वॉशिंगटन: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पनामा नहर पर नियंत्रण की बात करते रहे हैं. ट्रंप ने आरोप लगाया था कि अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाली इस नहर को चीनी सैनिक नियंत्रित करते हैं. इसके अलावा दावा किया कि अमेरिकी जहाजों से ज्यादा किराया वसूला जाता है. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर उनके राष्ट्रपति बनने के बाद कीमतें कम नहीं की गईं तो वह मांग करेंगे कि जल्द ही और बिना किसी सवाल के नहर पर अमेरिका को नियंत्रण दिया जाए. ट्रंप के दावों को लेकर अब पनामा नहर के प्रशासक ने सच्चाई बताई है.
न्यूज एजेंसी एपी की रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को पनामा नहर के प्रशासक रिकोर्टे वास्क्यूज ने एक इंटरव्यू में ट्रंप के दावों का खंडन किया, और बताया कि चीन इस नहर को नियंत्रित नहीं कर रहा. उन्होंने कहा कि नहर के दोनों छोर पर बंदरगाहों में काम करने वाली चीनी कंपनियां हांगकांग कंसोर्टियम का हिस्सा थी, जिसने 1997 में बिडिंग प्रक्रिया जीती थी. उन्होंने कहा कि अमेरिकी और ताइवानी कंपनियां नहर के साथ अन्य बंदरगाहों को कंट्रोल करती हैं. ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया है कि नहर का नियंत्रण लेने के लिए वह सैन्य शक्ति के इस्तेमाल से पीछे नहीं हटेंगे.
पनामा में बनी पनाना नहर 82 किमी लंबी है. यह प्रशांत महासागर के साथ कैरेबियन सागर को जोड़ती है. पहले फ्रांस ने इसे बनाने की कोशिश की थी, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. 1904 से 1914 के बीच अंततः अमेरिका ने इसे बनाया. अमेरिकी सरकार ने तब कई दशकों तक इसका नियंत्रण किया. पनामा उस समय कोलंबिया का हिस्सा हुआ करता था.
न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) की रिपोर्ट के मुताबिक कोलंबिया ने जब प्रस्तावित नहर संधि को खारिज कर दिया तो अमेरिकी सरकार ने विद्रोहियों को समर्थन दिया. कोलंबिया के उत्तरी प्रांतों ने अलग होकर पनामा रिपब्लिक का गठन किया. अमेरिकी नौसेना ने तब कोलंबियाई सैनिकों को विद्रोह दबाने से रोक दिया.
एक नया देश बनाने के बावजूद पनामा नहर पर अमेरिका के कंट्रोल के कारण पनामा में 1964 में अमेरिका विरोधी दंगे भड़क गए. अमेरिका की मजबूरी हो गई कि वह नहर को लेकर नया समझौता करे. अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने 1977 में पनामा के नेता ओमार एफ्रेन टोरीज के साथ कार्टर-टोरीज संधि पर हस्ताक्षर किया.
इस समझौते से पनामा नहर के स्थायी तटस्थता की गारंटी मिली. साल 2000 तक अमेरिका को नहर पर अपना नियंत्रण छोड़ना था. 1999 में पनामा ने नहर का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और तब से इसे पनामा नहर प्राधिकरण की ओर से संचालित किया जा रहा है.
पनामा नहर प्रशासक रिकोर्टे वास्क्यूज ने कहा कि तटस्थता संधि के कारण अमेरिकी झंडे वाले जहाजों को विशेष तवज्जो नहीं दी जा सकती. ट्रंप के बयान पर पिछले महीने पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने कहा था, ‘पनामा नहर का प्रत्येक वर्ग मीटर और उसके आस-पास का क्षेत्र पनामा का है.’ उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिकी जहाजों से ज्यादा शुल्क नहीं लिया जा रहा है.
ट्रंप के दावे के विपरीत चीन के सैनिक पनामा नहर को कंट्रोल नहीं करते. राष्ट्रपति मुलिनो ने गुरुवार को कहा, ‘पनामा नहर में कोई चीनी सैनिक नहीं है. दुनिया का हर देश नहर के इस्तेमाल के लिए स्वतंत्र है.’ हालांकि, हांगकांग स्थित कंपनी सीके हचिसन होल्डिंग्स नहर के प्रवेश द्वारों पर दो बंदरगाहों को मैनेज करती है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि यही अमेरिका के लिए सुरक्षा चिंताएं बढ़ाती हैं.
NYT के मुताबिक वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में अमेरिकास प्रोग्राम डायरेक्टर रयान सी. बर्ग ने कहा कि सीके हचिसन के पास पनामा नहर से गुजरने वाले हर जहाज का डेटा हो सकता है. चीन अपने शिपिंग और समुद्री गतिविधियों के जरिए विदेशी खुफिया जानकारी और जासूसी कर सकता है. चीन ने कहा है कि वह हमेशा की तरह पनामा नहर पर पनामा की संप्रभुता का सम्मान करेगा. चीन अमेरिका के बाद पनामा का दूसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है.