देहरादून: उत्तराखंड के देहरादून में दूनवासियों के लिए एक चिंताजनक स्थिति सामने आ रही है. जहां आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. पिछले कुछ सालों में कुत्तों के हमलों की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, जिससे नागरिकों में डर और चिंता का माहौल बना हुआ है.
देहरादून नगर निगम ने 2016 से लेकर अब तक एबीसी प्रोग्राम (एनिमल बर्थ कंट्रोल) के तहत 47,000 कुत्तों की नसबंदी की, लेकिन इसके बावजूद आवारा कुत्तों की संख्या में कोई खास कमी देखने को नहीं मिली है. नगर निगम के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डीसी तिवारी के मुताबिक, इस प्रोग्राम का उद्देश्य कुत्तों की तादाद को नियंत्रित करना है. 47 हजार में 22,651 नर और 25,157 मादा हैं. इसके बावजूद, सड़कों पर इनके झुंड में कोई बदलाव नहीं आया है. डीसी तिवारी का दावा है कि अब देहरादून की सड़कों पर इन आवारा जानवरों के बच्चों की संख्या देखने को नहीं मिलती है.
दून अस्पताल में रोजाना 40 से 50 लोग डॉग बाइट की शिकायत लेकर पहुंचते हैं, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है. स्थानीय नागरिकों का मानना है कि नसबंदी अभियान को अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है, ताकि कुत्तों की जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सके और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.
नगर निगम में मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. तिवारी के मुताबिक, कुत्तों के काटने की घटनाओं का एक मुख्य कारण ठंडे इलाकों की नस्लों को गर्म जलवायु में रखना है. इससे कुत्तों के व्यवहार में बदलाव आता है और वे अधिक आक्रामक बन जाते हैं. डॉ की मानें तो अगर एबीसी प्रोग्राम शुरु न होता तो शायद शहर में भयावह स्थिति हो जाती.
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 20,000 लोग कुत्तों या अन्य जानवरों के काटने से रेबीज के कारण अपनी जान गंवा देते हैं. रेबीज एक जानलेवा बीमारी है और इससे बचाव अत्यंत आवश्यक है. किसी भी जानवर के काटने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें.