सीरिया :सीरिया में बशर अल-असद के तख्तापलट से वहां पूरी तरह विद्रोहियों का कब्जा हो गया है. लेकिन सवाल ये है कि जो अशद 13 साल से विद्रोहियों को कुचलने में लगे थे. उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं दे रहे थे, तो 6 महीने में ऐसा क्या हो गया कि अशद को ही देश छोड़कर भागना पड़ा. दरअसल, इसके पीछे ‘हिजबुल्लाह कनेक्शन’ है. वही हिजबुल्लाह, जिसे इजरायल ने तबाह कर दिया और उसके आका ईरान को मैदान छोड़कर भागना पड़ा.
जेरूशलम पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, अशद इजरायल के भी कट्टर दुश्मन थे. वे हिजबुल्लाह को हथियार मुहैया कराते थे. बदले में हिजबुल्लाह उन्हें मदद करता था. जब भी विद्रोहियों ने अशद की सत्ता को उखाड़ फेंकने की कोशिश की, हिजबुल्लाह ने अपने लड़ाके उतार दिए.
अशद की सेना को गोला बारूद मुहैया कराया. लेकिन छह महीने में इजरायल ने हिजबुल्लाह की ऐसी हालत कर दी कि वह अशद की मदद तो छोड़िए, खुद को भी बचा नहीं पाया. उसके ज्यादातर कमांडर मार दिए गए. गोला-बारूद वाली फैक्टरियां तबाह हो गईं. हथियार मिलने बंद हो गए.
उधर, ईरान भी कमजोर पड़ गया. क्योंकि पहले उसने हमास को मदद की और बाद में पूरी ताकत हिजबुल्लाह को बचाने में लगा दी. इजरायल ने उसे भी नहीं छोड़ा. ईरान के अंदर घुसकर हमले किए, इससे ईरान के पास वो ताकत नहीं बची कि अशद को मदद दे सके. तभी तो चंद दिन पहले ईरान सीरिया छोड़कर भाग गया. वह न तो हिजबुल्लाह को बचा पाया और न ही हमास को. अब असद के तख्तापलट से मिडिल ईस्ट में उसकी बची खुची साख भी खत्म हो गई.
इसकी एक कड़ी रूस भी है. रूस अशद को समर्थन करता था. गोला बादरू मुहैया कराता था, जिसके दम पर असद विद्रोहियों पर भारी पड़ते थे. लेकिन यूक्रेन युद्ध की वजह रूस भी अशद की मदद उस तरह से नहीं कर पाया. इसी का फायदा विद्रोहियों ने उठाया. उसे पता था कि हिजबुल्लाह कमजोर पड़ चुका है.
ईरान अशद को मदद देने की स्थिति में नहीं है. रूस खुद परेशान है. बस फिर क्या था, जिस दिन हिजबुल्लाह के साथ सीजफायर पर बात हो रही थी, उसी दिन विद्रोहियों ने लड़ाई तेज कर दी. और चंद दिनों में अशद की सत्ता को उखाड़ फेंका. असद को रूस और ईरान पर निर्भरता भारी पड़ी.