कैलाश मानसरोवर : अध्यात्म, धर्म, रहस्य और विज्ञान का अनोखा संगम

देहरादून :भोलेनाथ के भक्त उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में लिपुलेख पास से होते हुए ही कैलाश मानसरोवर जाते हैं. कैलाश मानसरोवर न सिर्फ सनातनियों, बल्कि अन्य धर्मों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. आज उसी के बारे में आपको विस्तार से जानकारी देते हैं.

आखिरी बार कैलाश मानसरोवर यात्रा साल 2019 में हुई थी. साल 2020 में कोरोना महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. उसके बाद भारत-चीन के बीच गलवान वैली को लेकर उपजे विवाद के चलते यात्रा शुरू ही नहीं हो सकी. अब भारत और चीन के बीच बनी सहमति के बाद यात्रा फिर शुरू हो रही है.

इस साल उत्तराखंड से ही होगी यात्रा: दरअसल, इस यात्रा के लिए भारत से दो मार्ग हैं. एक उत्तराखंड से और दूसरा सिक्किम से. तीसरा मार्ग नेपाल से होकर गुजरता है. इससे पहले ये यात्रा उत्तराखंड और सिक्किम की सरकारों की मदद से आयोजित होती थीं. उत्तराखंड में लिपुलेख के रास्ते और सिक्किम के नाथूला से होकर दूसरा रूट गुजरता है.

हालांकि, इस बार कैलाश मानसरोवर यात्रा का लिपुलेख दर्रा प्रमुख यात्रा मार्ग चिन्हित किया गया है. ऐसे में इस साल कैलाश मानसरोवर यात्रा केवल उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के लिपुलेख दर्रा पास से होकर गुजरेगी. इसके मद्देनजर कैलाश मानसरोवर यात्रा की जिम्मेदारी KMNV यानी कुमाऊं मंडल विकास निगम को सौंपी गई है. हालांकि, कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए लिपुलेख दर्रा पास ही प्रमुख मार्ग है.

दरअसल, KMNV साल 1981 से ही कैलाश मानसरोवर यात्रा का सफल संचालन कर रहा है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा दिल्ली से शुरू होती है, फिर उत्तराखंड के रास्ते पिथौरागढ़ जिले के लिपुलेख पास मार्ग से होते हुए पूरी होती है. इस बार यात्रा के लिए कुल 250 यात्री होंगे जो 50-50 यात्रियों के पांच दल बनाये गए हैं. लिपुलेख के कैलाश मानसरोवर की दूरी 65 किलोमीटर है.

कैलाश मानसरोवर यात्रा की धार्मिक मान्यता: कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का घर कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ही भगवान शिव माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं. भगवान शिव का निवास माने जाने के कारण हिंदू धर्म में इसका खास महत्व है. साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा को मोक्ष और आध्यात्मिक मुक्ति का प्रतीक भी माना जाता है.

इसके साथ ही कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड का केंद्र भी कहा जाता है.पुराणों में भी कैलाश मानसरोवर का जिक्र: मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण और शिव पुराण में कैलाश खंड नाम से एक-एक अलग अध्याय मौजूद हैं, जिनमें कैलाश पर्वत की महिमा का बखान किया गया है. मान्यता है कि कैलाश पर्वत से ऊपर स्वर्ग लोक और नीचे मृत्यु लोक है. यानी कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग का द्वार है.

इतिहासकार प्रो एमएस गुसाईं ने बताया कि कैलाश पर्वत पर सप्त ऋषि की गुफाएं हैं. इन सप्त ऋषियों में भारद्वाज, भृगु, गौतम, अत्रि, कश्यप, विश्वामित्र और वशिष्ठ शामिल हैं. सनातन धर्म के चार वेदों में ऋग्वेद को विश्व की प्राचीनतम पुस्तक माना जाता है, जिसमें कुल 10 मंडल हैं और दूसरे से 8वें मंडल के रचयिता भी यही सप्त ऋषि थे. ऐसे में कैलाश मानसरोवर की ऐतिहासिकता उत्तर वैदिक काल तक जाती है. उत्तर वैदिक काल 1000 से 600 ई० पूर्व के मध्य तक माना जाता है.

बौद्ध धर्म के लिए पूजनीय स्थल: बौद्ध धर्म के लोगों के लिए ‘डेमचोक’ पूजनीय स्थल है. कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने कैलाश मानसरोवर में तपस्या की थी और बुद्ध की माता ने यहां की यात्रा की थी. ऐसे में इस स्थान की प्रमाणिकता बौद्ध स्रोतों के अनुसार 600 ई० पूर्व तक जाती है.

इसी तरह बौद्ध संप्रदाय के लोग भी इसे अपना पवित्र स्थल मानते हैं.जैन धर्म के संतों का भी पवित्र स्थल: इस स्थान को जैन धर्म के लोग उनके पहले तीर्थंकर ऋषभदेव का निर्वाण स्थल मानते हैं. वहीं सनातन धर्म में इस बात की मान्यता है कि द्वापर युग में महाभारत होने के बाद पांडवों ने स्वर्गारोहण यात्रा शुरू की थी. आखिर में धर्मराज युधिष्ठिर कैलाश पर्वत से स्वर्ग की सीढ़ी चढ़े थे.

ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा 1981 से शुरू हुई है, बल्कि यह यात्रा वैदिक काल से ही संचालित हो रही है. कैलाश की 52 किमी लंबी परिक्रमा करने में लगभग दो से तीन दिन का समय लग जाता है. करीब 320 वर्ग मीटर में फैली कैलाश मानसरोवर झील को मन सरोवर यानी ब्रह्मा के मन से निर्मित माना जाता है. यही वजह है कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं में उत्साह रहता है.

कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान ही भक्तों को ओम पर्वत और नाभीढांग के भी दर्शन होंगे. इन दोनों की काफी मान्यता है. मुख्य रूप से कैलाश पर्वत एशिया के क्लाइमेट को कंट्रोल करता है, जिसे मेरुदंड माना गया है. शास्त्रों में भी इसे नाभि यानी सेंटर प्वाइंट माना गया है. इसके साथ ही इस क्षेत्र में मैग्नेटिक फोर्सेज भी काफी अधिक हैं, जो प्रभावित करते हैं. कैलाश मानसरोवर अपने आप में एक पिरामिड की तरह बना हुआ है, जो कॉस्मिक किरणों को कंसंट्रेट करता है.

कैलाश मानसरोवर के वैज्ञानिक पहलू: कैलाश मानसरोवर संबंधित वैज्ञानिक पहलुओं की बात करें तो, कैलाश मानसरोवर में असीमित चुंबकीय क्षेत्र का प्रवाह है, जहां पर सामान्य आदमी का रह पाना संभव नहीं है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में अलौकिक शक्तियां हैं. साथ ही वहां पर ओम की ध्वनि भी निकलती है जो लोगों को स्पष्ट रूप से सुनाई देती है. यही नहीं, वैज्ञानिक इस बात को मानते हैं कि कैलाश पर्वत ब्रह्मांड का केंद्र है, इसके एक तरफ उत्तरी ध्रुव और दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव स्थित है.

कैलाश मानसरोवर को जैन धर्म के लोग उनके पहले तीर्थंकर का निर्वाण स्थल मानते हैं. (ETV Bharat)
वैज्ञानिकों के अनुसार करीब 10 करोड़ साल पहले भूगर्भीय गतिविधियों के चलते कैलाश मानसरोवर पर्वत का निर्माण हुआ था. इसके साथ ही इस क्षेत्र में आज भी हिम मानव और कस्तूरी मृग मौजूद होने का दावा किया जाता है.

अब 22 दिनों में पूरी होगी यात्रा: कैलाश मानसरोवर की यात्रा पहले 28 दिन में संपन्न होती थी, लेकिन अब ये यात्रा 22 दिनों में पूरी हो जाती है. 30 जून 2025 को दिल्ली से 50 लोगों का पहला दल कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए रवाना होगा. ऐसे में 10 जुलाई को पिथौरागढ़ से दल लिपुलेख पास होते हुए चीन के कब्जे वाले तिब्बत में दाखिल होगा और 22 अगस्त को ये दल वहां से भारत के लिए वापस लौटेगा. यानी सिर्फ 22 दिनों में दल कैलाश मानसरोवर यात्रा को पूरा करेगा.

कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन कैसे करें? कैलाश मानसरोवर की यात्रा 30 जून से शुरू हो रही है. इसी दिन दिल्ली से 50 यात्रियों के पहले दल की रवानगी होगी. ऐसे में कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने के इच्छुक यात्रियों को विदेश मंत्रालय की ओर से तैयार की गई वेबसाइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन करना होगा.

दिल्ली में होगा स्वास्थ्य परीक्षण: कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले यात्रियों का दिल्ली में दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट द्वारा स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा. इसके बाद 50 यात्रियों का दल दिल्ली से उत्तराखंड के टनकपुर के लिए रवाना होगा. यात्रियों को टनकपुर और फिर धारचूला में एक-एक रात रुकना होगा.

इसके बाद गुंजी और नाभीढांग में दो-दो रात रुकने में बाद यात्री का दल तकलाकोट, चीन में प्रवेश करेगा. तकलाकोट में प्रवेश करने से पहले पिथौरागढ़ के गुंजी में आईटीबीपी के सहयोग से यात्रियों का फिर से स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा. ऐसे में कैलाश मानसरोवर का दर्शन करने के चीन से वापसी में ये दल एक रात बूंदी, एक रात चौकोड़ी और एक रात अल्मोड़ा में रुकने के बाद दिल्ली पहुंचेगा.

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