देहरादून। रिस्पना के किनारों पर चिह्नित किए गए अवैध निर्माण के विरुद्ध नगर निगम ने कार्रवाई शुरू कर दी है। निगम की भूमि पर वर्ष 2016 के बाद किए गए कब्जों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह का अल्टीमेटम दिया गया है। एनजीटी के निर्देश पर निगम की ओर से रिस्पना नदी के किनारे 27 बस्तियों का सर्वे कर 560 अतिक्रमण चिह्नित किए गए है। जिनमें एमडीडीए और मसूरी नगर पालिका की भूमि भी शामिल है।
एनजीजी के निर्देश पर नगर निगम ने काठबंगला बस्ती के निकट से मोथरोवाला तक करीब 13 किमी दूरी पर रिस्पना के किनारे स्थित 27 मलिन बस्तियों में सर्वे किया। जहां वर्ष 2016 के बाद किए गए निर्माण को चिह्नित किया गया। मलिन बस्ती के संबंध में अध्यादेश लागू किए जाने के बाद नियमानुसार वर्ष 2016 के बाद के निर्माण अवैध माने गए हैं।
सर्वे के दौरान निगम ने कुल 560 अतिक्रमण चिह्नित किए। सर्वे की रिपोर्ट शासन को सौंप दी गई है। साथ ही बुधवार को निगम की ओर से अपनी भूमि पर चिह्नित अतिक्रमण के विरुद्ध नोटिस जारी कर दिए गए हैं। अतिक्रमण हटाने को लेकर एक सप्ताह का समय दिया गया है, जिसके बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, इसमें ज्यादातर कब्जे एमडीडीए की भूमि पर बताए जा रहे हैं।
रिस्पना रिवर फ्रंट योजना के लिए एमडीडीए को दी जा रही खाली जमीन पर धड़ल्ले से कब्जे किए गए। कुल 560 में से 400 के करीब कब्जे इसी भूमि पर चिह्नित किए गए। राजपुर से सटे क्षेत्र में करीब 12 अतिक्रमण नगर पालिका मसूरी की भूमि पर हैं। इस संबंध में निगम की ओर से उन्हें जानकारी दी गई है।
निगम के सर्वे में सबसे अधिक कब्जे काठबंगला बस्ती, जाखन बस्ती, वीर गबर सिंह बस्ती, चीड़ोवाली क्षेत्र, कंडोली, करनपुर से सटी बस्ती, डालनवाला के पास बस्ती क्षेत्र, लोअर राजीव नगर, अजबपुर कलां की बस्ती में मिले हैं। सर्वे के दौरान पाया गया कि रिस्पना नदी के किनारे खाली पड़ी सरकारी भूमि पर किसी ने बाउंड्रीवाल कर कब्जा कर दिया। जबकि, किसी ने गोशाला व सुअरों का बाड़ा बना दिया। यही नहीं, आसपास स्थित पुराने मकानों के साथ ही नए मकान भी बना दिए गए।
देहरादून में नदी-नालों के किनारों पर बसी मलिन बस्तियों का अस्तित्व इस वर्ष अक्टूबर तक ही है। वोट बैंक के रूप में मलिन बस्तियों को भुनाने के लिए सरकारों ने नियमितीकरण के सपने दिखाए, लेकिन इस दिशा में कार्रवाई नहीं हुई।
हालांकि, बस्तियों को बचाने के लिए अध्यादेश जरूर लाए गए। वर्ष 2021 में पिछली भाजपा सरकार की ओर से तीन वर्ष के लिए अध्यादेश लाया गया था। जिसकी समय सीमा इस वर्ष अक्टूबर में समाप्त हो जाएगी। इसके बाद सरकार को कोई निर्णय लेना होगा।