देहरादून। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने को है, लेकिन उत्तराखंड में कांग्रेस कैंप में अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद हो रहे पांचवें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस में ऐसी परिस्थिति पहली बार देखी जा रही है। प्रदेश में पांच में से एक-दो सीटों को छोड़ दिया जाए तो तीन सीटों पर टिकट के दावेदारों की धरातल पर सक्रियता दिखाई ही नहीं दे रही है।
दावेदारों के नाम तो गिनाए जा रहे हैं, लेकिन स्वयं लोकसभा क्षेत्रों में उनकी निष्क्रियता कई सवाल खड़े कर रही है। यह हाल तब है, जब टिकट तय करने के लिए प्रदेश स्क्रीनिंग कमेटी देहरादून से लेकर दिल्ली तक बैठकों में माथापच्ची कर रही है।
यही नहीं, सत्ताधारी दल भाजपा का विकल्प बनने के लिए ताकत झोंक रही कांग्रेस के कार्यकर्ता इस उदासीनता से बेचैन हैं। यद्यपि, बाहर भले ही टिकट के दावेदारों में यह खामोशी दिख रही हो, लेकिन कांग्रेस अंदरखाने पांचों सीटों पर जीतने के लिए पूरी गणित भिड़ाई जा रही है। आला नेताओं का कहना है कि यह खामोशी नहीं, रणनीति है।
भाजपा प्रत्याशियों की घोषणा के बाद पूरा माहौल गर्माएगा और प्रमुख प्रतिपक्षी पार्टी पत्ते खोलेगी। एक लंबा समय ऐसा भी रहा है, जब कांग्रेस के टिकट को पाने के लिए दावेदारों में होड़ मची रहती थी। खींचतान कई बार सार्वजनिक मंचों पर भी दिखती थी। टिकट पाने या अपने पसंदीदा नेता को टिकट दिलाने के समर्थन में कांग्रेस नेताओं और क्षत्रपों की दिल्ली दौड़ आम बात रही है।
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद यहां वर्ष 2004 में लोकसभा का पहला चुनाव रहा हो या वर्ष 2019 का चौथा लोकसभा चुनाव कांग्रेस का टिकट पाने के लिए खूब मारामारी देखी जाती रही है। प्रदेश में कभी मजबूत जनाधार रखने वाली कांग्रेस अब संघर्ष के लिए विवश है। शहरों से लेकर गांवों तक पार्टी की स्थिति एकाधिकार वाली रही है, जबकि भाजपा का जनाधार मात्र शहरी क्षेत्रों तक सिमटी रही था।
हालात, इस कदर बदले कि पिछले दो लोकसभा चुनाव में पार्टी खाता खोलने को तरस गई। पिछले दो विधानसभा चुनावों में पार्टी को करारी हार के साथ सत्ता से दूर रहना पड़ा है। अब प्रदेश में लोकसभा चुनाव में संभावित प्रत्याशियों और दावेदारों का ठंडा रवैया केंद्रीय नेतृत्व से लेकर कार्यकर्ताओं की बेचैनी बढ़ा रहा है।
लोकसभा की कुल पांच सीटों में से हरिद्वार और पौड़ी ही ऐसी हैं, जहां टिकट के दावेदारों समेत प्रदेश संगठन लंबे समय से सक्रिय दिखाई दिया है। पौड़ी लोकसभा क्षेत्र में वनंतरा रिसॉर्ट प्रकरण पर पार्टी मुखर रही है। हरिद्वार लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सक्रिय हैं।
उनके मैदान पर खम ठोकने के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने भी लंबे समय तक अपना दावा ठोका, लेकिन अब उनकी उनकी गतिविधियां भी एकाएक धीमी पड़ गईं। अन्य तीन सीटों टिहरी, नैनीताल-ऊधमसिंहनगर और अल्मोड़ा में टिकट के दावेदारों ने अभी तक उत्साह नहीं दिखाया है। पार्टी नेतृत्व के सामने इन परिस्थितियों से निपटने की चुनौती है।
यद्यपि, कांग्रेस का मत प्रतिशत गिरा, लेकिन इसके बावजूद पार्टी को भाजपा के बाद प्रदेश की जनता के सर्वाधिक मत मिले हैं। अब तक हो चुके चार लोकसभा चुनावों में से एक चुनाव ऐसा भी रहा, जब कांग्रेस ने अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी भाजपा से नौ प्रतिशत से अधिक मतों से पछाड़ दिया था।
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यह कारनामा कर दिखाया था। पार्टी ने 43.14 प्रतिशत मत लेकर लोकसभा की सभी पांचों सीटों पर परचम लहराया था। पिछले दो लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को 30 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त हुए हैं। यही कारण है कि कांग्रेस हाईकमान उत्तराखंड में अपनी जड़ों को दोबारा से मजबूत करने को लेकर गंभीर है।
पार्टी नेतृत्व और प्रदेश संगठन सभी सीटों पर जीत के लिए सांगठनिक और रणनीतिक दृष्टि से सक्रिय है। पार्टी की गतिविधियों पर हाईकमान की सीधी नजर भी बताई जा रही है। इसीलिए प्रदेश पर अपनी पकड़ बनाने के लिए हर सीट पर जीत की संभावनाएं तलाश की जा हैं।
पार्टी के पास पहले से ही प्रत्येक लोकसभा सीट में कार्यकर्ताओं की टीम रही है। पार्टी हाईकमान उत्तराखंड में अपने जनाधार की वापसी में बहुत रुचि ले रहा है। हर सीट की प्रकृति, राजनीतिक स्थिति और समीकरणों को ध्यान में रखकर पार्टी चुनाव की तैयारी प्रारंभ कर चुकी है।
‘प्रदेश में कांग्रेस संगठन पूरी तरह सक्रिय है और लोकसभा चुनाव के लिए कमर कसे हुए है। चुनाव की तैयारियां काफी पहले से शुरू हो चुकी हैं। प्रदेश संगठन की ओर से प्रत्याशियों का पैनल स्क्रीनिंग कमेटी को भेजा जा चुका है। पार्टी के सभी नेता व टिकट के दावेदार सक्रिय हैं।
संभावित प्रत्याशी की पूरी सक्रियता टिकट तय होने के बाद दिखाई देगी। सभी बड़े नेताओं को इस चुनाव के लिए एकजुटता के साथ काम करने की आवश्यकता है।’ – करन माहरा, अध्यक्ष उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी।