हल्द्वानी :सोमवार देर रात बेतालघाट क्षेत्र में हुए हादसे में सात नेपाली श्रमिकों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी। मंगलवार को परिवहन विभाग की टीम हादसे की वजह जानने के लिए मौके पर पहुंची। विभाग का कहना है कि घटना की वजह रफ्तार या खतरनाक मोड़ नहीं बल्कि वाहन उस समय खड़ा था।
प्रथमदृष्टया यह माना जा रहा है कि खड़ी गाड़ी के पिछले टायर तेज ढलान की ओर थे। गाड़ी इस गति से नीचे की तरफ यानी खाई की ओर बढ़ी कि लोग कुछ समझ नहीं पाए। बेतालघाट के ऊंचाकोट क्षेत्र में जल जीवन मिशन से जुड़े कामों में नेपाली श्रमिक पिछले डेढ़ माह से जुटे हुए थे।
सोमवार देर रात इन्हें पिकअप से पहले रामनगर पहुंचना था। यहां से गांव यानी नेपाल का सफर शुरू होता। मगर रात करीब साढ़े दस वाहन गहरी खाई में गिर गया। हादसे में आठ लोगों की जान चली गई जबकि दो घायलों का एसटीएच में उपचार चल रहा है।
वहीं, आरटीओ नंदकिशोर ने बताया कि मंगलवार को टैक्स अधिकारी मुकुल कुमार और आरआइ भानू प्रकाश घटनास्थल पर पहुंचे। गाड़ी का तकनीकी मुआयना भी किया। वाहन के टायर ठीक स्थिति में है। फिटनेस समेत अन्य कागज भी पूरे थे। यानी तकनीकी तौर पर कोई खामी नहीं थी।
आरटीओ के अनुसार फिलहाल यह बात सामने आई है कि घटना के समय खड़ी गाड़ी में लोग चढ़-उतर रहे होंगे। पिछले टायर तेज ढलान में होने और अचानक इस हिस्से में ही भार बढ़ने पर पिकअप तेजी से खाई की ओर चली गई। इस स्थिति में हैंड ब्र्रेक भी काम नहीं करता।
विभाग के अनुसार मुख्य सड़क से जुड़े लिंक मार्ग पर यह हादसा हुआ था। पर्वतीय क्षेत्र में अधिकांश ऐसे मार्गों पर स्थानीय लोगों के वाहन चलते हैं। हालांकि, आधिकारिक तौर पर यह वाहनों का मार्ग नहीं था।
पहाड़ पर चढ़ने वाले पर्यवेक्षक नीचे दौड़ा रहे बाइक परिवहन विभाग में वरिष्ठ प्रवर्तन पर्यवेक्षकों के पद सृजित करने का एक मुख्य उद्देश्य यह था कि पर्वतीय क्षेत्र में यह चेकिंग करेंगे। क्योंकि, इन दुर्गम इलाकों में चेकिंग को लेकर ज्यादा संसाधन नहीं है। मगर पोस्टिंग के बाद सभी को मैदान में उतार दिया गया।
यहां सीपीयू की तरह ये बाइकों से नियम उल्लंघन करने वालों का चालान काटते हैं। मौतों पर नेताओं की संवेदना शून्य क्यों? सात नेपाली श्रमिकों संग आठ लोगों ने इस हादसे में जान गंवा दी।
पुलिस-प्रशासन रात में ही मौके पर पहुंच गया। मंगलवार को एडीएम शिवचरण द्विवेदी ने एसटीएच में भर्ती दो घायलों का हाल-चाल भी जाना। लेकिन नेताओं ने संवेदना व्यक्त करना भी जरूरी नहीं समझा। न ही मुआवजे की मांग की।