उदय दिनमान डेस्कः शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनकी कृपा से परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है. पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान बड़ी संख्या में किया जाता है.
श्राद्ध का उद्देश्य पितरों की आत्मा को तृप्ति प्रदान करना है. मान्यता है कि पितरों का आशीर्वाद न मिलने से रक्त संबंधित व्यक्ति और उसके परिवार में समस्या आ सकती हैं. ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण सहित अन्य पुराणों के अनुसार, श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से हम पितरों को जल, अन्न और अन्य सामग्री अर्पित करते हैं, जिससे उनकी आत्मा संतुष्ट होती है. विशेष रूप से पितृ पक्ष (सोलह श्राद्ध) में यह प्रक्रिया की जाती है.
देव ऋण, मनुष्य ऋण और पितृ ऋण. देव पूजन जितना आवश्यक है, पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. सभी 18 महापुराणों में श्राद्ध, तर्पण और पितरों के पूजन का विभिन्न रूपों में उल्लेख मिलता है.
1. विष्णु पुराण: इस पुराण में पितरों के श्राद्ध और तर्पण का महत्व बताया गया है. इसमें कहा गया है कि पितरों को अर्पित जल और अन्न से उनकी आत्मा को शांति मिलती है.
2. ब्रह्म पुराण: पितरों के लिए श्राद्ध की विधियों का विवरण इस पुराण में मिलता है. यह भी बताया गया है कि पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए विशेष तिथि पर श्राद्ध करना आवश्यक है.
3. शिव पुराण: शिव पुराण में श्राद्ध की प्रक्रिया और इसके लाभों का उल्लेख है.
4. भागवत पुराण: इस पुराण में पितरों के तर्पण और श्राद्ध की विधियां और उनका महत्व वर्णित है. पितरों को अर्पित सामग्री की विधि भी बताई गई है.
5. मत्स्य पुराण: पितरों के श्राद्ध की विभिन्न विधियों, जैसे एकोदिष्ट और नित्य श्राद्ध, का विवरण इस पुराण में मिलता है.
6. नारद पुराण: पितरों के प्रति श्राद्ध की विधियां और इसके महत्व का विस्तृत वर्णन इस पुराण में किया गया है.
7. वामन पुराण: पितरों के श्राद्ध और तर्पण की प्रक्रिया का उल्लेख इस पुराण में है, जिसमें पितरों को शांति देने के उपाय बताए गए हैं.
8. कूर्म पुराण: पितरों की आत्मा को शांति देने के लिए श्राद्ध की प्रक्रियाओं का वर्णन यहां किया गया है.
9. लिंग पुराण: इस पुराण में पितरों के श्राद्ध और तर्पण की विधियों का वर्णन है और यह बताया गया है कि इससे पितरों को शांति मिलती है.
10. गरुड़ पुराण, श्रीभगवत पुराण, सत्यम्बुधि पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्मृति पुराण, प्रदीप पुराण, अग्नि पुराण, श्री भागवत पुराण और कालिक पुराण में भी पितरों के श्राद्ध की विधियां, आत्मा को शांति देने के लिए प्रक्रियाओं और धार्मिक महत्व के बारे में बताया गया है.
शास्त्रों के अनुसार, पितरों की आज्ञा का पालन और उनके लिए श्राद्ध करना संतान की सार्थकता को सिद्ध करता है. यह भी कहा गया है कि एक बार गया श्राद्ध करने से संतान होना सार्थक होता है. पितरों के निमित्त श्राद्ध एक महत्वपूर्ण अंग है, जो परिवार में शांति और समृद्धि का कारण बनता है.
पंडित पंकज मेहता बताते हैं कि शास्त्रों में विशेष तिथि श्राद्ध के दिन दैहिक कर्म करने के बाद विभिन्न प्रकार के श्राद्ध होते हैं, जैसे कि एकोदिष्ट श्राद्ध, नित्य श्राद्ध, नैमित्तिक श्राद्ध, सोरस श्राद्ध (सोलह श्राद्ध) और महालय श्राद्ध. इन्हें समय-समय पर किया जाना चाहिए, क्योंकि पितरों की अपेक्षाएं और भावनाएं हमारे साथ जुड़ी होती हैं. यदि पितर अतृप्त होते हैं, तो उनके रक्त संबंधी या करीबी को प्रभावित करते हैं, जिससे उन्हें समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है.