फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाकर पार्षद का चुनाव लड़ रहा बिजनौर का व्यक्ति

मूल निवास, भू-क़ानून संघर्ष समिति ने किया मामले का खुलासा

मूल निवासी एससी और ओबीसी के हक पर डाला जा रहा डाका

यही हाल रहा तो एक दिन मूल निवासी नहीं होगा उत्तराखंड का मुख्यमंत्री

देहरादून। मूल निवास भू-कानून संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि निकाय चुनाव में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाकर कई लोग चुनाव लड़ रहे हैं। इससे मूल निवासी अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों के अधिकारों पर डाका पड़ रहा है।उन्होंने बाहरी राज्यों के लोगों के स्थाई निवास और जाति प्रमाण पत्रों की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।

यहां जारी बयान में संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि देहरादून के नगर निगम क्षेत्र के वार्ड नम्बर 75 लोहियानगर में पट्टे की ज़मीन पर मकान बनाकर रह रहे मुकीम अहमद ने ओबीसी का फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाया है। इस आधार पर मुकीम ने 2018 में राष्ट्रीय पार्टी के टिकट पर पार्षद का चुनाव लड़ा और चुनाव जीता। एक बार फिर मुकीम को पार्षद का टिकट मिला है। जबकि मुकीम अपने मूल जनपद बिजनौर से 12 साल पहले देहरादून के पटेलनगर स्थित मंडी में काम करने आया था।

उत्तराखंड में स्थाई निवास प्रमाण पत्र 15 साल से रह रहे व्यक्ति को ही दिया जाता है। जबकि एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण का लाभ 1985 की कट ऑफ डेट के आधार पर ही दिया जाता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा हो गया है कि 15 साल से कम समय में ही कैसे मुकीम ने अपना स्थाई निवास प्रमाण पत्र बना दिया ? पिछली बार भी उसने पार्षद का चुनाव लड़ा था तो यह भी साबित हो गया है कि उसने राज्य में आने के चार वर्ष में ही अपना स्थाई और जाति प्रमाण पत्र बना दिया था।

मुकीम मूल रूप से यूपी के बिजनौर जिले के भनेड़ा गांव का निवासी है और उसका भाई समाजवादी पार्टी से अपने गांव से प्रधान का चुनाव लड़ रहा है। संवैधानिक व्यवस्था के तहत जो व्यक्ति जिस राज्य का मूल निवासी है, उसे उसी राज्य में आरक्षण का लाभ दिये जाने की व्यवस्था है। ऐसे में मुकीम को अपने मूल राज्य में ही ओबीसी का लाभ मिलेगा। यहां उसने मूल रूप से रह रहे मुस्लिम ओबीसी के हक पर डाका डाला है।

मोहित डिमरी ने कहा कि ओबीसी, एससी और एसटी का लाभ सिर्फ उत्तराखंड के मूल निवासियों को कट ऑफ डेट 1985 के आधार पर ही दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन बड़ी संख्या में अन्य राज्यों से उत्तराखंड में आये ओबीसी और अनुसूचित जाति के लोग भी इसका लाभ ले रहे हैं। इससे उत्तराखंड की डेमोग्राफी बदल रही है और यह संख्या लगातार बढ़ती रही और इसका लाभ उन्हें मिलता रहा तो यहां के मूल निवासी अल्पसंख्यक हो जायेंगे।

उत्तराखंड के मूल निवासी अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी को सबसे अधिक नुकसान झेलना पड़ेगा। अभी उत्तराखंड में ओबीसी 14 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति को चार प्रतिशत रिज़र्वेशन मिलता है। भविष्य में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की वकालत राष्ट्रीय पार्टियां कर रही हैं और इसी तरह अनुसूचित जाति के आरक्षण का भी प्रतिशत बढ़ेगा। समझा जा सकता है कि जब बाहरी राज्यों के एससी और ओबीसी के लोगों की संख्या बढ़ेगी तो उन्हें ही इसका लाभ होगा।

उत्तराखंड के मूल निवासी अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग को इससे सबसे अधिक नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि ऋषिकेश में राष्ट्रीय पार्टियों ने किसी भी मूल निवासी अनुसूचित जाति के व्यक्ति को टिकट नहीं दिया है। भविष्य में इसी तरह के हालात पैदा होते रहेंगे और एक दिन उत्तराखंड का मूल निवासी न मुख्यमंत्री बन पाएगा, न मंत्री और न विधायक, न निकाय और पंचायत में प्रतिनिधित्व कर पायेगा। यह हम सभी के सामने गंभीर चिंता का विषय है।

मोहित डिमरी ने यह भी कहा कि बहुत सारे लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने राज्य निर्वाचन आयोग से मांग करते हैं कि फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की सीटों पर चुनाव लड़ रहे लोगों का नामांकन तुरंत निरस्त किए जाएं। इसके साथ ही उन्होंने सरकार से बाहरी राज्यों से आये लोगों के स्थाई निवास और जाति प्रमाण पत्रों की जांच के लिए बड़ा अभियान चलाने की मांग की ।

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