नई दिल्ली : एक बार फिर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने मंकीपॉक्स (Mpox) को लेकर ग्लोबल पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित की है। यह दूसरी बार है जब इसे लेकर WHO ने हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया है। पहले यह अफ्रीका में फैला था और अब यूरोप के कुछ देशों में भी मामले सामने आने शुरू हो गए हैं। चिकनपॉक्स और स्मॉल पॉक्स परिवार का एमपॉक्स भी है, जो ह्यूमन टु ह्यूमन एक से दूसरे में पहुंचता है।
फिलहाल राहत की बात यह है कि यह कोविड की तरह हवा में नहीं फैलता है। बावजूद, एक्सपर्ट की सलाह है कि हर किसी को अलर्ट रहना चाहिए, साफ सफाई पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन पैनिक न हों, ज्यादातर मामले में यह अपने आप ठीक भी हो जाता है और अभी तक अपने देश में इस वायरस का एक भी मामला सामने नहीं आया है।
सफदरजंग अस्पताल के कम्यूनिटी मेडिसिन के एचओडी डॉ. जुगल किशोर ने बताया कि मंकीपॉक्स भी स्मॉल पॉक्स की तरह एक वायरल बीमारी है। इसका नाम भले मंकीपॉक्स है, लेकिन इसका मंकी से कोई संबंध नहीं है। जिस प्रकार स्वाइन फ्लू की शुरुआत स्वाइन यानी सुअर से मानी जाती है, लेकिन अब स्वाइन फ्लू के संक्रमण के फैलने का सुअर से कोई संबंध नहीं है, ठीक उसी प्रकार मंकीपॉक्स के फैलने में मंकी का कोई संबंध नहीं है।
चूंकि यह स्मॉल पॉक्स परिवार से संबंध रखता है और यह डीएनए वायरस है, जिसका साइज आमतौर पर बाकी वायरस से बड़ा होता है। यह हवा में एयर टु एयर नहीं फैलता है। यह मरीज के संपर्क में आने से, संक्रमित इंसान के रैश या फोड़े के पानी के संपर्क से और सेक्सुअल रिलेशन से फैलता है।
मंकीपॉक्स वायरस की पहचान पहली बार 1958 में हुई थी, जब रिसर्च के लिए रखे गए बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के प्रकोप मिले थे। मूल रूप से इसे मंकीपॉक्स नाम दिए जाने के बावजूद, इस बीमारी का सोर्स अभी भी अज्ञात है। हालांकि माना जाता है कि सबसे पहले यह बंदरों में ही यह पाया गया था। एमपॉक्स का इंसान में पहला संक्रमण 1970 में कांगो में दर्ज किया गया था। 2022 में एमपॉक्स दुनियाभर में फैल गया। इससे पहले, अन्य स्थानों पर एमपॉक्स के मामले रेयर होते थे। यह वायरस ऑर्थोपॉक्स वायरस जीनस फैमिली का मेंबर है, जो स्मालपॉक्स के लिए भी जिम्मेदार है।
यह अधिक गंभीर बीमारी और मृत्यु का कारण बनता है। इसमें बीमार होने वाले मरीजों में 10 परसेंट तक जान जाने का खतरा बताया गया है। हालांकि हाल के प्रकोपों में मृत्यु दर कम रही है। क्लेड वन, मध्य अफ्रीका में लोकल लेवल पर है। इसका संक्रमण का 2022 में वैश्विक प्रकोप से शुरू हुआ। क्लेड टू, एमपॉक्स से होने वाले संक्रमण कम गंभीर होते हैं। 99.9 परसेंट से ज्यादा लोग बच जाते हैं। क्लेड टू, पश्चिमी अफ्रीका में लोकल लेवल पर है।अफ्रीका सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार अफ्रीका में अब तक एमपॉक्स के 17 हजार मामले आ चुके हैं, जिसमें से 517 की मौत हो चुकी है। अब तक 13 देशों में इसके मामले फैल चुके हैं।
संक्रमित मरीज के संपर्क में आने के बाद तीन से 15-17 दिन में लक्षण दिखते हैं।शुरुआती लक्षण फीवर है, इसके 1 से 4 दिन बाद स्किन पर दाने बनने लगते हैं।दाने अक्सर पहले चेहरे पर आते हैं, इसके बाद हाथ, पैर व अन्य जगह फैलते हैं।लक्षण आने से लेकर दाने बनने और पपड़ी ठीक होने तक संक्रमित व्यक्ति से यह वायरस फैल सकता है।
मंकीपॉक्स के लक्षण आमतौर पर 2 से 4 सप्ताह तक बने रहते हैं।
हर पीड़ित मरीज में सभी लक्षण डिवेलप नहीं होते है।कई लोगों में केवल स्किन में दाने आते हैं, बाकी कोई लक्षण नहीं होता है।कुछ लोगों के पूरे शरीर में दाने बन जाते हैं और साइज भी बड़ा होता है।मंकीपॉक्स के रैशज कई स्टेज में होते हैं, शुरू में दाने होते हैं, फिर यह फफोले में बदल जाते हैं, इसके बाद इसमें पानी आ जाता है। पानी सूखने के बाद यह पपड़ी की तरह होता है। पूरी तरह से ठीक होने में 25 से 30 दिन लग जाते हैं।
डॉ. जुगल किशोर ने बताया कि बच्चे, बुजुर्ग, बीमार, प्रग्नेंट महिलाओं को अधिक खतरा रहता है। इन्हें संक्रमण होने के बाद बीमारी सीवियर हो सकती है। इसलिए संक्रमित मरीज की पहचान के बाद उन्हें तुरंत आइसोलेशन में रखना चाहिए। कई लोगों में इसका संक्रमण निमोनिया और मेननजाइटिस कर देता है और बाद में सेप्टीसीमिया बन जाता है, जिसमें मौत का खतरा ज्यादा होता है।
मंकीपॉक्स की वैक्सीन आ गई है। इसकी एफीकेसी 90% तक है। इसके प्रोडक्शन को बढ़ाना होगा और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस वैक्सीन को पहुंचाना होगा। इसके खिलाफ एंटी वायरल ड्रग भी है, जो अभी इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन इस पर व्यापक स्टडी नहीं है। बहुत कम लोगों पर रिसर्च हुई है। और रिसर्च की जरूरत है।डॉक्टर ने कहा कि अभी तक यह वायरस अफ्रीका और यूरोप में है। भारत व एशिया के दूसरे देशों में इसका एक भी मामला सामने नहीं आया है। चूंकि हवा में नहीं फैलता है, इसलिए बहुत आसानी से इसका संक्रमण नहीं फैलता है। इसलिए हमें डरने की जरूरत नहीं है।
कितनी गंभीर WHO की चेतावनी?
एक बार फिर मंकीपॉक्स को लेकर डब्ल्यूएचओ की तरफ से ग्लोबल पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने के बाद इस पर व्यापक चर्चा शुरू हो गई है। जाहिर सी बात है कि अब इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि कोविड के बाद डब्ल्यूएचओ की चेतावनी को अब गंभीरता से लिया जा रहा है,
ऐसे में इस चेतावनी के बाद सभी देशों को अपने अपने बॉर्डर पर निगरानी शुरु करनी होगी। संक्रमण को रोकने की तैयारी करनी होगी। इससे होने वाली बीमारी को लेकर अपने सिस्टम तैयार करने होंगे। अगर वायरस की एंट्री होती है तो इसके लिए आइसोलेशन वॉर्ड की जरूरत होगी। जांच से लेकर इलाज तक के लिए प्रोटोकॉल तैयार करना होगा।