अयोध्या: भारतीय आस्था और सनातन परंपरा में राम समरसता और सामूहिकता के आदर्श के तौर पर देखे जाते हैं। अयोध्या में बन रहा उनका मंदिर भी इन मूल्यों को समेटे हुए है। नागर शैली में बन रहे राममंदिर के परिसर में दक्षिण की द्रविण शैली का भी प्रभाव दिखेगा, तो पंचायतन परंपरा का भी अक्स उभरेगा। मंदिर में प्रवेश पूरब द्वार से मिलेगा। 33 सीढ़ियां चढ़ने के बाद मंदिर में प्रवेश होगा। परिक्रमा और दर्शन के बाद निकास दक्षिण से होगा।
श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंगलवार को निर्माणाधीन मंदिर की विशेषताओं की जानकारी दी और परिसर का भ्रमण भी कराया। मंदिर का पूरा कॉम्प्लेक्स 70 एकड़ का है, जिसमें 25-30% ही निर्मित क्षेत्र होगा, बाकी हरित क्षेत्र होगा।
22 जनवरी को जब पीएम रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे तब तक भूतल और पूरब में बन रहा मुख्य प्रवेश द्वार तैयार हो चुका होगा। प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा। नृत्य, रंग, सभा, प्रार्थना और कीर्तन के पांच मंडप भी स्थापित किए जा रहे हैं। 2.70 एकड़ में बन रहे मंदिर परिसर के भीतर अलग-अलग 44 द्वार होंगे।
ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि मंदिर परिसर अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर होगा। यहां दो STP और एक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट होंगे। 400 फीट नीचे से पानी निकाला जाएगा। एक फायर स्टेशन भी होगा। करीब 25 हजार लॉकर होंगे, जहां सामान फ्री जमा कर दर्शन के लिए जाया जा सकेगा।
चंपत राय ने बताया कि मंदिर का स्वरूप नागर शैली का है जो उत्तर भारतीय मंदिरों की विशेषता है। लेकिन, इसके चारों ओर आयताकार परकोटा बन रहा, जो दक्षिण के मंदिरों की निर्माण शैली है। परकोटे के चारों कोनों पर चार मंदिर- भगवान सूर्य, गणपति, शिव और देवी भगवती के होंगे। बीच में रामलला विराजमान होंगे।
मंदिर निर्माण की सबसे बड़ी चुनौती यहां की बलुई मिट्टी थी। इस कारण छह एकड़ परिसर की 14 मीटर गहराई तक की पूरी मिट्टी हटाई गई, फिर इसे स्टोन डस्ट व फ्लाई ऐश से भरा गया। इसके बाद 1-1 फीट की 56 RCC संरचना बनाकर कृत्रिम चट्टान बनाई गई। इस पर ग्रेनाइट की प्लिंथ तैयार की गई है। मंदिर की पूरी संरचना में 21 लाख क्यूबिक फीट पत्थर लगेंगे।