देहरादून: उत्तराखंड की मलिन बस्तियों की आबादी, सुविधाओं, स्वास्थ्य की ताजा जानकारी 13 साल बाद मिलेगी। राज्य में 2011 में मलिन बस्तियों का सर्वे हुआ था। अब शहरी विकास विभाग ने दोबारा सर्वे शुरू किया है।
ताजा रिपोर्ट के आधार पर जहां मूलभूत सुविधाएं देना आसान होगा, वहीं बस्तियों के विस्थापन का काम भी बेहतर हो सकेगा। प्रदेश में जुलाई 2010 से मई 2011 के बीच हुए सर्वे में 582 मलिन बस्तियां चिह्नित की गईं थीं। इनमें से 3.4 प्रतिशत बस्तियां खतरनाक क्षेत्रों में, 43 प्रतिशत बाढ़ क्षेत्र में और 42 प्रतिशत गैर अधिसूचित क्षेत्रों में स्थापित थीं।
55 प्रतिशत लोगों के पास अपना आवास था। 29 प्रतिशत के बाद आधा पक्का आवास और 16 प्रतिशत के पास कच्चा आवास था। 86 प्रतिशत के पास बिजली कनेक्शन था। 582 में से 71 बस्तियां सीवेज नेटवर्क से जुड़ी थीं। 95 कम्युनिटी हॉल थे, 651 की जरूरत थी। 15 प्रोडक्शन सेंटर थे जबकि 536 की जरूरत थी।
252 आंगनबाड़ी व प्री स्कूल उपलब्ध थे, जबकि 689 की और जरूरत थी। प्राइमरी स्कूलों के 244 कक्ष थे, जबकि 590 की और जरूरत थी। 93 हेल्थ सेंटर थे और 453 अतिरिक्त की जरूरत थी। अब ताजा सर्वे से ये स्पष्ट होगा कि प्रदेश में मलिन बस्तियों की संख्या में कितनी बढ़ोतरी हुई है।
उनका क्षेत्रफल अब कितना बढ़ा है। आबादी, मूलभूत सुविधाओं की क्या स्थिति है। विस्थापन नीति के तहत कितनी बस्तियों का विस्थापन हुआ है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार इन बस्तियों के लिए आगे की ठोस कार्ययोजना बनाएगी।
पुराने सर्वे में ये भी सामने आया था कि 41 प्रतिशत घरों की कमाई 3000 रुपये मासिक, 19 प्रतिशत की कमाई 2000 से 3000 मासिक, 20 प्रतिशत की कमाई 1000 से 1500, 12 प्रतिशत की कमाई 1500 से 2000 मासिक, छह प्रतिशत की कमाई 500 से 1000 मासिक और तीन प्रतिशत की कमाई 500 रुपये मासिक से भी कम थी। ताजा सर्वे रिपोर्ट से इन बस्तियों में रोजगार, स्वरोजगार की दिशा में भी काम हो सकेगा।
मलिन बस्तियों का आखिरी सर्वे 2011 में हुआ था। अब हम नए सिरे से सर्वे करा रहे हैं, जिससे इनकी संख्या, क्षेत्रफल, आबादी, सुविधाओं की जानकारी मिल सकेगी। विस्थापन में भी यह सर्वे कारगर होगा।
-नितेश झा, सचिव, शहरी विकास