देहरादून: प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेल रहे उत्तराखंड में 400 से ज्यादा ऐसे गांव हैं, जहां आसमान में उमड़ते मेघों को देखकर ग्रामीणों की सांस अटक जाती है। विशेषकर, वर्षाकाल तो इसी प्रार्थना में गुजरता है कि वर्षा कब बंद होगी।
असल में ये आपदा प्रभावित गांव हैं, जिनकी संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। अब जिलों से ऐसे गांवों का ब्योरा मांगा जा रहा है, जिससे इनकी संख्या में वृद्धि होना तय है। यद्यपि, पिछले कुछ वर्षों में आपदा प्रभावितों के पुनर्वास को कदम उठाए गए हैं। अब तक 212 गांवों के 2268 परिवार पुनर्वासित किए जा चुके हैं, लेकिन इस मुहिम में तेजी लाने की दरकार है।
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में चौमासे, यानी वर्षाकाल के चार महीनों में अतिवृष्टि, भूस्खलन, भूधंसाव, बादल फटना, नदियों बाढ़ जैसी आपदाएं भारी पड़ रही हैं। हर साल ही इसमें बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान झेलना पड़ रहा है।
इसके साथ ही ऐसे गांवों की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है, जहां भूस्खलन व भूधंसाव के चलते रहना किसी बड़े जोखिम को मोल लेने से कम नहीं है। यद्यपि, ऐसे गांवों के पुनर्वास की मुहिम चल रही है, लेकिन जिन आपदा प्रभावित गांवों को पुनर्वास का होना है, वहां के निवासियों की इस आस के पूरा होने का इंतजार है। यही कारण है कि चौमासे में उन्हें खौफ के साये में दिन गुजारने को विवश होना पड़ता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसे गांवों की संख्या अधिक है। यद्यपि, आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के लिए वर्ष 2011 में नीति लाई गई, लेकिन शुरुआती दौर में इसके क्रियान्वयन की गति बेहद धीमी रही। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नीति लागू होने के बाद वर्ष 2012 से 2015 तक दो गांवों के 11 प्रभावित परिवार ही विस्थापित किए जा सके। ऐसे में नीति को लेकर प्रभावितों के बीच से प्रश्न उठना स्वाभाविक था।
वर्ष 2016 के बाद सरकारों ने आपदा प्रभावितों के पुनर्वास की दिशा में तेजी से कदम उठाने का निश्चय किया। तत्पश्चात मुहिम को कुछ गति मिली और तब से अब तक 210 आपदा प्रभावित गांवों के 2257 परिवार विस्थापित किए जा चुके हैं। इस प्रकार वर्ष 2012 से अब तक 212 गांवों के 2268 परिवारों का पुनर्वास किया जा चुका है। जानकारों का कहना है कि पुनर्वास कार्य में अधिक तेजी लानी होगी। इसके लिए केंद्र सरकार से भी मदद ली जा सकती है।