नई दिल्ली। रविवार को रूस के ‘मिशन मून’ को बड़ा झटका लगा। रूस का लूना-25 स्पेसक्राफ्ट (Russia Luna 25 Spacecraft Crashed) चांद की सतह पर उतरने से पहले क्रैश हो गया। 14 अगस्त को लॉन्च किया गए लूना-25 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना था।
रूस का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्पेसक्राफ्ट को उतारने का सपना फिलहाल टूट चुका है।तकरीबन पांच दशक के बाद रूस ने चंद्रमा पर जाने के लिए मून मिशन लॉन्च किया था। याद रहे कि पहली बार अंतरिक्ष में मानव (पुरुष और महिला) को भेजना वाला देश रूस ही है। सोवित यूनियन के समय यह कारनामा किया गया था।
चांद पर लैंडिंग से पहले लूना-25 स्पेसक्राफ्ट को सही तरीके से ऑर्बिट बदलना जरूरी था। स्पेसक्राफ्ट सही ढंग से ऑरबिट बदलने में असफल रहा। रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने रविवार को जानकारी दी कि लूना-25 को ऑर्बिट में प्रवेश करने का कमांड मिला और प्री-लैंडिंग के लिए ऑर्बिट में भेजने के लिए थ्रस्ट जारी किया गया। उसी समय इमरजेंसी हालात पैदा हुए और मिशन का मेन्यूवर पूरा नहीं हो सका।
प्रपोल्शन मैनूवर के समय लूना-25 स्पेसक्राफ्ट चांद की सतह से क्रैश हो गया। फ्रांस के अंतरिक्ष विज्ञानिक और उल्कापिंडों पर स्टडी करने वाले फ्रैंक मार्चिस ने जानकारी दी कि सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी की वजह से लूना ग्लोब लैंडर सही तरह से काम नही ंकर सका। निर्णायक कक्षा समायोजन के दौरान अप्रत्याशित लंबे इंजन के ओवरफायर के कारण यह मिशन फेल हुआ।
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी जानकारी दी कि मिशन की विफलता के कारणों की जांच के लिए एक अंतर एजेंसी आयोग का गठन किया जाएगा। बता दें कि पांच दशक में पहली बार रूस का मून मिशन फेल हुआ है। साल 1976 में सोवियत यूनियन के दौर में लूना-24 को चांद पर सफलतापूर्वक भेजा गया था।लूना-25 अपने साथ एक लैंडर लेकर गया था और 19 अगस्त को रूस ने लूना-25 के जरिए भेजी गई तस्वीर को शेयर की। रूस ने जानकारी दी थी कि यह फोटो जीमन क्रेटर की तस्वीर है।
बता दें कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद तकरीबन 20 गहरे गड्डों में जीमन क्रेटर तीसरा बड़ा क्रेटर है। यह गड्ढा तकरीबन 190 किलोमीटर चौड़ा और 8 किलोमीटर गहरा है।चांद के दक्षिणी ध्रुव (Moon South Pole) पर स्पेसक्राफ्ट को लैंड कराना एक टेढ़ी खीर है क्योंकि चांद के उत्तर या मध्य क्षेत्र की जगह समतल है और सूरज की सही रोशनी वहां आती है। वहीं, दक्षिणी ध्रुव पर रोशनी नहीं पहुंचती है। वहीं, यह क्षेत्र गड्ढों से भरी है।
इसके अलावा पृथ्वी की तुलना में चांद पर गुरुत्वाकर्षण 16.6 फीसदी है। वहीं, चांद पर सैटेलाइट सिग्नल का नेटवर्क नहीं है। चंद्रमा का ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण की कठिनाइयों के कारण बहुत अलग भूभाग हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो ध्रुवीय क्रेटरों की चट्टानों में पानी की प्रचुर मात्रा हो सकती है
लूना-25 को चांद के दक्षिणी ध्रुव के पर भेजने के पूछे रूस का मकसद भी कुछ वैसा ही थो चंद्रयान-3 का है। यानी लूना-25 का उद्देश्य चांद के इस क्षेत्र में मौजूद चट्टान और धूल के नमूना हासिल करना था।गौरतलब है कि रूस अपने आगामी मून मिशन यानी लूना-26, 27 और 28 पर काम कर रहा है, लेकिन उम्मीद है कि रूस के आगमी अंतरिक्ष मिशन में कुछ देरी होगी रूसी अंतरिक्ष कार्यक्रम आर्थिक और तकनीकी रूप से संघर्ष कर रहा है।
याद रहे कि भारत के चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) को 23 अगस्त को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा की सतह पर उतारा जाएगा। भले ही रूस का लूना 25 चंद पर सफलतापूर्वक पहुंचने से नाकामयाब रहा लेकिन, भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया को उम्मीद है कि लैंडर विक्रम सफलतापूर्व चंद की सतह पर लैंड करेगा। इसके साथ इसरो दुनिया के साथ चांद के अनसुलझे राज को साझा करेगा।