मठ और मंदिरों के बीच मस्जिद, मजार और मदरसे

देहरादून. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मदरसों की जांच के आदेश दिए तो इससे एक बार फिर उत्तराखंड की बदलती डेमोग्राफी को लेकर बहस शुरू हो गई है. दरअसल, मठ और मंदिरों की भूमि देवभूमि उत्तराखंड में सिर्फ मठ-मंदिर ही नहीं हैं, बल्कि यहां पांच हजार से अधिक की संख्या में मजार, मस्जिद, मदरसे, कब्रिस्तान भी संचालित हो रहे हैं.

देवभूमि उत्तराखंड और उसमें भी हरिद्वार को तीर्थनगरी माना जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि गंगा की इस नगरी में 386 कब्रिस्तान भी हैं. क्या आपको पता है कि हरिद्वार में 322 मस्जिद, 58 दरगाह और 25 मदरसे भी संचालित हो रहे हैं. यदि नहीं तो आप उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का रिकॉर्ड देख लीजिए. इस वक्फ बोर्ड के पास अपने गठन के समय 2003 में जहां 2100 के आसपास संपत्तियां थी, वो बढ़कर अब 5000 के पार पहुंच गई हैं. जिसमें सबसे अधिक 1891 संपत्तियां धर्मनगरी हरिद्वार में हैं. हालांकि, वक्फ बोर्ड के चेयरमैन शादाब शम्स ऐसा नहीं मानते.

एक नजर वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर देहरादून में 1680 मस्जिद, दरगाह, मजार, कब्रिस्तान, मदरसे, ईदगाह जैंसी संपत्तियां हैं. यूएसनगर में 885 तो नैनीताल में 407, पौड़ी में 120, टिहरी में 17, अल्मोड़ा में 92, बागेश्वर में 13, पिथौरागढ़ में 13 संपत्तियां हैं. पूरे उत्तराखंड में 800 से अधिक मदरसे संचालित हो रहे हैं. लेकिन रजिस्टर्ड केवल 416 ही हैं.

राज्य बाल अधिकार आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना का कहना है कि ये देवभूमि की डेमोग्राफी को बदलने का एक षडयंत्र है. उनका कहना है कि पैटर्न में उत्तराखंड में मदरसे, मजार, मस्जिदों का निर्माण हो रहा है. उन्होंने अनरजिस्टर्ड मदरसों पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि यहां न सिर्फ बच्चों का शोषण किया जा रहा है, बल्कि इनकी आड़ में प्रोपर्टी भी कब्जाई जा रही है.

दरअसल, पिछले कुछ सालों में देवभूमि में तेजी के साथ मस्जिद, मदरसे, मजार का जाल फैला है और इनके पीछे-पीछे बाहरी मुसलमानों की घुसपैठ भी बढ़ी है और इसका उदाहरण 2011 के जनसंख्या के आंकडे. आंकडे बताते हैं कि उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी तब 14 फीसदी के आसपास थी, जो अब देहरादून, यूएसनगर, हरिद्वार, नैनीताल जैंसे जिलों में बढ़कर तीस फीसदी से ऊपर जा चुकी है. जिसे देवभूमि की डेमोग्राफी के लिए एक बड़े चैलेंज के रूप में देखा जा रहा है.

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