गढ़वाल: यहां थे 300 से भी अधिक गढ़ !

श्रीनगर गढ़वाल: उत्तराखंड का गढ़वाल क्षेत्र अपनी अलग पहचान और इतिहास के लिए प्रसिद्ध है. इसे पहले 52 गढ़ों का देश कहा जाता था, लेकिन क्या आपको पता है कि यहां असल में 300 गढ़ थे, हालांकि, जो बड़े गढ़ थे और जिनके वास्तविक अवशेष आज भी मिलते हैं, वे केवल 32 ही थे.

इन गढ़ों में से सबसे बड़ा गढ़ चांदकोट गढ़ था. हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय का इतिहास विभाग कई सालों से इन गढ़ों के अस्तित्व को लेकर शोध कर रहा है, और पुरातात्विक तथा ऐतिहासिक स्थलों से इन गढ़ों के होने के साक्ष्य जुटा रहा है. इस शोध के दौरान विभाग को गढ़वाल क्षेत्र में 52 से अधिक 300 गढ़ मिले हैं.

वहीं विभाग अब इन गढ़ों के मूल स्थानों को भी तलाश रहा है, ताकि यह ज्ञात हो सके कि गढ़वाल राजवंश के समय इन गढ़ों की क्या भूमिका रही होगी. प्राचीन समय में राजाओं ने सुरक्षा की रणनीति के तहत इन गढ़ों का निर्माण करवाया, ये गढ़ राजा और उनके सामंतों के लिए अभेद्य किले की तरह काम करते थे.

इन गढ़ों का प्रमुख किसी एक व्यक्ति को नियुक्त किया जाता था, जिसे गढ़पति कहा जाता था. इन गढ़ों के क्षेत्र से राजा को कर और अनाज की प्राप्ति होती थी. इतिहासकारों के अनुसार, 1515 में पंवार वंश के राजा अजयपाल ने सभी गढ़ों को जीतकर एक गढ़वाल राज्य की स्थापना की. तब से इस क्षेत्र को गढ़वाल कहा जाने लगा.

इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर नागेंद्र रावत पिछले कई वर्षों से इन गढ़ों पर अध्ययन और शोध कर रहे हैं. नागेंद्र रावत ने बताया कि गढ़वाल क्षेत्र में छोटे-बड़े गढ़ों को मिलाकर कुल 300 के आसपास गढ़ हैं, और यह संख्या इससे भी अधिक हो सकती है.

वहीं, बड़े गढ़ों की संख्या लगभग 32 है, जबकि बाकी छोटे-छोटे गढ़ हुआ करते थे. जहां राजा के सैनिक और सैन्य चौकियां होती थीं, वे वहां से पूरे क्षेत्र पर निगरानी रखते थे. ये सभी गढ़ ऊंचाई वाली जगहों पर स्थित होते थे, जहां पहुंचना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता था.

दुनिया के अलग-अलग देशों में राजाओं या शासकों द्वारा अभेद्य जगहें बनाई जाती थीं, जो किले की तरह होती थीं. इन जगहों को किला, दुर्ग, फोर्ट या गढ़ कहा जाता था. कई जगहों पर राजा स्वयं रहते थे, ये बड़े गढ़ होते थे, जहां राजा के साथ सैनिक, युद्ध का सामान, अनाज, धन समेत सारी व्यवस्थाएं होती थीं. लेकिन कुछ उपगढ़ भी होते थे, जिनमें छोटे-छोटे गढ़पति होते थे, जो राजा का राजकाज देखते थे. बाहरी आक्रमणकारियों पर नजर रखना, प्रजा से कर वसूलना, और अन्य तमाम कार्य भी वही करते थे.

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