नई दिल्ली: देशभर में करगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. इस युद्ध का हिस्सा रहे वीर जवानों की कहानी आज हम आपके लिए लाए हैं. करगिल युद्ध में भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तान सेना के छक्के छुड़ा दिए थे और उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया था. पाकिस्तान सेना ने साल 1999 में घुसपैठ कर टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया था. लेकिन भारतीय जवानों की जांबाज़ी से पाकिस्तान सेना को मुंह की खानी पड़ी. एनडीटीवी आज इस युद्ध के असली हीरो से आपको रूबरू करा रहा है. जिन्होंने युद्ध का अपना अनुभव बताया. साथ ही उन जवानों की कहानी भी हम आपके लिए लाए हैं. जो इस युद्ध में शहीद हुए थे.
ऑनररी कैप्टन योगेंद सिंह यादव भी करगिल युद्ध का हिस्सा रहे हैं. इस युद्ध में उन्हें 15 गोलियां लगी थी. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और टाइगर हिल पर भारत का तिरंगा फहराया. करगिल युद्ध के 25 साल पूरे होने पर एनडीटीवी ने परमवीर चक्र विजेता ऑनररी कैप्टन योगेंद सिंह यादव ने खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि जब पाकिस्तानी मेरा हथियार लेकर जाने लगे तो उसके पैर से मेरा पैर टकराया उसे लगा कि मैं जिंदा हूं. मैंने ग्रैंनेड उठाया और उसके ऊपर फेंक दिया, उसका सर उड़ गया. पाकिस्तान के वहां 30- 35 जवान खड़े थे उनमें खलबली मच गई. मैंने एक हाथ से उसकी राइफल को उठाया और फायरिंग करना शुरू कर दिया और 4-5 बंदे को मार दिया.
करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के प्रमुख जनरल वेद प्रकाश मलिक थे. उन्होंने कहा कि युद्ध वाले साल ही फरवरी में वाजपेयी जी और नवाज शरीफ के बीच लाहौर शिखर सम्मेलन हुआ था. लेकिन मई में कारगिल में जंग शुरू हो गई. ये चौंकाने वाला था. पाकिस्तानियों ने घाटी और नाले के जरिए घुसपैठ की. घुसपैठ छोटी-छोटी टुकड़ियों में घाटी और नाले के जरिए की गई. मैंने ऑपरेशन का नाम ‘ऑपरेशन विजय’ रखा था. तोलोलिंग पर दोबारा कब्जा हासिल करने के बाद से ही मुझे पूरी तरह से भरोसा हो गया कि हम जंग जीत जाएंगे. हमने ऑपरेशन 25- 26 मई के आसपास शुरू किया. पहली जीत हमें 13 या 14 जून के आसपास मिली थी. जब हमने तोलोलिंग की पहाड़ियों पर कब्ज़ा दोबारा हासिल कर लिया.
जनरल वीपी मलिक (रिटायर्ड) ने बताया कि जंग आसान नहीं थी. करगिल युद्ध को लेकर इनपुट देने में हमारी इंटेलिजेंस एजेंसी नाकाम रही थी. युद्ध की शुरुआत में स्थिति साफ ही नहीं थी. ये घुसपैठिए कौन हैं, सुरक्षा एजेंसियों को घुसपैठियों की लोकेशन के बारे में कोई इनपुट नहीं था. कैबिनेट कमिटी फॉर सिक्योरिटी (CCS) की मीटिंग में मैंने मांग रखी थी कि ऑपरेशन विजय में इंडियन आर्मी के साथ इंडियन नेवी और इंडियन एयरफोर्स भी काम करेगी. इसलिए करगिल के लिए एयरफोर्स ने ‘सफेद सागर’ ऑपरेशन शुरू किया. नेवी ने ‘ऑपरेशन तलवार’ शुरू किया. बाकी फौज ने मोर्चा संभाल रखा था.” हमने ऑपरेशन का नाम Operation Vijay रखा था और ऐसा हुआ भी.
करगिल युद्ध में वायु सेना के उन 5 हीरो को कोई कैसे याद नहीं कर सकता है, जों आसमान से दुश्मनों के लिए आफत बनें. ये पांचों हीरों अब रिटायर हो चुके हैं, लेकिन युद्ध की यादें आज भी एकदम ताजा है. एयर मार्शल रघुनाथ नाम्बियार वो शख्स थे जिन्होंने सबसे पहले हिंदुस्तान में लेजर गाइडेड बम का इस्तेमाल किया था. दूसरे हीरो एयर मार्शल दिलीप पटनायक हैंं, जिन्होंने इस युद्ध में पाकिस्तान सेना और आतंकवादियों के छक्के छुड़ा दिए थे..
तीसरे हीरों हैं ग्रुप कैप्टन श्रीपद टोकेकर. इन्होंने मिराज 2000 के जरिए मुंथो धालो की पहाड़ियों पर पाकिस्तानियों के चिथड़े उड़ा दिए. अगले हीरो ग्रुप कैप्टन अनुपम बनर्जी हैं. जिन्होंने मिग 27 के फाइटर से दुश्मनों के दांत खट्टे किए. वहीं पांचवे हीरों हैं विंग कमांडर पीजे ठाकुर. उन्होंने मिग 25 से दुश्मन की लोकेशन का पता लगाया और दुश्मनों के खौफनाक इरादों को नाकाम कर दिया.
करगिल युद्ध में शामिल कैप्टन नचिकेता ने युद्ध से जुड़े किस्से सुनाए और बताया कि मिग-27 में के इंजन में आग लगने के बाद उन्हें इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी. नीचे गिरने के आधा घंटे बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें घेर लिया और पकड़ लिया. मेरे साथ मारपीट की गई. तभी पाकिस्तान एयर फोर्स के एक अधिकारी कैसर तुफैल वहां आए और मुझे एक कमरे में लेकर गए. मेरे साथ सही से व्यवहार किया गया. भारत सरकार की कोशिशों से पूरे आठ दिन बाद ग्रुप कैप्टन नचिकेता को रेड क्रॉस को सौंप दिया गया. रेड क्रॉस के जरिए वे वाघा बॉर्डर के रास्ते भारत पहुंचे.
करगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा जैसा युद्धा भारत ने खो दिया. देश की रक्षा करते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए और लेकिन इतिहास में अमर गए. परमवीर कैप्टम विक्रम बत्रा ने प्वाइंट 4875 में सेना को लीड किया और पांच दुश्मनों सैनिकों को मार गिराया. घायल होने के बाद भी उन्होंने दुश्मन पर ग्रेनेड फेंके. ये जंग तो भारत जीत गया लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हो गए. उन्होंने आज भी लोगों ने दिलों में याद रखा है और देश का शेरशाह कहते हैं.
करगिल युद्ध’ में जवान योगेंद्र यादव की बहादुरी को कोई कैसे भूल सकता है. अपने सीने पर एक, दो नहीं, बल्कि 17 गोली खाकर भारत माता की रक्षा करने वाले योगेंद्र यादव के शौर्य ही कहानी रोंगटे खड़े कर देनी वाली है. महज 19 साल की उम्र में उन्होंने दुश्मनों को चारों खाने चित्त कर दिया. योगेंद्र यादव का जन्म 1 मई 1980 को हुआ था और वो साल 1996 में 18 ग्रेनेडियर बटालियन में भर्ती हुए. 1999 में वो शांदी के बंधन में बंधे. शादी के पांच महीने बाद उन्हें सीमा पर करगिल युद्ध की वजह से जाना पड़ा.
योगेंद्र यादव को 7 सदस्यीय घातक प्लाटून का कमांडर बनाया गया. उन्हें 3 जुलाई 1999 की रात को टाइगर हिल फतेह करने का टास्क दिया गया था. टाइगर हिल पर खड़ी चढ़ाई थी, बर्फ से ढका और पथरीला पहाड़ था. इसी बीच पाकिस्तानी सेना की ओर फायरिंग की जाने लगी. पाकिस्तान की ओर से भारतीय जवानों पर ग्रेनेड और रॉकेट से हमला किया गया. इस हमले में छह भारतीय जवान शहीद हो गए. योगेंद्र यादव को एक या दो नहीं, बल्कि 17 गोलियां लगी थी. साथियों की शहादत देखते हुए प्लाटून जहां थी, वहीं रूक गई.
इसके बाद, योगेंद्र यादव ने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए हमला बोल दिया. योगेंद्र यादव साहस दिखाते हुए टाइगर हिल की तरफ बढ़ते चले गए. दुश्मनों ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया था. दुश्मनों ने अपना हमला जारी रखा. लेकिन, योगेंद्र यादव ने हार नहीं मानी और उन्होंने जवाबी हमला करते हुए आठ पाकिस्तानी आतंकियों को मार गिराया. इसके बाद, टाइगर हिल पर भारत का तिरंगा फहराया. 17 गोली लगने के बाद वो कई महीनों तक जिंदगी और मौत से जंग लड़ते रहे. कई महीनों तक अस्पताल में रहने के बाद उन्हें भारत सरकार की ओर से परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.