जनपद चमोली का शानदार ट्रेक है – देवाल विकास खंड का मोनाल ट्रेक
मोनाल पक्षियों का शानदार आशियाना है – मोनाल टॉप
जे . पी, मैठाणी
देहरादूनः जनपद चमोली के सीमान्त विकास खंड में देवाल में – मोनाल ट्रेक एक नए ट्रेक के रूप में रूप में उभर रहा है, इस ट्रेक की समुद्र तल से उंचाई लगभग 12000 फीट (लगभग 4100 मीटर) है. उत्तराखंड के पर्यटक और टूरिज्म के नक़्शे पर तेजी से उभरते हुए इस ट्रेक को गढभूमि एडवेंचर के सीईओ हीरा सिंह गढ़वाली और देवेन्द्र सिंह ने सबसे पहले प्रचारित – प्रसारित किया. वर्तमान में जिला पर्यटन विभाग के श्री जनार्जन थपलियाल जी ने जिला पर्यटन अधिकारी और जिलाधिकारी चमोली के सहयोग से – 30 युवक युवतियों को शामिल कर प्रथम मोनाल ट्रेक का सफलता पूर्वक आयोजन किया . ये टीम आज ही मोनाल ट्रेक को संपन्न कर वाण गाँव वापस पहुंचे हैं !
जैसा कि नाम से विदित है मोनाल ट्रेक पर सबसे अधिक मोनाल दिखाई दे रहे हैं इसकी एक वजह इस क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप का बहुत कम होना भी है , पर्यटन विभाग के एडवेंचर विंग के विशेषज्ञ श्री थपलियाल जी ने मोबाइल पर बात करते हुए बताया कि, ये एक शानदार ट्रेक है,जिसको आसानी से 4-5 दिन में पूरा किया जा सकता है इस मोनाल टॉप के आस पास साल के 4 महीने बर्फ रहती है और इसका क्षेत्र काफी विशाल है.
मोनाल टॉप ट्रेक के बारे में बताते हुए हीरा सिंह बताते हैं कि, उन्होंने अपने साथी देवेन्द्र सिंह के साथ इस ट्रेक को प्रचारित – प्रसारित करने की योजना बनाई और वर्ष 2023 के जनवरी माह में वाण गाँव के छानी क्षेत्र जिसको हम पहाड़ के पशुओं का वर्षाकालीन आवास भी कहते हैं का अध्ययन शुरू किया और उसके आधार पर ही उन्होंने जिला पर्यटन अधिकारी और जिला अधिकारी चमोली को इस ट्रेक को प्रचारित करने का प्रस्ताव दिया . हीरा सिंह वर्ष 2019 से ट्रैकिंग टूर का काम कर रहे हैं, बाद में 2023 में टूर ट्रेवल एजेंसी का पंजीकरण करवाया और तब से वो इस क्षेत्र के नए नए ट्रैकिंग रूट को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं !
कैसे जाएँ मोनाल टॉप –
जनपद चमोली के सीमान्त विकास खंड देवाल से वाण गाँव तक – जीप – टैक्सी या निजी वाहन से पहुँच सकते हैं वाण गाँव में गढभूमि एडवेंचर का होम स्टे है, वाण गाँव से सुबह सुबह ट्रेक शुरू कर – 5 किलोमीटर की दूरी पर कुकीना खाल है – और पास में ही थोड़ी दूरी पर हुनेल नामक स्थान पर पीने के पानी की व्यवस्था के साथ साथ कैम्प लगाने की सुविधा है ! हुनेल कैम्प साईट से लगभग 4 किलोमीटर ऊपर की तरफ मोनाल टॉप है – मोनाल टॉप का नाम – उस क्षेत्र में अत्यधिक मोनाल पक्षियों की वजह से ही पड़ा है
मोनाल; टॉप पर पहुंचते ही आस पास का बेहद विहंगम दृश्य दिखाई देता है और अनेक पर्वत चोटियाँ जैसे – चौखम्बा, हाथिपर्वत, बन्दर पूंछ , केदार डूंगा, नंदा घुन्घुटी, त्रिशूली आदि दिखाई देती हैं! साथ ही मोनाल टॉप से – ज्युंरागली , उसके नीचे रूपकुंड ,काली डाक , थारकोट, बगजी बुग्याल, आली और बेदनी बुग्याल के अलावा रंणकाधार और रौंटी क्षेत्र दिखाई देता है ! यही नहीं यहाँ से घाट विकास खंड के सुतोल , कनोल गाँव और तातडा छानी क्षेत्र का विहंगम क्षेत्र भी दिखाई देता है ! जाड़ों में शाम के 4 बजे तक मोनाल टॉप से हुनेल को वापसी कर लेनी चाहिए.
मोनाल टॉप ट्रेक के दौरान आप बांज – बुरांश के घने जंगलों से गुजरते और इस दौरान आपको कई मोनाल पक्षी और कस्तूरी मृग भी दिखाई देते हैं इस ट्रैकिंग रूट पर कई प्रकार के मोलस्क ,कीट, हिमालयी पक्षियाँ के अलावा अन्य प्रजाति के हिरन और घुरड भी दिखाई देते हैं – बरसात में मोनाल टॉप का बुग्याल कई प्रकार के सुन्दर फूलों से भरा रहता है . जाड़ों में यहाँ स्केट बोर्ड या स्कीइंग का कोर्स भी करवाया जा सकता है. मोनाल टॉप से चोटियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है साथ ही विंटर लाइन का भी दृश्य शानदार होता है !
कहाँ है मैंड फाड़ा/मेंढ़ फाड़ा—
हुनेल से अगले दिन के 6 किलोमीटर के ट्रेक के लिए आप मैंडफाड़ा/मेंढ़फाड़ा जा सकते हैं, यह स्थान मोनाल टॉप से कम उंचाई पर है मैंडफाड़ा/मेंढ़फाड़ा क्या है ? इसका मतलब है – पहाड़ों में जो नर भेड होती है उसको मेंढा कहते हैं- हीरा सिंह बताते हैं कि, एक किवदंती के अनुसार एक बार सुतोल के देवसिंह देवता और वाण के लाटू देवता के मेंढे यानी नर भेड़ों की आपस में लडाई हो गयी
यह लड़ाई इतनी भयंकर थी कि, लाटू देवता के मेंढे ने लड़ते हुए देव सिंह देवता के मेंढे को पहाडी के बीच से धक्का देकर दूसरी तरफ घाट – नंदानगर ब्लाक में सुतोल में पटक दिया और लाटू देवता का मेंढा विजयी रहा. इस लड़ाई के दौरान जो चट्टान या पहाडी बीच से फट गयी थी या जिसमें फाड़ ( यानी चट्टान का बीच से फट जाना ) – पड गए थे उस जगह को मैंडफाड़ा/मेंढ़फाड़ा कहते हैं. आज भी ये एक लम्बी सुरंग जैसी जगह है .
हीरासिंह ने बताया कि, वो और उसका दोस्त देवेन्द्र टोर्च लेकर इस गुफा नुमा फाडे में लगभग 500 मीटर तक गए और जब ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगी तब वो वापस आ गए ! लेकिन इस गुफा में बिना टीम और उपकरणों के नहीं जाना चाहिए ! मैंडफाड़ा/मेंढ़फाड़ा में ट्रैकिंग कैम्प लगाए जाने का स्थान है – लेकिन इस क्षेत्र से शाम को ही वापस हुनेल बेस कैम्प वापस जाना चाहिए !
हाल ही में जिला पर्यटन अधिकारी और जिलाधिकारी के प्रयासों से 30 ट्रेकर्स को मोनाल टॉप तक की ट्रैकिंग के लिए नंदानगर घाट के सुतोल से प्रेम सिह, पूजा बैरासकुण्ड, पिथौरागढ से राजेन्द्र सिह बथियाल , निजमुला से रूची, ऊषा बिष्ट, ऊषा रावत, आशा, पोखरी से हिमांशु नेगी, गोपेश्वर से अंकित असवाल और पर्यटन विभाग से जनार्जन थपलियाल शामिल थे।
इस ट्रेक पर जाने वाले सभी ट्रेकर्स को वाण में गढ़भूमि एडवेंचर के होम स्टे में रहने की सुविधा दी गयी ! इस वर्ष के शुरू आत में ही मोनाल टॉप ट्रेक के लिए 7 से अधिक ग्रुप वाण पहुँच चुके हैं, और सभी ट्रेकर्स ने मोनाल टॉप ट्रेक की भूरी भूरी प्रशंसा की है !
कैसे पहुंचे मोनाल टॉप ट्रेक के लिए – मोनाल टॉप ट्रेक के लिए गढ़वाल और कुमाऊँ दोनों स्थानों से पहुंचा जा सकता है –
1- दिल्ली – काठगोदाम – काठगोदाम से देवाल – जीप टैक्सी द्वारा या ग्वालदम तक बस द्वारा , फिर देवाल से वान फिर से जीप टैक्सी द्वारा और ग्वालदम से भी देवाल या वाण तक कल इए शेयर्ड जीप टैक्सी मिल जाती है !
2- दिल्ली – से हरिद्वार – ऋषिकेश या देहरादून – वॉल्वो , ट्रेन से पहुंचा जा सकता है फिर वहाँ से बस – जीप टैक्सी और शेयर्ड जीप टैक्सी द्वारा कर्णप्रयाग होते हुए से देवाल – फिर देवाल से जीप टैक्सी द्वारा वाण पहुंचा जा सकता है और अगले दिन फिर मोनाल टॉप ट्रेक !
इस ट्रैक के लिए क्या उपकरण जरूरी है- जाड़ों में मोनाल टॉप के ट्रैक के लिए अच्छी किस्म के विंड और वाटरप्रूफ टैंट माइनस 10 डिग्री तापमान झेलने के लिए अच्छे स्लीपिंग बैग, मैट्रेस, अच्छे क्वालिटी का वाटरप्रूफ बैकपैक, पौंचू, टोपी, सनग्लास, ग्लव्स, ट्रैकिंग शूज़, थर्मलवियर, टार्च, टायलैट्रिज़ और आवश्यक दवायें रखना ना भूलें।
खाने -पीने की व्यवस्था- इस ट्रैक में कहीं भी कोई दुकान या ढाबे नहीं है इसलिए खाने का सामान और खाना पकाने के लिए छोटे गैस सिलेण्डर (ब्यूटेन सिलेण्डर) साथ में ले जाएं। अलग से ड्राई फ्रूट आदि रखना ना भूलें। शीतल हिमालयी जल मिनरल वाटर से कम नहीं है।
ध्यान रहे ट्रैकिंग के दौरान अकेले कहीं ना जाएं- कोई ना कोई साथ में अवश्य रहे। इस ट्रैकिंग में यह विशेष ध्यान रखने की जरूरत है कि शोरगुल ना करें, चटकीले-भड़कीले कपड़े ना पहनें, वनस्पति को नुकसान ना पहुँचायें और किसी भी प्रकार प्लास्टिक पालिथीन कचरा कहीं भी इधर-उधर ना फेंके।
सभी फोटो – हीरा सिंह बिष्ट