सीमावर्ती क्षेत्रों में नशीली दवाओं का बढ़ता खतरा

उदय दिनमान डेस्कः युवाओं में नशे की लत एक गंभीर और तेजी से बढ़ती समस्या है। नशे की लत का प्रभाव व्यक्ति के जीवन के हर पहलू पर पड़ता है—शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक। शारीरिक स्वास्थ्य पर इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। नशा युक्त व्यक्ति मनुष्यत्व से परे हो जाता है क्योंकि नशा व्यक्ति के विवेक को निलंबित कर देती है और विवेकहीन व्यक्ति पशु के समान माना गया है।

विश्व में प्रचलित लगभग हर धर्म में किसी भी प्रकार के नशे के सेवन को निषिद्ध माना गया है यथा गरुड़ पुराण में कहा गया है कि “मद्यपानं तु न करोति धर्मज्ञः” अर्थात् “जो धर्म को जानने वाला है, वह कभी मद्यपान नहीं करता।” धार्मिक समाजों से इतर आधुनिक धर्मनिरपेक्ष समाजों में भी नैतिक नियमों के साथ ही विभिन्न क़ानूनों के माध्यम से नशा संपृक्त व्यवहार को नियंत्रित करने के उपाय किए गए है।

नशे की लत के शिकार व्यक्ति में हिंसा का सहारा लेने की प्रवृति अधिक होती है और वह आसानी से असामाजिक गतिविधियों की ओर आकर्षित हो सकता है, जिस से वह राष्ट्र को नुकसान पहुंचाने वालों के हाथों में एक हथियार बन जाता है।

हाल के वर्षों में, मुस्लिम युवाओं में ड्रग्स की लत में खतरनाक वृद्धि धार्मिक, सामाजिक/सामुदायिक और राष्ट्रीय दृष्टि से एक गंभीर मुद्दा बन गई है। ड्रग्स (नशीली दवाओं) का दुरुपयोग न केवल मुस्लिम समुदाय के नैतिक ताने-बाने को नष्ट कर रहा है, बल्कि समाज और पूरे राष्ट्र पर दीर्घ कालिक हानिकारक प्रभाव भी डाल रहा है। कश्मीर और पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नशे की लत का बढ़ना विशेष रूप से चिंताजनक है।

ये क्षेत्र सीमापार से होने वाली हेराफेरी का लक्ष्य बन गए हैं, नशे की लत में खोई एक पीढ़ी न केवल व्यक्तिगत बल्कि राष्ट्रीय क्षति भी है। एम्स और नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (एनडीडीटीसी) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि जम्मू-कश्मीर में छह लाख लोग नशे के आदी हैं, जो केंद्र शासित प्रदेश की आबादी का लगभग 4.6% है इनमें से 90% ड्रग उपयोग कर्ता (17-33) साल की आयु वर्ग के हैं।

रिपोर्टों से पता चलता है कि पाकिस्तान युवाओं को भ्रष्ट करने के लिए ड्रग्स का इस्तेमाल कर रहा है। कश्मीर में, जहाँ राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पहले से ही नाजुक है, ड्रग्स की आमद ने संकट को और गहरा कर दिया है। हाल के वर्षों में पाकिस्तान ने कश्मीर में संघर्ष को ज़िंदा रखने और घाटी के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने के लिए दोहरी रणनीति अपनाई हुई है और इसके तहत वो सीमापार से हथियारों के साथ-साथ ड्रग्स भी भेज रहा है। पूरे कश्मीर में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली ड्रग हेरोइन है जो सीमापार से तस्करी कर के लाई जाती है।

सरहद के उस पार से ड्रग्स की तस्करी, आतंकवाद की वित्तीय मदद के लिए ऑक्सीजन का काम करती है और अगर जल्द ही इस पर क़ाबू न पाया गया तो, इससे इस इलाक़े के नौजवानों की ज़िंदगी तबाह हो जाएगी। हेरोइन जैसी ड्रग्स बेचने से हासिल हुई रक़म अलगाववादी  और अन्य देश विरोधी गतिविधियां चलाने में मदद करती है। हाल के दिनों में आतंकवाद के जितने मॉड्यूल सुरक्षा एजेंसियों ने ध्वस्त किए हैं उससे समाज और सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती का अंदाज़ा लगता है।

इसको देखते हुए व इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने हर ज़िले में नौजवानों को सलाह मशविरा देने के लिए काउंसेलिंग सेंटर भी खोले हैं, जिनमें बहुत तजुर्बेकार सलाहकार और डॉक्टर तैनात किए गए हैं। ड्रग्स के ख़िलाफ़ जानकारी बढ़ाने के लिए प्रशासन और सुरक्षाबल सार्वजनिक लेक्चर, सेमिनार और वर्कशॉप भी आयोजित कर रहे हैं। हालांकि, हैरानी की बात ये है कि कश्मीरघाटी में तेज़ी से बढ़ रही नशाखोरी और मुश्किल हालात को लेकर मज़हबी नेता बिल्कुल ख़ामोश हैं।

इससे पता चलता है कि ‘अनौपचारिक नियंत्रण व्यवस्था’ वाली कश्मीर घाटी के अनूठे ताने-बाने को किस तरह बर्बाद कर दिया गया है। अगर सामुदायिक नेता चाहे तो पूरी पीढ़ी बर्बाद होने से बच जाएगी चुकि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में धर्म का दखल कमोबेश होता ही है मुस्लिम युवक भी इस्लाम की विभिन्न मान्यताओं से नियंत्रित एवं प्रभावित होते हैं।

जब हम इस्लाम में मादक द्रव्यों के संबद्ध में निषेधों को देखते है तो ज्ञात होता है कि इस्लामिक परंपराओं में नशे से दूर रहना धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी माना जाता है क्योंकि यह मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है। नशे के कारण परिवार और समाज में अनैतिक और अनियमित आचरण बढ़ सकते हैं और यही वजह है कि इस्लाम में इसे सख्ती से मना किया गया है।

इस्लाम में नशा करना हराम (निषिद्ध) माना गया है। इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, नशा ऐसी चीज़ों में शामिल है जो इंसान की बुद्धि, समझ और विचार को कमजोर कर देती है, और उसे अनुचित कार्यों की ओर प्रेरित करती है।

कुरान में शराब और नशे के अन्य स्रोतों के बारे में स्पष्ट रूप से कहा गया है, कुरान (सूरह अल-बक़रह 2:219) में वर्णित है कि “वे आपसे शराब और जुए के बारे में पूछते हैं। कहो कि उनमें बड़ा गुनाह है, और लोगों के लिए कुछ लाभ भी हैं, लेकिन उनका गुनाह उनके लाभ से अधिक बड़ा है।”;कुरान (सूरह अल-मायदा 5:90) में लिखा है कि “हे ईमान वालो! शराब, जुआ, पत्थर के बुत और तीर से क़िस्मत पूछना ये सब नापाक शैतान के काम हैं।

इससे बचो ताकि तुम सफल हो सको।” इस्लामी या मुस्लिम धर्म में ऐसे सिद्धांत हैं जो शरीर में हानिकारक पदार्थों के उपयोग को प्रतिबंधित करते हैं। इनमें से कुछ में संयम, शांति, आत्म-जागरूकता, आध्यात्मिक जागरूकता, प्रार्थना और आत्म-अनुशासन शामिल हैं।

ऐसे सिद्धांतों से भरा जीवन जीने में, व्यक्ति अल्लाह या ईश्वर के साथ एक मजबूत बंधन बना सकता है, और मादक द्रव्यों के सेवन में संलग्न होने की बहुत कम आवश्यकता महसूस करता है। वे इस्लाम के नियमों का भी पालन कर सकते हैं, क्योंकि वे शराब और अफ़ीम दोनों के नशे को प्रतिबंधित करते हैं। इन निषेधों के बावजूद, इस्लाम के कई अनुयायी मादक द्रव्यों के सेवन की समस्याओं से पीड़ित हैं।

अल्पसंख्यक के रूप में मुस्लिम युवा एक अति संवेदनशील समुदाय है हर अल्पसंख्यक समूह की भाँति असुरक्षा की भावना इस समूह में भी स्वाभाविक रूप से अंतर्निहित है और इसी असुरक्षा बोध का फ़ायदा उठा कर तमाम विदेशी और कट्टरपंथी ताक़तें देश विरोधी कृत्यों के लिए युवाओं को बरगलाने का कुत्सित प्रयास करते रहते है और इसी क्रम में ड्रग्स और अन्य मादक द्रव्यों का व्यसनी बनाकर मुस्लिम युवकों को आसानी से ग़लत रास्ते पर भटकाया जा रहा है।

एक राष्ट्र के रूप में इस मुल्क की भी ज़िम्मेदारी है कि उसके युवा ग़लत रास्ते पर ना जाएँ इसके साथ ही समाज और विभिन्न सामाजिक संगठनों को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है; इस क्रम में नागरिक संगठनों की सक्रिय ज़िम्मेदारी हो जाती है कि देश के भविष्य युवाओं को रचनात्मक कार्यों में संलग्न करके उनको बर्बादी की राह से हटाया जाय।

”राज्य” को चाहिए कि अल्पसंख्यक समूहों और विशेषकर संवेदनशील क्षेत्रों के सुभेद्य समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए विशेष पैकेज ,उनके शिक्षा और रोज़गार के लिए विशेष प्रावधान करे साथ ही जो मुस्लिम युवा नशे के गिरफ़्त में है उनके काउंसिलिंग, उपचार और पुनर्वास की सम्यक्व्यवस्था की जाय।

प्रो बंदिनी कुमारी,लेखिका समाज शास्त्र की प्रोफेसर हैं और उत्तर प्रदेश के डिग्री कॉलेज में कार्यकर्ता हैंI

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *