SCO में भारत की दहाड़

नई दिल्ली। इस्लामाबाद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक साथ पाकिस्तान और चीन को आईना दिखाया। एससीओ बैठक में जब बाकी सदस्य देश आपसी सहयोग बढ़ाने की बात कर रहे थे तब जयशंकर ने याद दिलाया की सीमा पार आतंकवाद से ना तो कारोबार बढ़ सकता है और ना ही संगठन के बीच कनेक्टिविटी हो सकती है।

इसी तरह से बैठक में शामिल चीन के पीएम ली शियांग की उपस्थिति में जयशंकर ने कहा कि सहयोग बढ़ाने के लिए दूसरे की भौगोलिक अखंडता व संप्रभुता को स्वीकार करना चाहिए।भारत के अपने दोनों बड़े पड़ोसी देशों चीन व पाकिस्तान के साथ रिश्ते अभी बेहद खराब हैं, ऐसे में जयशंकर ने कहा,’अगर दोस्ती कम हुई है या अच्छे पड़ोसी की भावना कम हुई है तो हमें गंभीरता से इसकी समीक्षा करनी चाहिए व इसके कारणों को खोजने की कोशिश करनी चाहिए।’

बुधवार को एससीओ के सदस्यों के सरकारों के प्रमुखों की बैठक हुई। बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में आपसी सहयोग को बढ़ाने के एक विस्तृत एजेंडे की घोषणा की गई है। इसमें आपसी कारोबार को बढ़ाने, सदस्यों के बीच ई-कामर्स को बढ़ावा देने, कनेक्टिविटी बढ़ाने, आपसी मुद्रा में कारोबार करने और एससीओ बैंक स्थापित करने की बात कही गई है।

भारत के अलावा हर सदस्य देश ने चीन की ‘वन बेल्ट-वन रोड’ (ओबोर) का समर्थन किया और इसे इस समूचे क्षेत्र के विकास के लिए जरूरी करार दिया है।भारत एससीओ की पूर्व की बैठकों में भी चीन की तरफ से प्रायोजित ओबोर परियोजना के समर्थन में नहीं रहा है।विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने भाषण में जब संप्रभुता का मुद्दा उठाया तो यह ओबोर के तहत चीन की तरफ से पाकिस्तान के कब्जे बाले कश्मीर इलाके में सड़क मार्ग के निर्माण को लेकर ही है।विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने भाषण में एससीओ के गठन के समय की आचार-संहिता की तरफ सभी का ध्यान आकर्षित करवाया।

जयशंकर ने कहा कि आचार-संहिता में यह साफ है कि हमारे समक्ष क्या चुनौतियां हैं। इसमें तीन चुनौतियों की बात है- आतंकवाद, अतिवाद और पृथकतावाद। आज के संदर्भ में ये बातें और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई हैं। इस बारे में हमारे बीच बेहद ईमानदारी से चर्चा होनी चाहिए।

विदेश मंत्री ने कहा कि आचार-संहिता में साफ है कि हमें उक्त तीनों मुद्दों पर अडिग रहना चाहिए। अगर सीमा पार की गतिविधियां आतंकवाद, अतिवाद व पृथकवाद बढ़ाने से चिन्हित होती रहें तो इससे ना तो कारोबार बढ़ेगा, ना ही ऊर्जा में सहयोग होगा और ना ही आम लोगों के बीच संपर्क बढ़ेगा।

विदेश मंत्री ने आगे कहा कि सहयोग सिर्फ परस्पर आदर व बराबर की संप्रभुता के स्तर पर हो सकता है। यह सही मायने में साझेदारी पर आगे बननी चाहिए, ना कि किसी के एजेंडे के आधार पर। कारोबार व आवागमन क्षेत्र मे भी हम इसी तरह से चुनिंदा कदम उठाते रहे तो आगे नहीं बढ़ सकेंगे।

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