वॉशिंगटन: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में रूस का दौरा किया है, जहां वह बेहद गर्मजोशी के साथ व्लादिमीर पुतिन से मिले। दोनों नेताओं की मुलाकात ऐसे समय हुई है जब अमेरिका में नाटो समिट हो रहा है। जो बाइडन के लिए महत्वपूर्ण नाटो शिखर सम्मेलन से ठीक पहले नरेंद्र मोदी और व्लादिमीर पुतिन के गले मिलने ने अमेरिकी अधिकारियो को नाराज कर दिया है। ब्लूमबर्ग से बात करते हुए बाइडन प्रशासन के दो अधिकारियों ने कहा कि मोदी की पांच साल में पहली रूस यात्रा ने उन लोगों को फायदा पहुंचाते हुए सवाल उठाने का मौका दिया है, जो यूएस के भारत सरकार के साथ घनिष्ठ संबंधों के खिलाफ हैं।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी की मॉस्को यात्रा ऐसे समय हुई है, जब रूसी हमले में यूक्रेन में 38 लोग मारे गए हैं और अमेरिका नाटो शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। ऐसे में इस दौरे ने बाइडन को यूक्रेन के लिए समर्थन बढ़ाने पर भी मजबूर किया है। अमेरिकी अधिकारियों ने मोदी की मॉस्को यात्रा पर कहा, ‘हमें विश्वास है कि अमेरिका-भारत संबंध बातचीत के जरिए मौजूदा घटनाक्रम से उबर जाएंगे लेकिन ये भी सच है कि मोदी की यात्रा बाइडन प्रशासन को असहज करने वाली थी।’
अमेरिकी अधिकारियों ने हाल के हफ्तों में भारतीय समकक्षों के सामने अपनी चिंताओं को जाहिर भी किया है। ऐसी ही एक कॉल में विदेश उप सचिव कर्ट कैंपबेल ने भारतीय विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा से कहा कि खासतौर से यात्रा का समय वाशिंगटन के लिए समस्या पैदा करने वाला था। हालांकि कैंपबेल ने ये भी कहा कि अमेरिका समझता है कि भारत के रूस के साथ लंबे समय से संबंध रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के एक अधिकारी ने भारत को रणनीतिक साझेदार बताते हुए कहा कि ये संबंध भारत को पुतिन से युद्ध समाप्त करने और यूक्रेन के लिए एक स्थायी शांति प्राप्त करने का आग्रह करने की क्षमता देते हैं। अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, रूसी मीडिया में अटकलों के बाद भारत सरकार ने अमेरिका को मोदी की योजनाओं के बारे में पहले ही सूचित कर दिया था और अमेरिका को आश्वासन दिया था कि यह यात्रा बहुत ही सरल होगी।
वाशिंगटन में सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी थिंक टैंक की वरिष्ठ फेलो और व्हाइट हाउस की पूर्व अधिकारी लिसा कर्टिस कहती हैं, ‘यात्रा का समय अमेरिकी हितों के प्रति उपेक्षा को दिखाता है। बीते वर्ष अमेरिका-भारत संबंधों में हुई प्रगति को देखते हुए ये अच्छा संकेत नहीं है।
भारत रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बनाने का काम कर रहा है, लेकिन वह रूस की ओर झुका हुआ लग रहा है।’ दूसरी ओर भारतीय अधिकारियों की ओर से इस दौरे के लिए कहा जा रहा है कि ये रूस को चीन की तरफ जाने से रोकने के लिए बहुत जरूरी था।