नई दिल्ली: एक देश, एक चुनाव (One nation, one election) की दिशा में मोदी सरकार ने निर्णायक कदम और आगे बढ़ा दिया है. कैबिनेट की मंजूरी के बाद इस संबंध में विधेयक सदन में पेश करने का रास्ता साफ हो गया है. मोदी सरकार ने एक देश, एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी. इस समिति ने 14 मार्च को रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट को सितंबर में कैबिनेट ने स्वीकार किया था. इसके करीब तीन महीने बाद विधेयक के मसौदे को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी. उम्मीद है, संसद के इसी सत्र में विधेयक पेश किए जाएंगे.
कैबिनेट ने दो विधेयकों को मंजूरी दी है. एक संविधान संशोधन बिल है, जिसे लोकसभा व राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने के लिए पेश किया जाएगा. दूसरा आम विधेयक है, जिसे दिल्ली, पुडेचेरी और जम्मू-कश्मीर में लोकसभा व अन्य राज्यों के साथ विधानसभा चुनाव करवाए जाने के लिए पेश किया जाएगा. हालांकि, इस सत्र में विधेयक पास होने की उम्मीद नहीं है. उम्मीद है कि सदन में पेश होते ही विधेयक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिए जाएंगे.
एक देश, एक चुनाव भाजपा और नरेंद्र मोदी का पुराना एजेंडा है. प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मोदी इसकी वकालत करते रहे हैं. अपने दूसरे कार्यकाल में 2 सितंबर 2023 को कोविंद कमिटी बना कर उन्होंने पहला कदम बढ़ाया था. अब वह कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू करने जा रहे हैं, लेकिन अगर यह कानून बन भी गया तो अमल में 2029 से आएगा या 2034 से, इस बारे में सरकार ने कुछ नहीं कहा है.
सरकार के फैसले से एक और संकेत मिलता है कि अभी वह सारे चुनाव एक साथ करवाए जाने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि कैबिनेट ने जिन विधेयकों को मंजूरी दी है उनमें पंचायत या निकाय चुनाव भी लोकसभा व विधानसभा चुनावों के साथ कराए जाने से संबंधित विधेयक नहीं है. कोविंद कमिटी का सुझाव था कि पहले लोकसभा व विधानसभा के चुनाव एक साथ करवाए जाएं और इसके सौ दिन के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक साथ करवाए जाएं.
असल में, सारे चुनाव एक साथ करवाने में पेच यह है कि इससे जुड़े विधेयक पर कम से कम आधे राज्यों की मंजूरी लेनी होगी. यह जरा टेढ़ी खीर है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने संबंधी विधेयक पास करवाने में यह संवैधानिक बाध्यता नहीं है. शायद इसीलिए सरकार इसी पहल से अमल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाह रही है.
कोविंद कमिटी के सामने जिन पार्टियों ने एक साथ चुनाव करवाए जाने के समर्थन में राय दी थी, आज लोकसभा में उनके सांसदों की संख्या 271 है. जिन्होंने न समर्थन किया है और न विरोध, उनके सांसदों की संख्या जोड़ दें तो आंकड़ा 293 पर पहुंचता है. इनमें एनडीए में शामिल टीडीपी के सदस्य भी हैं.
अगर ये सब सदन में सरकार के समर्थन में मतदान करें तब भी विधेयक उसी हाल में पारित हो सकेगा जब वोटिंग के लिए कुल 439 सदस्य ही मौजूद रहें. अगर सभी सांसद वोटिंग के लिए मौजूद रहेंगे तो लोकसभा में विधेयक पारित करवाने के लिए 362 सांसदों (दो-तिहाई) की जरूरत होगी. ऐसे में ऐसा भी हो सकता है कि लोकसभा में विधेयक गिर जाए.
राज्यसभा का गणित भी सत्ताधारी पक्ष के लिए आसान नहीं है. एनडीए के 113, छह मनोनीत और दो निर्दलीय सांसदों को मिला कर सत्ताधारी खेमा 121 वोट आसानी से पा सकता है. लेकिन, दो-तिहाई समर्थन के लिए 154 वोट (अभी कुल सांसद 231 हैं) चाहिए. यानि, 33 वोट का इंतजाम करना होगा. बीजद, वाईएसआर कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति के 19 सांसद हैं. ये पार्टियां न एनडीए के साथ हैं और न ही इंडिया के साथ.
अगर मान लें कि ये एनडीए के पक्ष में वोट करेंगी तब भी एनडीए के लिए जरूरी संख्या पूरी नहीं हो पाएगी. इंडिया खेमे में 85 सांसद हैं. निर्दलीय कपिल सिब्बल भी उनकी तरफ से वोट कर सकते हैं. एआईएडीएमके के चार और बसपा का एक सांसद है. इनका झुकाव किसी खेमे की ओर नहीं दिखाई देता. ऐसे में वोटिंग के दौरान इनके रुख के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता.
एक देश, एक चुनाव वास्तव में कैसे लागू होगा यह तो कानून बनने पर ही पता चलेगा. लेकिन, कोविंद कमिटी ने सुझाया है कि एक देश, एक चुनाव पर जब अमल शुरू किया जाए तो लोकसभा चुनाव के वक्त सभी विधानसभाओं व स्थानीय निकायों को भंग कर दिया जाए और सारे संसदीय चुनाव एक साथ कराए जाएं. इसके सौ दिन के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव करवा लिए जाएं.
कमिटी ने सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची इस्तेमाल करने की भी सिफारिश की है. इस सिफारिश पर अमल भी तभी संभव हो सकेगा जब कम से कम आधे राज्यों से इसकी मंजूरी मिले. ध्यान रहे कि 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले दो और महत्वपूर्ण काम होने हैं- जनगणना और परिसीमन.
कोविंद कमिटी ने यह सरकार पर छोड़ा है कि वह इसे 2029 से लागू करना चाहती है या 2034 से. यह जरूर सुझाया है कि अगर 2029 से एक देश, एक चुनाव लागू करना है तो उससे पहले लोकसभा या कोई विधानसभा भंग होने की स्थिति में दोबारा चुनाव पांच साल के लिए नहीं करा कर केवल बचे हुए समय के लिए कराए जाएं. अगर 2034 में करना हो तो राष्ट्रपति की ओर से अगली लोकसभा की पहली बैठक की तारीख को इसका नोटिफिकेशन जारी होगा. फिर 2034 में चुनाव के वक्त सभी विधानसभाओं को भंग करके एक साथ चुनाव कराया जाए.
तय मियाद के मुताबिक दस राज्य ऐसे हैं जहां 2028 में चुनाव होने हैं. ये राज्य हैं हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, तेलंगाना, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान. अगर 2029 से एक देश, एक चुनाव लागू हुआ तो इन राज्यों की अगली सरकार करीब एक साल के लिए ही चुनी जाएगी. इस साल अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, आंध्र प्रदेश, ओडि़शा, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र में चुनाव हुए. केवल इन्हीं राज्यों की विधानसभाएं करीब पांच साल चलेंगी.
अगले साल दिल्ली और बिहार में चुनाव होने हैं. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल में 2026 में चुनाव हैं. उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात की सरकारें तो महज दो साल के लिए चुनी जाएंगी, क्योंकि वहां 2027 में चुनाव होने हैं.
कोविंद कमिटी के सामने 32 पार्टियों ने एक देश, एक चुनाव के विचार का समर्थन और 15 ने विरोध किया था. विरोध करने वाली पार्टियों में कांग्रेस, आप, डीएमके, सीपीआई, सीपीएम, बीएसपी, टीमसी और सपा शामिल थीं. समर्थन में सत्ताधारी एनडीए में शामिल पार्टियों के अलावा बीजू जनता दल (बीजद), अकाली दल और गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रैटिक प्रॉग्रेसिव आजाद पार्टी ने राय दी थी.
एक देश, एक चुनाव की सबसे बड़ी पैरोकार बीजेपी का तर्क है कि इससे देश का पैसा बचेगा, सरकारों को काम करने के लिए ज्यादा वक्त मिलेगा. कोविंद कमिटी ने भी तर्क दिया कि सारे चुनाव एक साथ करवाने से अनिश्चितता का माहौल नहीं बनेगा, मतदाताओं की भागीदारी बढ़ेगी और पैसे की बचत होगी, जिसे सरकार दूसरे जनोपयोगी काम में खर्च कर सकती है. कांग्रेस इसे लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ और राज्यों के अधिकार में कटौती की साजिश बता रही है.
1967 तक देश में लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही हुआ करते थे. लेकिन उसके बाद सरकारों की अस्थिरता के चलते यह सिलसिला टूट गया. अब फिर से यह सिलसिला शुरू हो पाता है या नहीं, यह आने वाले समय में सरकार द्वारा पेश विधेयकों के हश्र पर निर्भर करेगा.