राजनैतिक कारणों से विरोध कर रहे हैं कांग्रेस और इंडी गठबंधन
देहरादून। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद श्री महेंद्र भट्ट ने “एक राष्ट्र एक चुनाव” विधेयक को विकसित भारत निर्माण के लिए बेहद अहम बताया है। उन्होंने जोर देते हुए कहा, सदन में और सदन के बाहर इस मुद्दे पर स्वास्थ्य चर्चा कर, निर्णय लेने का सही समय आ गया है।
ये विधेयक देश के भले के लिए और इसे वो लोग भी जानते हैं जिन्होंने 1967 तक इस प्रक्रिया के तहत ही देश में सरकार बनाई, लेकिन आज राजनैतिक कारणों से विरोध कर रहे हैं। यह विचार नया नहीं, बल्कि देशहित में स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्परा को पुनर्स्थापित करने का ऐतिहासिक प्रयास है, जिसका दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी को समर्थन करना चाहिए।
इस विषय पर सामाजिक, राजनैतिक क्षेत्रों में जारी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, एक देश एक चुनाव आज देश के विकास और देशवासियों के कल्याण के लिए बेहद जरूरी है। पीएम मोदी ने जनभावना और देश की जरूरत को आत्मसार करते हुए इस मुद्दे को हाथ में लिया है। जिसके लिए उनके नेतृत्व में सरकार द्वारा तैयार विधेयक के सभी पहलुओं पर गहन विचार विमर्श के लिए पूर्व राष्ट्रपति एवं संविधानविद श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था।
जिसमें इस मुद्दे से जुड़े सभी पक्षों से विस्तृत और व्यापक परामर्श और पूरी संवैधानिक प्रक्रिया का पालन कर रिपोर्ट सौंप दी है। समिति ने कुल 62 राजनीतिक दलों से इस प्रस्ताव पर उनका सुझाव मांगा, जिसमें 47 दलों ने अपनी प्रतिक्रिया दी। जिनमें से 32 दलों ने समकालिक चुनाव के कार्यान्वयन का समर्थन किया और 15 ने इसका विरोध किया।
इसके अतिरिक्त, भारत के 4 पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और 9 हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने भी इसे संविधान की मूल संरचना के अनुरूप माना है। समिति द्वारा सभी 4 मुख्य चुनाव आयुक्त, पूर्व राज्य चुनाव आयुक्तों, बार काउंसिल, एसोचैम, फिक्की, और सी.आई. आई के अधिकारियों से भी विस्तृत चर्चा की गई। वहीं जनता से भी सुझावों मांगे गए, जिनमें 83% प्रतिक्रियाएं इस विधेयक के पक्ष में सामने आई हैं।
उन्होंने विधेयक के महत्वपूर्ण पहलुओं को लेकर कहा कि इसमें लोकसभा के साथ सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की बात कही गई है। और यदि विशेष परिस्थितियों में कोई सरकार भंग होती है या दोबारा चुनाव की स्थिति पैदा होती है तो सदन के शेष कार्यकाल के लिए ही चुनाव संपन्न कराया जाएगा। वहीं इस सब प्रक्रिया को सुचारू करने के लिए भी 2034 तक का समय भी लिया गया है। इस कानून को सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है, जिससे संपूर्ण चुनाव प्रणाली, जिसमें चुनाव आयोग, मुख्य चुनाव अधिकारी, राजनीतिक दल और मतदाता शामिल हैं, इसको एकीकृत प्रणाली में बदलने के लिए पूरा एक दशक दिया गया है।
उन्होंने विधेयक के फायदे गिनाते हुए कहा कि अक्सर देखा जाता है कि हर 6 माह में देश में कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। और वहां चुनाव होने का मतलब है, आदर्श चुनाव आचार संहिता लगने से विकास कार्यों का प्रभावित होना, नई जनकल्याणकारी योजनाओं की प्रक्रिया पर ब्रेक लगना, सरकारी मशीनरी का चुनाव प्रक्रिया में व्यस्त होने से आम आदमी को दिक्कत आना, बड़ी आर्थिक व्यय की स्थिति का बनना।
चुनावी खर्च की ही बात करें तो केवल 2024 के लोकसभा चुनावों में ही ₹1 लाख करोड़ से अधिक खर्च हुए, जो देश के वित्तीय संसाधनों पर एक बड़ी लागत को दर्शाता है। इसके विपरीत, यदि हर पांच साल में एक बार ही चुनाव कराए जाएं, तो चुनाव आयोग को संसाधनों की तैनाती भी केवल एक बार करनी होगी, जिससे लगभग 12 हजार करोड़ रुपए की संभावित बचत हो सकती है।
इसके अतिरिक्त, समिति की रिपोर्ट के अनुसार, यदि 2024 में देश में समकालिक चुनाव हुए होते तो यह देश के सकल घरेलू उत्पाद में 1.5 प्रतिशत अंकों की वृद्धि कर सकता था, जो भारतीय अर्थव्यवस्था में ₹ 4.5 लाख करोड़ रुपए जितना होता। बार-बार होने वाले चुनाव प्रशासनिक व्यवधान का चक्र उत्पन्न करते हैं, जो शासन को बाधित करता है और आवश्यक सुधारों को रोकने का कार्य करता है।
अक्सर विकास परियोजनाओं पर रोक लग जाती है और कल्याणकारी योजनाओं की अंतिम लाभार्थियों तक पहुंच में देरी होती है। इसके अतिरिक्त, निरंतर चुनावी कार्यक्रम के कारण शिक्षक कक्षाओं से हटाकर चुनावी कार्यों में लगाए जाते हैं, और स्कूलों को मतदान केंद्रों में बदल दिया जाता है। कहीं न कहीं हम कह सकते हैं कि विकास की गति में स्पीड ब्रेकर की भूमिका अदा करने वाले बार बार होने वाले चुनावों से मुक्ति, ये कानून लेकर आयेगा।
उन्होंने इस चुनावी सुधार विधेयक को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में व्यापक जनभागीदारी को प्रोत्साहित करने वाला भी बताया। क्योंकि देखा गया है कि बार बार चुनाव, मतदान के प्रति उत्साह को कम करता है। उदाहरण के तौर पर देखें तो 1999 में कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में राज्य विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ कराए गए, जिससे मतदान प्रतिशत में 11.5% की वृद्धि देखी गई।
इसी प्रकार, 1977 में केरल में मतदान प्रतिशत में 20% की वृद्धि हुई थी। यहां तक कि पूर्वोत्तर राज्यों में भी मतदान प्रतिशत में 21% की वृद्धि हुई थी। इसमें अतिरिक्त, 2024 के आम चुनावों में कुल मतदान प्रतिशत 65.79% रहा, जो 2019 के आम चुनावों के 67.40% के रिकॉर्ड उच्च स्तर से कम है। ऐसे में एकसाथ चुनाव कराना कम मतदान की समस्या को भी हल करने में मददगार होगा।
उन्होंने इस चुनावी सुधार की प्रक्रिया का विरोध करने वाली कांग्रेस को आइना दिखाया कि 1952, 57, 62, 67 के चुनाव तो इसी प्रक्रिया से उन्होंने जीते। एक के बाद एक, धारा 356 के दुरूपयोग कर कांग्रेस ने चुनी हुई सरकारों को गिराया और देश को चुनावी दलदल में फंसा दिया। दरअसल राजनैतिक कारणों से किया जा रहा विरोध कांग्रेस औरइंडी गठबंधन का पाखंड है।
ये विपक्ष की एक ऐसी प्रवृत्ति को उजागर करता है, जिसमें मोदी सरकार द्वारा उठाए गए किसी भी सुधारात्मक कदम का विरोध किया जाता है, ‘भले ही वह सार्वजनिक हित के लिए हो। विडंबना यह है कि 2015 में कांग्रेस नेता डॉ. ई. एम. सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता वाली संसदीय स्थायी समिति ने एक चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाकर समकालिक चुनाव कराने की सिफारिश की थी और इसे एक व्यावहारिक समाधान बताया था। 2019 में इंडी (INDI) गठबंधन के प्रमुख नेता शरद पवार ने भी केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री श्री प्रह्लाद जोशी जी को लिखे पत्र में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के विचार को सराहनीय बताया था।
यह उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय करुणानिधि ने अपनी आत्मकथा में इस विचार का समर्थन करते हुए लिखा था कि लगातार होने वाले चुनाव नीतिगत जड़ता का कारण बन रहे हैं। परंतु आज उनके पुत्र एम. के. स्टालिन इस पहल का विरोध कर रहे हैं। अतीत में इस प्रक्रिया का हिस्सा रहे और समर्थन के बावजूद अब किया जा रहा इंडी एलायंस का प्रतिरोध, उनके पाखंड को उजागर करता है।
श्री भट्ट ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” को ऐतिहासिक लोकतांत्रिक परंपराओं के साथ सामंजस्य बैठाने वाला बताया है। उन्होंने कहा, यह विचार भारत की लोकतांत्रिक परंपरा के लिए नया नहीं है और चुनाव आयोग, विधि आयोग ने कई बार इसकी संस्तुति वाली रिपोर्ट दी है। मोदी सरकार लंबे समय से प्रतीक्षित अच्छी चुनावी परम्परा को समयानुसार पुनः स्थापित करने का प्रयास कर रही है।
यह आरोप निराधार हैं कि इन विधेयकों का उद्देश्य एकदलीय प्रणाली लागू करना है, बल्कि यह लोक कल्याण को बढ़ावा देने वाला कदम है। यह आचार संहिता के बार-बार लागू होने से होने वाले प्रशासनिक व्यवधान कम करने, चुनावी खर्च को घटाने, सार्वजनिक संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने और चुनावी महापर्व में जनता की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।