RSS चीफ मोहन भागवत और पीएम मोदी !

नागपुर:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस के रिश्ते हमेशा से चर्चा का विषय रहे हैं. पिछले कुछ सालों में कभी उनके बीच खटपट की खबरें आईं, तो कभी दोनों संगठन एक-दूसरे से दूर होने का इशारा करते हुए नजर आए.

हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी ने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय का दौरा किया और एक बार फिर से यह साफ कर दिया कि बीजेपी और आरएसएस के बीच कोई दरार नहीं है, बल्कि दोनों के बीच एक गहरा राजनीतिक गठबंधन है. इस बीच, दोनों संगठनों ने मिलकर 2029 के लिए अपनी रणनीति को साकार रूप देने की दिशा में काम शुरू कर दिया है.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में आरएसएस की भूमिका को स्पष्ट किया और कहा कि यह संगठन सिर्फ एक राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की आत्मा है. उनका यह बयान यह दर्शाता है कि आरएसएस का प्रभाव अब बीजेपी से कहीं ज्यागा गहरा और व्यापक हो चुका है.

प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा इसलिए भी खास था क्योंकि इससे पहले वह 2013 में आरएसएस मुख्यालय आए थे और तब से लेकर अब तक उनकी यात्रा के विभिन्न आयाम सामने आए हैं. मोदी ने आरएसएस के संस्थापक डॉ. केबी हेडगेवार की स्मृति को सम्मानित करते हुए संगठन की महत्ता को स्वीकार किया.

कई राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, बीजेपी और आरएसएस के बीच बढ़ती नजदीकी के साथ 2029 के चुनावों के लिए रणनीतियों पर चर्चा भी तेज हो गई है. मोदी ने अपने भाषण में एक दृढ़ संकेत दिया कि आरएसएस का कार्यकर्ता से लेकर राजनीति में असरदार नेता बनने का सफर भारतीय राजनीति के भविष्य के लिए अहम है. उनकी यह बातें 2029 के चुनावों को लेकर दोनों संगठनों के साझा लक्ष्य की ओर इशारा करती हैं.

बीजेपी की तरफ से भी यह संकेत दिए गए हैं कि पार्टी अब अपने भविष्य की योजनाओं में आरएसएस के विचारों और दिशानिर्देशों को और ज्यादा महत्व देगी. इन दोनों संगठनों के बीच का गठबंधन आने वाले चुनावों में उनके लिए एक मजबूत आधार साबित हो सकता है, खासकर जब बात राज्यों की विधानसभा चुनावों की हो.

बीजेपी और आरएसएस का यह नया राजनीतिक एकजुटता आगामी विधानसभा चुनावों में खासतौर पर देखने को मिलेगा. पिछले कुछ सालों में आरएसएस और बीजेपी दोनों के बीच तकरार की अफवाहें आई थीं, लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों संगठनों के रिश्तों में कोई दरार नहीं है. आगामी विधानसभा चुनावों में इस सामूहिक रणनीति का असर साफ दिखेगा, जहां बीजेपी को हरियाणा, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में आरएसएस के समर्थन से मजबूती मिलेगी.

आने वाले दिनों में बीजेपी की कार्यकारिणी बैठक और आरएसएस का शताब्दी वर्ष समारोह भी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं. इन दोनों आयोजनों में इस बात की उम्मीद जताई जा रही है कि बीजेपी और आरएसएस अपने संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए साझा योजनाओं पर काम करेंगे. बेंगलुरु में होने वाली कार्यकारिणी बैठक में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान भी इस रणनीतिक कदम का हिस्सा हो सकता है, जो 2029 के चुनावों में पार्टी की मजबूत स्थिति को सुनिश्चित करेगा.

बीजेपी और आरएसएस के बीच का यह नया गठजोड़ सिर्फ 2024 के चुनावों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह 2029 की चुनावी रणनीति को मजबूत बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. दोनों संगठनों के बढ़ते रिश्ते और साझी रणनीति से यह साफ होता है कि भारतीय राजनीति में उनके सहयोग की भूमिका आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण होगी. 2029 तक, यह गठबंधन भारतीय राजनीति को एक नई दिशा देने में सक्षम हो सकता है.

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