हरिद्वार में गंगाजल पीने योग्य नहीं !

हरिद्वार।  हरि के द्वार हरिद्वार में गंगा बीमार है और सिस्टम लाचार। इसी लाचारी के कारण यहां गंगाजल की शुद्धता बी श्रेणी की है यानी गंगाजल स्नान योग्य तो है, लेकिन पीने योग्य नहीं। गंगाजल की मासिक गुणवत्ता मापने वाले उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट यह बता सामने आई है।

हरिद्वार में गंगाजल में घुलनशील अपशिष्ट (फिकल कोलिफार्म, मल-मूत्र) और घुलनशील आक्सीजन (बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड) का स्तर मानक के अनुरूप है। गंगाजल सहित सभी नदियों के जल को पीने योग्य बनाने के लिए उसका ट्रीटमेंट करना अति-आवश्यक होता है। इसलिए हरिद्वार में गंगाजल का पीने योग्य न होना अनुचित नहीं है।
गंगाजल की गुणवत्ता का स्तर पीने योग्य नहीं

हरिद्वार में गंगाजल में घुलनशील अपशिष्ट की मात्रा इतनी अधिक नहीं है कि वह गंगा के जलीय जंतुओं के खतरा बन जाए। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (हरिद्वार) के क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह के अनुसार पीसीबी नियमित तौर पर हर माह हरिद्वार जिले में दूधियावन, हरकी पैड़ी सहित सुल्तानपुर क्षेत्र के जसपुर (रंजीतपुर) तक 12 अलग-अलग स्थानों पर गंगाजल की गुणवत्ता जांचता है।

उसकी जांच रिपोर्ट बताती है कि इन सभी स्थानों पर गंगाजल की गुणवत्ता का स्तर कहीं भी पीने योग्य नहीं है। इसमें गंगा की मुख्य धारा सहित गंगनहर से होकर प्रवाहित होने वाले गंगाजल की गुणवत्ता जांच शामिल है। गंगनहर से होकर प्रवाहित हो रहा गंगाजल कई स्थानों पर गंगा की मुख्यधारा में समाहित हो जाता है।

विशेष यह कि गंगा तीर्थ होने के कारण हरिद्वार में हर वर्ष देश-विदेश से करोड़ों की संख्या श्रद्धालु गंगा स्नान को आते हैं और गंगाजल धार्मिक कार्यों और नियमित सेवन को यहां से गंगाजल लेकर जाते हैं। इसका दूसरा पक्ष यह है कि यही श्रद्धालु गंगा नदी व विभिन्न गंगा घाटों पर बड़ी मात्रा में गंदगी छोड़ जाते हैं, जो कि गंगाजल की गुणवत्ता को बुरी तरह से प्रभावित करती है।

इसी वर्ष 22 जुलाई से दो अगस्त तक चले कांवड़ मेले में पहुंचे श्रद्धालु 11 हजार मीट्रिक टन कूड़ा गंगा घाटों पर छोड़ गए थे, इसमें बड़ी मात्रा में अपशिष्ट भी शामिल था। यह कूड़ा गंगा में भी प्रवाहित हुआ। इसके अलावा तमाम रोकथाम व सावधानी के बावजूद शहरी क्षेत्र में प्रतिदिन निकलने वाली सीवरेज गंदगी का एक हिस्सा किसी न किसी तरह गंगा में प्रवाहित हो रहा है, जो उसके जल की गुणवत्ता को नष्ट कर रहा है।

गंगाजल के पीने योग्य न होने का सबसे बड़ा कारण गंगा में गिरने वाला शोधित-गैर शोधित सीवरेज जल व ड्रेनेज जल है। इसीलिए तमाम प्रयासों के बावजूद हरिद्वार में गंगाजल को पीने योग्य नहीं बनाया जा सका है।
हरिद्वार में सीवरेज जल को शोधित करने वाली 68 और 14 एमएलडी एसटीपी का संचालन कर रहे जल निगम के अभियंता विशाल कुमार कहते हैं कि सिंचाई की आवश्यकता वाले महीनों के दौरान शोधित सीवरेज जल का 50 प्रतिशत किसानों को चला जाता है और बाकी का गंगा में जाता है। लेकिन, जब किसानों को उसकी आवश्यकता नहीं होती तो मजबूरन उसे सीधे गंगा में डालना पड़ता है।

बताया कि कुछ मौकों पर क्षमता से अधिक सीवरेज जल आने पर हम लोग एसटीपी का सर्किल समय कम कर उसे शोधित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब इससे भी बात नहीं बनती है तो कभी-कभी बिना शोधित सीवरेज-ड्रेनेज जल को भी सीधे गंगा में डालना पड़ता है।

बीओडी (बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड), जिसे जैविक आक्सीजन मांग भी कहा जाता है, पानी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों (अपशिष्ट ) को नष्ट करने के लिए आक्सीजन की आवश्यक मात्रा को मापने का तरीका है।
यह अपशिष्ट जल में कार्बनिक प्रदूषण का पता लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले चार सामान्य परीक्षणों में से एक है, जो कि खास समय अवधि और तापमान पर पानी के नमूने में मौजूद एरोबिक बैक्टीरिया की उपभोग की जाने वाली आक्सीजन की मात्रा को मापता है।

नहाने योग्य नदी जल के लिए आक्सीजन का मानक पांच मिली ग्राम प्रति लीटर होता है। इसी तरह फिकल कोलिफार्म नदी जल में मौजूद अपशिष्ट (मल-मूत्र) की मात्रा को बताता है। पीसीबी के अनुसार नहाने योग्य नदी जल के लिए इसका मानक 50 एमपीएन प्रति मिलीलीटर से कम है। हरिद्वार के गंगाजल में बीओडी और फिकल कोलिफार्म अपने-अपने मानकों के अंदर पाई गई है।

हरिद्वार महिला अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा. संदीप निगम ने बताया कि बी श्रेणी का जल, जो मेडिकल साइंस के अनुसार नहाने योग्य तो है, लेकिन पीने योग्य नहीं, को पीने से पेट संबंधी जलजनित रोग होने का खतरा रहता है। इसमें डायरिया, टायफाइड, गेस्ट्रोइंटेराइटिस सहित अन्य बीमारियां शामिल हैं।

डा. संदीप निगम ने बताया कि इसी तरह जो नदी जल स्नान योग्य भी नहीं (सी श्रेणी) होता, उसका उपयोग इन बीमारियों सहित त्वचा संबंधी अनेक तरह के विकार व व्याधि उत्पन्न करता है।

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