उदय दिनमान डेस्कः इजरायली सेना ने सोमवार (11 नवंबर ) को साउथ लेबनान के 21 गांव को खाली करने की वार्निंग जारी की है. अमेरिका में ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद लेबनान में इजरायल के हमले तेज हुए हैं. इजरायली सेना हिजबुल्लाह को पूरी तरह से खत्म करना चाहती है और हिजबुल्लाह इस लड़ाई में इतना नुकसान झेलने के बाद पीछे हटने को तैयार नहीं है, इसलिए दोनों की लड़ाई और भीषण हो गई है. इजरायल हिजबुल्लाहह के चीफ हसन नसरल्लाह समेत अब तक कई बड़े कमांडरों को मार चुका है. तकरीबन एक हजार हिजबुल्लाह लड़ाके मारे जा चुके हैं, जबकि पांच हजार के करीब घायल हुए हैं.
ऐसे में हिजबुल्लाह का पीछे हटना वहां के शिया समुदाय में अपनी पकड़ ख़त्म करने से कम नहीं होगा. अगर हिजबुल्लाह अब पीछे हटता है तो शिया उस पर फिर कभी भरोसा नहीं करेंगे और 42 साल पहले जिस मकसद से लेबनान में हिजबुल्लाह का जन्म हुआ था वो हमेशा के लिए मिटने की कगार पर चला जाएगा . इजरायल हिजबुल्लाह की इसी जिद्द को तोड़कर उसे पीस एग्रीमेंट साइन करने के लिए मजबूर करना चाहता है. ऐसे में साउथ लेबनान के जिन इलाकों को इजरायली सेना कैप्चर कर लेगी उनसे फिर पीछे नहीं हटेगी.
दरअसल, इजरायल लेबनान के दक्षिणी हिस्से में ज़्यादा से ज़्यादा इलाका जल्दी से जल्दी कब्जाना चाहता है, क्योंकि पीस एग्रीमेंट में जो जहां होगा वह वहीं अपनी सरहद बना लेगा. इस बीच सीरिया बॉर्डर से हिजबुल्लाह को हथियार सप्लाई न हों इसके लिए इजरायल ने रूस से भी बातचीत का चैनल खोला है. अगर रूस हिजबुल्लाह को हथियार नहीं देता है तो हिजबुल्लाह को इजरायल से लड़ना और मुश्किल होगा.
रूस पीछे हटता है तो इजरायल लेबनान से सटे सीरिया बॉर्डर पर और एग्रेसिव हो सकता है. इन हालात में हिजबुल्लाह का एक सहारा यानी सीरिया फ्रंट भी ख़त्म हो जाएगा. ईरान अगर हिजबुल्लाह को मदद भेजना चाहता है तो उसके पास दो ही रास्ते हैं एक समुद्र और दूसरा सीरिया, लेकिन बदलते हालत में हिजबुल्लाह को दोनों रास्ते से मदद पहुंचाना मुश्किल होता जा रहा है.