उदय दिनमान डेस्कः आधुनिकता का दावा करते समाजों में जब व्यक्ति और समुदायों का मूल्यांकन उनके धर्म के आधार पर होने लगे तो यह प्रश्न उठना लाज़िम हो जाता है कि हम वास्तव में आगे की तरफ़ बढ़ रहे है या पश्चगामी हो रहे है? वर्तमान संदर्भ में ये मुद्दा तब उठ खड़ा होता है जब हर वर्ष की तरह इस बार भी कावंड यात्रा की शुरूआत होनी है लेकिन मुजफ्फनगर प्रशासन की तरफ़ से निर्गत आदेश है जिसमें कहा गया है कि कांवड़ यात्रा मार्ग में आने वाले सभी ढाबों, होटलों और रेस्तराँ के मालिकों और वहाँ काम कर रहे लोगों की नाम और पहचान लिखा जाय ताकि कावंड यात्रियों की आस्था आहात न हो |
इस फ़ैसले में अंतर्निहित मंशा ने विपक्ष के साथ ही अनेक धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों और संगठनों को एकसाथ लामबंद करने का कार्य किया और इसके साथ ही उस सनातन बहस को ज़िंदा कर दिया कि इस मुल्क की तरबियत क्या है क्या सही मायनों में हमने संविधान में स्थापित धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को आत्मसात् किया ??
मानव समाज के विकास के विभिन्न चरणों में तमाम मौलिक अंतर और उद्विकास के अलग अलग आयाम होने के बावजूद जिस एक संस्था ने सभी चरणों को एक सूत्र में बांधा है तो वो है “धर्म”। प्राचीन भारतीय साहित्य और शिक्षा में सांप्रदायिक सौहार्द के उदाहरण मिलते हैं। महाभारत, रामायण, उपनिषद, और पुराण जैसे ग्रंथों में धर्म, सहिष्णुता, और मानवीय मूल्यों का उल्लेख किया गया है।
तक्षशिला और नालंदा जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में विभिन्न धर्मों के छात्र और विद्वान शिक्षा प्राप्त करते थे और एक-दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान करते थे। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में भी सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिसने समाज को समृद्ध और संतुलित बनाए रखा।
मध्यकालीन भारत में भी सांप्रदायिक सौहार्द के कई उदाहरण मिलते हैं, जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग मिलकर रहते थे और आपसी सहयोग व सम्मान का पालन करते थे। भक्ति आंदोलन और सूफीवाद दोनों ही धार्मिक और सांस्कृतिक समन्वय के महत्वपूर्ण स्रोत थे। भक्ति संत जैसे कबीर, गुरु नानक, और मीराबाई ने धार्मिक भेदभाव को नकारा और सभी धर्मों के प्रति सम्मान का संदेश दिया।
सूफी संतों जैसे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया, और बाबा फरीद ने भी हिंदू-मुस्लिम एकता और प्रेम का प्रचार किया। इससे हिंदू-मुस्लिम संबंध मजबूत हुए। मध्यकालीन साहित्य और कला में भी धार्मिक समन्वय देखने को मिलता है। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि मध्यकालीन भारत में सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता एक महत्वपूर्ण तत्व थे, जिसने भारतीय समाज को एकजुट बनाए रखा।
आधुनिक भारत में सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता के कई महत्वपूर्ण उदाहरण मिलते हैं, जो देश की विविधता और एकता को दर्शाते है। महात्मा गांधी ने अपने जीवन में अहिंसा और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा दिया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अनेक प्रयास किए और हमेशा विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच भाईचारे और प्रेम का संदेश दिया। स्वामी विवेकानंद ने विभिन्न धर्मों की शिक्षाओं में समानता और सहिष्णुता पर जोर दिया। भारत में विभिन्न धर्मों के त्यौहार जैसे दीवाली, ईद, क्रिसमस, गुरुपर्व आदि सभी धर्मों के लोग मिलकर मनाते हैं।
यह सांप्रदायिक सौहार्द और आपसी प्रेम का प्रतीक है। कई सामाजिक संगठन और गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। ये संगठन विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि आधुनिक भारत में भी सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता की परंपरा जीवित है और यह देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि इस मुल्क ने समय समय पर अपने मूल स्वाभाव को प्रदर्शित किया है, यहाँ यदि आततायी शासकों का इतिहास है जिन्होंने कुछ समय के लिए देश और समाज में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का कार्य किया तो बुद्ध ,कबीर, गोस्वामी तुलसीदास ,गाँधी और आंबेडकर जैसे नायकों ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि देश का असली नायक वही हो सकता है जिसमे समन्वय की विराट चेष्टा हो |
-डॉ (प्रो) बंदनी कुमारी,सहायक प्रोफेसर,डिग्री कॉलेज, यूपी