकी गति सामान्य से कुछ तेज रहती है तो लोगों को आभास हो जाता है कि पीछे कहीं किसी गांव को कोसी काट रही है या फिर इसके लक्षण ठीक नहीं लगते. तटबंध के अंदर रहनेवाले कहते हैं कि हमें तो पानी के साथ ही जीना है और पानी के साथ ही मरना है. इसलिए नदी के सभी लक्षणों को हम अपने अनुभव से भांप लेते हैं.
कोसी में जैसे ‘लाल पानी’ उतरता है तो हम मान लेते हैं कि यह नया पानी है जो हिमालय से उतर रहा है. साफ पानी नदी की स्थिरता को दर्शाता है, लेकिन जब पानी मटमैला दिखने लगता है तो हम सतर्क हो जाते हैं कि नदी पीछे किसी गांव को काट रही है. लोग बताते हैं कि पानी में बहकर जब लकड़ियां आने लगती हैं और पानी गंदा और मटमैला दिखता रहता है, और इसकी वेग काफी तेज होती है तो हमलोग सतर्क हो जाते हैं. अपने बाल-बच्चे समेत ऊंचे स्थानों की ओर कूच कर जाते हैं.