उदय दिनमान डेस्कः बिहार में अभी से ही गर्मी का असर दिखने लगा है. वहां की 24 नदियों में पानी नहीं के बराबर है तो 12 नदियां पूरी तरह सूख गई हैं. लेकिन ये कोई नया मामला नहीं है. इससे पहले ग्लोबल वार्मिंग की वजह से स्लिम्स नदी सूख गई थी. इसी तरह की त्रासदी का शिकार अरल सागर भी हुआ था.
आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन बता दें कि अरल सागर कभी दुनिया का चौथा सबसे बड़ा समंदर था, जो कजाखस्तान और उत्तरी उज्बेकिस्तान के बीच मौजूद था. लेकिन ये समुद्र तकरीबन 90 फीसदी तक सूख चुका है. कभी ये 68,000 किमी के इलाके में फैला था. कई जहाज तक इसमें अटके रह गए और उन्हें आगे का रास्ता तक नहीं मिला. 2017 में इस समंदर के सूखकर सिकुड़ने की पुष्टि नासा (NASA) ने भी की थी.
अरल सागर को आइलैंड का समंदर कहा जाता था, जिसमें 1534 द्वीप मौजूद हुआ करते थे. लेकिन पिछले 50 सालों में इसका 90 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सूख चुका है. इसके सूखने की घटना को दुनिया की सबसे बड़ी पर्यावरण त्रासदी में से एक माना जाता है. नासा भी इस समुद्र के सूखने की पुष्टि कर चुका है. एक्सपर्ट के मुताबिक, 1960 से इस सागर के सूखने का सिलसिला शुरू हुआ.
1997 तक आते-आते अरल सागर चार झीलों में बंट गया था, जिसे उत्तरी अरल सागर, पूर्व बेसिन, पश्चिम बेसिन और सबसे बड़े हिस्से को दक्षिणी अरल सागर का नाम दिया गया. इसके बाद 2009 तक अरल सागर का दक्षिण-पूर्वी हिस्सा पूरी तरह से सूख गया और दक्षिण-पश्चिमी हिस्सा पतली पट्टी में तब्दील हो गई.
चौथे सबसे बड़े समुद्र के सूखने से सबसे ज्यादा नुकसान फिशिंग इंडस्ट्री को हुआ, जो पूरी तरह से बर्बाद हो गई. इससे एक तरफ बेरोजगारी बढ़ी तो दूसरी तरफ आर्थिक नुकसान भी हुए. इतना ही नहीं, इस सागर के सूखने से प्रदूषण भी बढ़ गया और लोगों को सेहत से जुड़ी परेशानियों से भी जूझना पड़ा. रिपोर्ट्स की मानें तो इसके सूखने की शुरुआत सोवियत संघ के एक प्रोजेक्ट के चलते हुई,
जब 1960 में एक सिंचाई प्रोजेक्ट के लिए नदियों का बहाव मोड़ा गया. हालांकि, इसके बाद सागर को सूखने से बचाने के लिए कजाखस्तान ने डैम बनाना शुरू किया, जो 2005 में पूरा हुआ. इसके बाद 2008 में सागर में पानी का स्तर 2003 की तुलना में 12 मीटर तक बढ़ा था. हालांकि, ऐसी तमाम कोशिशों के बावजूद सागर की स्थिति को सुधारा नहीं जा सका.