जेपी मैठाणी
देहरादून। पीपलकोटी में अंग्रेजों द्वारा 1904-05 में स्थापित PWD का अब वर्तमान का डाक बंगला है . यहीं बगल में मेरा जन्म हुआ और इसके आँगन में हम पले बढे , बचपन में जब तक अकल नहीं थी तब तक सोचता था ये हमारा घर है. बाद में पता चला मेरे पिताजी तो इस विभाग के कर्मचारी हैं और 1962 के के युध्द के बाद सेना – आर्मी सप्लाई कोर से रिटायर होने के बाद 1963-64 में यहाँ बतौर चौकीदार के पद पर कार्य करने लगे विधिवत रूप से .उनके डिस्चार्ज सर्टिफिकेट में लिखा था फिट फॉर सिविल सर्विस उनके पांवों पर गोली लगी थी और स्वस्थ होने पर उन्हें सेवानिवृत्ति दी गयी होगी .
मेरी बहनों को जो मेरी माँ के साथ हमारे जूमला गाँव से जो गोपेश्वर पोखरी मार्ग पर स्थित है पहले वहां लाल सांगा यानी चमोली, अलकापुरी, बालखिला और पिलंग से पैदल पहुंचा जाता था उस जूमला गाँव से 1966-1967 में शायद पीपलकोटी आ गयी थी ( मेरी माँ को वर्ष याद नहीं ढंग से ) . यहाँ आते ही रोना धोना शुरू – कमला दीदी , बिमला दीदी और उर्मिला दीदी का रोना धोना शुरू – मेरे पिताजी का कहना था बिना बताये आ गयी बाद में पता चला दादी और ताऊ जी से थोडा नाराजगी हो गयी थी और मेरी लड़ाकू ( लोग कहते हैं ) मां सुबह के अँधेरे में पिलंग होते हुए -अलकापुरी के बाद पुराने यात्रा बद्रीनाथ के पैदल यात्रा मार्ग से – जो लाल सांगा , छिनका मठ, बाँवला , जैन्साल, हाट होते हुए पीपलकोटी पहुँच गयी . चमोली में कोई मिला था मेरी माँ को जिसने उन्हें वापस गाँव जाने को कहा पर वो मानी नहीं .
वास्तव में जूमला से पीपलकोटी की ये ही यात्रा हमारे जीवन की परिवर्तन यात्रा रही होगी . मेरी माँ की बेटियां ही बेटियां थी तो लिहाजा उन बेटियों को बचपन से रूखी सूखी रोटी मिलती और इसी बात पर कमला दीदी और बिमला दीदी रो रहे थे कि परिवार के अन्य बेटों की तरह उन्हें मलाई और घी वाली रोटी नहीं दी जा रही है जबकि हर बार मेरे पिताजी फौज की छुट्टी के बाद जाने से पहले भैंस की व्यवस्था करके जाते – गौशाला ठीक करके जाते और पिताजी के जाने पर मेरी माँ की गौशाला में एंट्री बंद तो मेरी बहनों को दूध या मलाई का मिलना तो एक दिवास्वप्न होता – ऐसा बताया गया जरूरी नहीं ये सच भी हो. तो लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव के विरुध्द मेरी माँ लड़ी और खूबसूरती से लड़ी – और पहुँच गयी पीपलकोटी के डाकबंगले में . इस बार मेरी माँ कुछ समय के लिए रही पीपलकोटी में फिर नीरू के जन्म के बाद 1970-71 में वापस आयी पीपलकोटी और फिर पूर्ण रूप से वहीँ रहा गयी – बंटाई यानी तिहाड़ की खेती – गौशाला सब कुच्छ वही . नौरख पीपलकोटी ग्राम सभा अब हमारी जन्मस्थली हो गयी !
पीपलकोटी में उस समय सत्यदेव साब नाम के एक इंजीनियर थे ( भगवद गीता के अच्छे ज्ञानी ) – जो वास्तव में – DL रोड देहरादुन के एक चमार परिवार से थे मेरे ब्राहमण पिता को उन्होंने समझाया कि- हर हाल में बेटियों को पढाओ चाहे कोई भी परेशानी क्यूँ ना हो और उन्होंने हर स्तर पर मेरे पिता की मदद की और इ्त्तेफाक देखिये जब मैं B.Sc. में पढ़ने DBS देहरादून आया तो पता चला उनकी मृत्यु हो गयी है लेकिन उनकी पत्नी यानी ताई जी ने मुझे पानी भरने के लिए एक ड्रम दिया ( जो आज भी अभी भी 27 साल बीत जाने पर भी हमारे घर पर है ) मेरे रूम पर आयी – गले लगाया सबके नाम पूरी तरह से याद थे उन्हें – सबके बारे में पूछा .जब भी उनके घर जाता बिना चाय मठरी के भेजती ही नहीं थी गजब का लगाव और आत्मीयता कि मैंने कभी भी परायापन महसूस ही नहीं किया – उनकी बेटी ने वंदना जी ने मुझे DAV की लाइब्रेरी से मुझे बॉटनी की किताबे भी दिलवाई जो आज भी मेरे पास हैं.
हाँ तो फिर -डाकबंगला – ये डाकबंगला भारत की कई सामाजिक राजनैतिक हस्तियों, सिनेमा कलाकार , एडमंड हिलेरी और ना जाने कितने लोगों के लिए शरण स्थल रहा है – इसके बारे में Sanjay Bhandari ने एक लेख के बारे में विस्तार से लिखा है . ( संजय भंडारी ने लिखा था – आज मैं आपको पीपलकोटी डायरी के पेज – २ के लिए – 111-112 साल पुराने डाकबंगले के बारे में बता रहा हु –
फिर से गुलजार हुआ ब्रिटिश हुकुमत के ज़माने का डाक बंगला . पीपलकोटी का यह डाकबंगला पीपलकोटी में वर्ष 1904 में बना था . यह बंगला अंग्रेजी अफसरों की ऐशगाह और प्रशासनिक ढ़ाचे का प्रमुख केंद्र हुआ करता था अंग्रेजों के राज के समय – बंड पट्टी के साथ- साथ दशोली परगने के प्रमुख कार्य डाक बंगलों से हुआ करता था .
पीपलकोटी का यह डाक बंगला -अंग्रेजो के समय लगान वसूली का केन्द्र बिन्दु हुआ करता था . आजादी के पश्चात इस जगह पर देश के पहले राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद अपने बद्रीनाथ य़ात्रा के समय पर इसी बंगले पर रुके थे और उस समय अपने ऑस्ट्रेलिया दोरे पर मिली ऑस्ट्रेलियाई मेरीनो भेड को पीपलकोटी के शीप फार्म में उनके द्वारा रखवाया गया उनके उपरान्त इस बंगले में स्व . इन्द्रा गांधी 1982- 83 और ओंमप्रकाश चौटाला , भजनलाल नेपाल की महारानी, प्रसिध्द पर्वतारोही ऐड मंड हेलिरी , और फिल्मी हस्तियो सुनिल दत्त आशा पारेख , अनुराधा पोंडवाल और कई अन्य राजनेता, समाजसेवी , वैज्ञानिक आदि लोग इस बंगले मैं रुक चुकें है
पीपलकोटी का यह डाकबंगला कई ऐतिहासिक गतिविधियों का केंद्र रहा है और वर्तमान में भी यहाँ पर देश की आजादी के बाद कई प्रशासनिक कार्य हुए हैं. आज भले ही लोक निर्माण विभाग के अधीन है पर – मरम्मत जारी है !( श्रोत- स्वर्गीय श्री दयाराम मैठाणी , स्वर्गीय श्री अवतार सिंह नेगी, श्री कलम सिंह भंडारी , हिमालयन गज्ज़ेटीयर , उत्तराखंड का इतिहास- डॉक्टर शिवचरण डबराल, ऍच.जी. वाल्टन – गज़ेटियर ऑफ़ गढ़वाल हिमालय).
इस बार मैंने फिर से डाकबंगले को ढंग से देखा और Anita Maithani को कुछ कहानियाँ सुनायी – उसी कहानी का एक हिस्सा आपके सुना रहा हूँ. एक मजेदार बात ये रही कि इस बार जब मैं वहां के स्टोर के पास के फर्नीचर के ढेर में – मेरी बचपन की कुर्सी मिल गयी मैं उसको उठा कर ले आया अब मैं उसको ठीक करवा कर रखूँगा उस कुर्सी का चित्र मैंने यहाँ भी लगाया है इस कुर्सी में बैठकर 6-9 तक की पढ़ाई की !
अब ये डाकबंगला ऐतिहासिक इमारत है लेकिन आज भी लाखों खर्च करने के बाद भी डाकबंगले का रिजर्वेशन नहीं हो रहा है बिजली ठीक हो गयी है सरकारी पाइप लाइन लोगों ने कब्ज़ा कर ली है इसलिए बंगले में पानी ही नहीं पहुँच रहा है ! हमारे घर के बाद बंगले तक सात सीढियां है और 51 गोल चकले हैं सीमेंट के steps – ये सब हमारे जीवन का अंग है . हम बंगले के ऋणी हैं इसलिए बंगले से लगाव है बेइंतिहा !