उदय दिनमान डेस्कः भारत में धार्मिक आस्था गहरी जड़ों से जुड़ी हुई है, और इसी आस्था के आधार पर कई बार अवैध धार्मिक स्थलों का निर्माण होता है। अवैध धार्मिक स्थल का मतलब होता है कि किसी भी धर्म के पूजा स्थल का निर्माण सरकारी या निजी भूमि पर बिना कानूनी अनुमति के किया जाना। ये स्थल अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर बनाए जाते हैं, जिससे प्रशासन और समाज के बीच टकराव होता है। यह मुद्दा कई बार कानूनी विवाद और सामाजिक तनाव का कारण भी बनता है।
भारत में अवैध धार्मिक स्थलों के तमाम उदाहरण लगभग हर धार्मिक समुदाय से जुड़े हैं। दिल्ली में यमुना नदी के किनारे बड़ी संख्या में अवैध धार्मिक स्थल बने हुए हैं। इनमें मंदिर, मस्जिद और दरगाह शामिल हैं। महाराष्ट्र में कई बार सड़कों के किनारे अवैध मंदिर और मस्जिदें बनाई गई हैं। मुंबई में यातायात के दौरान ऐसी जगहों पर कई धार्मिक स्थलों के कारण ट्रैफिक जाम की समस्या देखी जाती है।
2017 में, बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) ने मुंबई में 1500 से अधिक अवैध धार्मिक स्थलों की पहचान की थी, और उनमें से कुछ को ध्वस्त भी किया था। 2011 में गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि अवैध रूप से बने धार्मिक स्थलों को हटाया जाए। सरकार ने तब कई अवैध धार्मिक ढांचों को ध्वस्त किया था। जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) ने 2021 में कई ऐसे मंदिरों और धार्मिक स्थलों को हटाने का अभियान चलाया, जो बिना अनुमति के बने थे और यातायात में बाधा उत्पन्न कर रहे थे।
उत्तर प्रदेश में कई धार्मिक स्थलों का निर्माण सरकारी ज़मीन पर बिना अनुमति के किया गया है। 2019 में योगी आदित्यनाथ सरकार ने ऐसे अवैध धार्मिक स्थलों की पहचान और उन्हें हटाने का अभियान चलाया। खासकर लखनऊ और वाराणसी जैसे शहरों में कई अवैध धार्मिक स्थल हटाए गए। मध्य प्रदेश में भी सड़क के किनारे या सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक स्थल बनाए गए हैं। 2016 में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को ऐसे अवैध धार्मिक स्थलों को हटाने का निर्देश दिया था।
इसके बाद कई स्थानों पर अभियान चलाकर अवैध ढांचों को हटाया गया। भारत में मस्जिदों का अवैध निर्माण भी एक संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दा है। कई बार यह देखा गया है कि मस्जिदों का निर्माण सार्वजनिक ज़मीन या सरकारी संपत्ति पर किया जाता है। रेलवे स्टेशन, पार्क, या सड़क के किनारे जैसे स्थानों पर अवैध रूप से मस्जिद बनाने की कोशिशें होती हैं।
हिमाचल प्रदेश के संजौली और मंडी में हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शनों ने मस्जिदों के कथित अवैध निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए ज्वलंत बहस छेड़ दी है जबकि अनधिकृत निर्माणों को लेकर सामुदायिक तनाव ने उन प्रदर्शनों को हवा दी है। यह मुद्दा एक साथ वैधता, सांप्रदायिक सद्भाव और धार्मिक पवित्रता के गहरे सवालों से जुड़ा है। इस्लामी दृष्टिकोण से, मस्जिदों का निर्माण कानूनी रूप से प्राप्त निर्विवाद भूमि पर किया जाना चाहिए, ताकि पूजा की पवित्रता और अखंडता को सर्व स्वीकार्य किया जा सके। मस्जिद के निर्माण में बहुत बड़ी धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी शामिल है।
इस्लाम में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि एक मस्जिद, पूजा स्थल होने के नाते, निर्विवाद भूमि पर बनाई जानी चाहिए। किसी भी तरह का अवैध हित या लाभ- चाहे वह अवैध रूप से प्राप्त भूमि हो या भ्रष्टाचार से हासिल की गयी नकदी – उस स्थान के भीतर पूजा करने के कार्य को संदिग्ध बनाता है। ऐसी मस्जिदों में की गई नमाज़ स्वीकार्य नहीं हो सकती क्योंकि मस्जिद की मूल प्रेरणा स्वयं इस्लामी अवधारणाओं के अनुरूप नहीं है। निर्माण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भूमि और संपत्ति दोनों को वैध होना चाहिए और किसी भी तरह के शोषण या विवाद से मुक्त होना चाहिए।
मस्जिद आध्यात्मिकता और नैतिकता के उत्कर्ष पर तब ही पहुँच सकता है जब इसके निर्माण की बुनियाद नैतिक और कानूनी मानदंडों का पालन करते हुए किया जाय। संजौली और मंडी दोनों में, कथित रूप से अवैध भूमि पर मस्जिदों का निर्माण विवाद का मुख्य कारण रहा है इसने व्यापक अशांति और सांप्रदायिक तनाव पैदा किया लेकिन इसी बीच में मस्जिद प्रबंधन समितियों द्वारा उठाए गए सकारात्मक कदमों की सराहना करना भी लाज़मी है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए मस्जिदों से जुड़ी समितियों ने प्रदर्शनकारियों द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए कदम उठाए हैं और संरचनाओं के अवैध हिस्सों को ध्वस्त करने पर सहमति व्यक्त की है। यह निर्णय सराहनीय है और शांति और सद्भाव बनाए रखने की एक सक्रिय पहल को अभिव्यक्त करता है। ये कदम उठाकर, मस्जिद प्रबंधन समितियों ने कानूनी मानकों को बनाए रखने और सामुदायिक सद्भाव की एक अद्भुत मिसाल पेश की है।
अगर हम सार्वजनिक स्थलों पर अवैध निर्माण से जुड़े न्यायलयी हस्तक्षेप की बात करें तो सार्वजनिक स्थलों पर हुए हर तरह के अतिक्रमण को रोकने लिए 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि अगर शहर के विकास में कोई भी अतिक्रमण बाधा डालता है तो उसे हटाया जाए तथा इसमें अगर कोई धार्मिक स्थल भी आता है तो उसे विस्थापित कर विकास की राह खोली जाए।
सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश के बावजूद सामूहिकता के दबाव में अक्सर कार्य पालिका को झुकना पड़ता है और अवैध धार्मिक स्थल से जुड़ा मामला कई वर्षों तक लंबित पड़ा रहता है लेकिन संजौली और मंडी में जिस तरह से मस्जिद के अवैध भाग को ध्वस्त करने के लिए स्वयं इस धार्मिक स्थल से जुड़े लोगों ने पहल करके एक नजीर पेश किया है ये अपने आप में भविष्य के लिए पर्याप्त संभावनाएँ दिखाता है। यदि हम आधुनिक समय में धर्म, विकास, राष्ट्र और सामुदायिक सद्भाव के मध्य एक सुन्दर संतुलन बनाने में कामयाब हो जाते है तो निश्चित ही आने वाले दशकों में हम विकसित राष्ट्र बन सकते हैं।
-प्रो बंदिनी कुमारी,लेखिका समाज शास्त्र की प्रोफेसर हैं और उत्तर प्रदेश के डिग्री कॉलेज में कार्यकर्ता हैंI