उत्तरकाशी: सिलक्यारा टनल हादसे को हुए सात दिन हो गए हैं। टनल में फंसी 40 जिंदगियों को सकुशल टनल से बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है। इस रेस्क्यू ऑपरेशन में केंद्रीय एजेंसियों के साथ 200 लोगों की टीम 24 घंटे काम कर रही है।
नेशनल हाईवे एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल), एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, बीआरओ और नेशनल हाईवे की 200 से ज्यादा लोगों की टीम 24 घंटे रेस्क्यू में जुटी है। भारतीय वायुसेना ने टनल में फंसी जिंदगियों को बचाने के लिए 27,500 किलोग्राम रेस्क्यू इक्यूप्मेंट को कड़ी चुनौती के बीच बजरी वाले एयरस्ट्रिप पर पहुंचाया है।
संकट से निपटने के लिए थाईलैंड, नार्वे, फिनलैंड समेत कई देशों के एक्सपर्ट से भी ऑनलाइन सलाह ली जा रही है। साथ ही भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना की भी इस रेस्क्यू ऑपरेशन में मदद ली जा रही है। लेकिन अभी तक कोई सफलता हाथ नहीं लगी है।
इस बीच भारतीय वायुसेना ने बेहद मुश्किल और चुनौतीपूर्ण हालात में एक रेस्क्यू इक्यूप्मेंट को पहाड़ों में बजरी वाले एयरस्ट्रिप पर पहुंचाया है। इस इक्यूप्मेंट की मदद से ड्रिलिंग करके मलबे को हटाया जाएगा, ताकि मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने का काम शुरू किया जा सके।
भारतीय वायुसेना के लिए ये ऑपरेशन बहुत मुश्किल था। धरासू में एएलजी यानि एडवांस लैंडिंग ग्राउंड की लंबाई बहुत कम है और वहां वायुसेना के विमान वजनदार रेस्क्यू इक्यूप्मेंट की वजह से हाई लैंडिंग वेट के साथ आ रहे थे। इसकी जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि इस इक्यूप्मेंट का वजन एक पूरी तरह से लोडेड बड़े ट्रक के बराबर है।
आपको बता दें कि, इस मिशन की मंजूरी मिलने से पहले अमेरिकी मूल के सी-130जे सुपर हरक्यूलिस के पायलटों ने रनवे की स्थिति और ऑपरेशन के दौरान आने वाली दिक्कतों का अच्छे से जायजा लिया था। वहीं सूत्रों ने बताया कि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसे महत्वपूर्ण ऑपरेशनों के लिए एडवांस लैंडिंग ग्राउंड का दूसरे हेलिकॉप्टर से भी मुआयना किया गया था।
सिल्क्यारा टनल से धरासू एडवांस लैंडिंग ग्राउंड की दूरी लगभग 30 किमी है। 3600 फीट (1.1 किमी) की छोटी और संकरी एयरस्ट्रिप है। लेकिन यही एयरफोर्स के विमान के लिए सबसे नजदीकी एडवांस लैंडिंग ग्राउंड था। वहीं धरासू एडवांस लैंडिंग ग्राउंड पर 2 सी-130जे की लैंडिंग हो सकती है या नहीं इसके लिए पहले इसका मुआयना किया गया। इसमें 2 सी-130जे ने रेस्क्यू इक्यूप्मेंट की जांच के लिए आगरा और पालम के लिए उड़ान भरी थी।
गौरतलब है कि, वायुसेना का ये पूरा मिशन दो अहम पहलुओं पर निर्भर था। पहला धरासू एडवांस लैंडिंग ग्राउंड की फिटनेस रिपोर्ट और दूसरा ऑपरेशन की सफलता पर निर्भर था। वहीं सूत्रों ने बताया कि, डिपार्चर के दौरान कम विजिबिलिटी की स्थिति, एक छोटी और संकरी एयरस्ट्रिप पर हेवीवेट लैंडिंग और लिमिटेड जगह में ऑफलोडिंग (कार्गो) की चुनौतियों के बीच ये मिशन शुरू किया गया था।
धरासू एडवांस लैंडिंग ग्राउंड के पास सी -130जे से हेवीवेट इक्यूपमेंट को उतारने के लिए जरूरी स्पेशल मशीनें भी नहीं थी। हैवीवेट इक्यूपमेंट को उतारने के लिए लोकल लेवल पर मिट्टी का एक अस्थायी रैंप बनाया गया था। साथ ही सी-130जे को उड़ाने वाले भारतीय वायुसेना के एयरक्रू का पूरा प्रोफेशनलिज्म साफ था। पूरे ऑपरेशन को 5 घंटे से भी कम समय के अंदर अंजाम दिया गया था।
बता दें कि उत्तरकाशी में टनल धंसने वाला हादसा 12 नवंबर की सुबह 5.30 बजे हुआ था। इसमें वहां काम कर रहे 40 मजदूर फंस गए। ये मजदूर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हैं।
टनल में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए अब थाईलैंड और नॉर्वे की स्पेशल रेस्क्यू टीमों से मदद ली जा रही है। वहीं टनल में फंसे हुए सभी मजदूर सुरक्षित हैं और उन्हें एयर कंप्रेस्ड पाइप के जरिए ऑक्सीजन, दवाएं, खाना और पानी दिया जा रहा है।
रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी ऑगर मशीन की बेयरिंग खराब हो गई है। इसके कारण मशीन पाइप पुश नहीं कर पा रही है। टनल के अंदर अब तक 22 मीटर ही खुदाई की गई है। साथ ही अब तक सुरंग में पांच पाइप ड्रिल करने के बाद डाले जा चुके हैं।
साथ ही इंदौर से जो तीसरी मशीन मंगाई जा रही थी, वो देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर पहुंच चुकी है। इसके बाद इस मशीन को एयरलिफ्ट कर के उत्तरकाशी तक पहुंचाया जायेगा। उसके बाद इसे टनल में इंस्टाल करने का काम किया जायेगा। उसके बाद फिर से रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया जायेगा।