भगवंत मान के तेवर कड़क

चंडीगढ़ :मुख्यमंत्री भगवंत मान के तेवर इन दिनों कड़क नजर आ रहे हैं। इस कड़े रवैये के पीछे का एक ही संदेश है कि अब सरकार झूकने के मूड में नहीं है। इसका अंदेशा सीएम के जुबानी संदेश से लगाया जा सकता है, जिसमें वह प्रदेश के साढ़े तीन करोड़ लोगों के कस्टोडियन के नाते जनता की कसौटी पर खुदको खरा उतारने के मंशा जाहिर करते आ रहे है।

हालांकि, सीएम के इस कड़े तेवर ने विपक्षी दलों को एक बार फिर उन पर सियासी प्रहार करने का गोल्डन चांस दे दिया है। जिस कदर बीते सोमवार को चंडीगढ़ में पंजाब भवन में किसानों के साथ हुई बैठक के बीच में गुस्साए सीएम मान उठकर चले गए, उससे वह किसान जत्थेबंदियों के नजरों में खटकने लगे हैं।

किसानों को चंडीगढ़ में पक्का मोर्चा डालने से रोकने के लिए उन्हें घरों में नजरबंद करने का कदम यह स्पष्ट करता है कि मान सरकार अब किसी कीमत पर प्रदेश की कानून व्यवस्था किसी को भी अपने हाथों में लेने देना नहीं चाहती। चाहे फिर बात प्रदेश के राजस्व अधिकारियों के सामूहिक छुट्टी पर जाने की ही क्यों न हो।सीएम ने इस पर भी अपने तेवर दिखाते हुए सामूहिक छुट्टी पर गए तहसीलदारों की कुर्सी पर कानून गो और सीनियर सहायकों को बैठा दिया और यहां कह दिया कि जरूरत पड़ी तो क्लर्क और हेड मास्टरों को ड्यूटी सौंप दी जाएगी।

मान सरकार के पहले कार्यकाल को तीन साल हो गए हैं। मौजूदा साल में मान सरकार एक्शन मोड में ही रहेगी। सियासी पंडितों की मानें तो 2027 में पंजाब विधानसभा के चुनाव से पहले 2026 के मध्यम कार्यकाल तक सरकार चुनावी मोड में चली जाएगी। ऐसे में सरकार के लिए यह साल बेहद ही कीमती है।

2026 के मध्य तक चुनावी मोड में जाने से पहले मान सरकार कड़े तेवर अपनाकर सरकारी तंत्र को दुरुस्त करने में जुटी है, ताकि जनता से किये वायदों को पूरा कर उनकी कसौटी पर खरा उतरकर दिखाकर वह अभी से अपनी सियासी जमीन तैयार कर सके।

सीएम के सख्त तेवर से आम जनता पूरी तरह खुश दिखाई दे रही है। चाहे फिर बात किसानों के चंडीगढ़ में पक्का मोर्चा लगाने से पहले किसान जत्थेबंदियों को सीएम मान की दो टूक से जुड़ा हो या फिर राजस्व अधिकारियों के सामूहिक छुट्टी पर जाने से नीचले ओहदे के कर्मियों को कमान सौंपने की हो।

प्रदेश की जनता सीएम के इन सख्त फैसले से खुश है। इसके पीछे का कारण यह भी है कि किसानों के संघर्ष और पक्के मोर्चे के कारण बड़ी संख्या में आम जनता, उद्योग, व्यापार, कारोबार और सेवाएं प्रभावित होती है, ऐसे में सीएम के किसानों के प्रति दिखे तेवर से जनता का भी यह मानना है कि अधिकारों के लिए बातचीत के जरिए रास्ता निकाला जाना चाहिए, न कही आम जनता को परेशान कर।

दिल्ली चुनाव के बाद भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए अफसरों पर गिर रही गाज, तबादलों के जरिए प्रशासनिक फेरबदल और ड्रग्स का तीन महीने में खात्मा करने का चौथी बार का वचन पूरा करने के लिए उठाए जा रहे कदम से सरकार की छवि किसी भी तरह धूमिल होती नजर नहीं आ रही, बल्कि मान सरकार को घेरने के प्रयास में विपक्षी दलों के मनों में जरूर हलचल बढ़ती नजर आ रही है कि वह किन मुद्दों को ढाल बनाकर सरकार को घेर सके।

हालांकि विपक्ष भी पंजाब की मौजूदा आर्थिक स्थिति, तीन साल में ड्रग्स की समस्या को खतम न करने, महिलाओं से किए एक हजार रुपये के आर्थिक मदद के वायदे, अवैध खनन, भ्रष्टाचार और मंत्रियों की कारगुजारी पर सवाल उठाकर सत्ता की कुंजी तलाशने में जुटी है।

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