इंफाल : मणिपुर में पिछले 16 महीनों से हिंसा जारी है. इसी बीच एक इनपुट ने राज्य में सुरक्षा एजेंसियों के लिए गंभीर चिंता बढ़ा दी है.हाल ही में आई एक जानकारी ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है. खुफिया सूत्रों के मुताबिक, 900 से अधिक कुकी उग्रवादी, जो ड्रोन से बम, प्रोजेक्टाइल, मिसाइल चलाने और जंगल में युद्ध लड़ने में प्रशिक्षित हैं, म्यांमार के रास्ते मणिपुर में घुस आए हैं.
सूत्र बताते हैं कि ये उग्रवादी 30 सदस्यों के समूहों में विभाजित होकर राज्य के विभिन्न हिस्सों में फैल गए हैं. जानकारी के अनुसार, 28 सितंबर को ये उग्रवादी मैतई समुदाय के गांवों पर हमला करने की योजना बना रहे हैं. यह खुफिया रिपोर्ट मणिपुर के थौबल जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दी है. मणिपुर के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने इंफाल में इस रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए कहा कि इस सूचना को गंभीरता से लिया जा रहा है और इसके खिलाफ प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं.
मणिपुर में पिछले 16 महीनों से जारी हिंसा ने राज्य को हिला कर रखा है, लेकिन सितंबर की शुरुआत में हुई ताजा हिंसा ने सबको चौंका दिया. इस हमले में ड्रोन, मिसाइलों और आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया था. कुकी और मैतई समुदाय के बीच संघर्ष में अब तक 226 लोगों की जान जा चुकी है, सैकड़ों घायल हुए हैं और हजारों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है.
मणिपुर में हिंसा थमने का नाम क्यों नहीं ले रही, इसका मुख्य कारण कुकी और मैतई समुदायों के बीच का जातीय संघर्ष है. मैतई समुदाय घाटी में जबकि कुकी समुदाय पहाड़ों में रहता है. हिंसा के बाद से दोनों समुदायों का एक-दूसरे के क्षेत्रों में आना-जाना लगभग बंद हो गया है.
यह अलगाव हिंसा के जारी रहने का एक बड़ा कारण है. दोनों समुदायों ने अपने-अपने क्षेत्र में बंकर बना लिए हैं और उनके पास बड़ी मात्रा में हथियार भी हैं. जब भी उन्हें मौका मिलता है, वे एक-दूसरे पर हमला करते हैं और फिर अपने बंकरों में छिप जाते हैं. घाटी और पहाड़ी इलाकों की भौगोलिक स्थिति के कारण उन्हें रोक पाना भी चुनौतीपूर्ण है.
भारत-म्यांमार सीमा को पूरी तरह से सील करना होगा ताकि हथियारों की तस्करी न हो सके। हथियारों और युद्ध शुरू करने वाले सामानों की बरामदगी के लिए इंटेलिजेंस बेस्ड ऑपरेशन करने की जरूरत है। दूसरा कदम है, दोनों समुदायों के बीच बातचीत शुरू करना, जिससे अविश्वास को कम किया जा सके। दोनों की विशेष शिकायतों का गंभीरता से समाधान किया जाना चाहिए। शांति और सुलह के लिए एक आयोग का गठन किया जाए। इसमें ऐसे तटस्थ सदस्य हों, जिन्हें दोनों समुदाय स्वीकार करें
लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता (रिटायर्ड) पूर्वोत्तर के इकलौते सैन्य अधिकारी थे, जो आर्मी कमांडर के पद तक पहुंचे। वह पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ थे और मणिपुर का जिम्मा उनके पास था। पिछले साल दिसंबर में वह रिटायर हुए। उन्होंने प्रबीन कलिता को बताया कि क्यों मणिपुर बार-बार हिंसा के चक्र में फंस जाता है और वहां शांति लाने के लिए क्या करना होगा:
मणिपुर में पिछले साल से संघर्ष चल रहा है। इतने लंबे अरसे बाद भी हल नहीं निकल पाने की वजह क्या है?
मणिपुर में जारी संघर्ष के तीन कारण हैं। पहली वजह है कि दोनों समुदायों के बीच अब भी अविश्वास है और जातीय आधार पर पूरी तरह से ध्रुवीकरण हो चुका है। यहां तक कि सरकारी अधिकारी और पुलिसकर्मी भी इसी आधार पर बंट चुके हैं।
दूसरी वजह है- हथियारों का आसानी से मिलना। हाल में हमने देखा कि ड्रोन और दूसरी चीजों का हथियारों के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। तीसरी वजह, गलत और भ्रामक जानकारी फैलाने का लगातार अभियान चलाया जा रहा है। सभी पक्ष सोशल मीडिया के जरिये मिस-इन्फॉर्मेशन फैला रहे हैं। इसलिए, जब तक इन वजहों को नहीं रोका जाता, तब तक शांति स्थापित करने में मुश्किल पेश आएगी।
केंद्रीय सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बावजूद स्थिति एक साल पहले जैसी ही बनी हुई है। इसकी क्या वजह है?
मैं मानता हूं कि सुरक्षाबलों की मौजूदगी है, लेकिन इलाके की बनावट ऐसी है कि हर जगह की सुरक्षा नहीं की जा सकती।
दूसरी समस्या है मणिपुर पुलिस का ध्रुवीकरण, जो कि एक चुनौती है। हालांकि इस मामले में हालात बेहतर हुए हैं। किसी भी राज्य में केंद्रीय बलों की तैनाती वहां की अथॉरिटीज की सहायता के लिए होती है। इंटेलिजेंस और दूसरे जरूरी सहयोग के लिए उन्हें राज्य पुलिस पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में मणिपुर पुलिस का ध्रुवीकरण शायद केंद्रीय बलों के कामकाज में बाधा डाल रहा है।
लेकिन हां, मुख्य समस्या इलाके की बनावट के कारण है। इसके अलावा, दोनों पक्षों का लगभग पूरा समाज ही हथियार उठा चुका है।पुलिस थानों से पांच से 6 हजार हथियार लूटे गए थे, जो अब भी लोगों के पास हैं। इसके अलावा, म्यांमार में अस्थिरता और भारत-म्यांमार के बीच जगह-जगह खुली सीमा के कारण उधर से बड़ी संख्या में हथियार आ रहे हैं।
शुरुआत से ही हमने देखा है कि दोनों समुदायों से जुड़े उग्रवादी इस हिंसा में शामिल हो रहे हैं। कुछ रिपोर्ट्स थीं कि घाटी आधारित कुछ उग्रवादी समूह म्यांमार के कैंपों से आए और यहां हिंसक गतिविधियों में शामिल हुए। कुकी SoO ग्रुप भी इसमें शामिल रहे हैं। हाल ही में जीरीबाम की घटना में यह पता चला कि मारे गए 6 लोगों में से दो आम नागरिक थे, तीन कुकी समूह के थे और एक UNLF-Pambei ग्रुप का था, जो एक मैतेई समूह है।
दोनों पक्षों के सिविल सोसायटी ऑर्गनाइजेशन मुख्य रूप से अपने-अपने समुदायों के नैरेटिव को आगे बढ़ा रहे हैं और बता रहे हैं कि उन्हें किस तरह का समाधान चाहिए। हमें पता है कि कुकी समुदाय अपने लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहा है। वहीं, मैतेई समुदाय का कहना है कि वह मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता पर किसी तरह का खतरा नहीं आने देगा। इस तरह से दोनों समुदायों की सिविल सोसायटी अपने विचारों और नैरेटिव को तो बढ़ा रही हैं, लेकिन वे एक-दूसरे से बात नहीं करना चाहतीं।
मणिपुर में साल 1997 में यूनिफाइड हेडक्वॉर्टर्स बनाए गए थे। उस समय स्ट्रैटिजिक ग्रुप की कमान चीफ सेक्रेटरी के पास थी। फिर, साल 2004 में बदलाव हुआ और इस ग्रुप की अध्यक्षता राज्य के मुख्यमंत्री करने लगे। हालांकि पिछले साल मई से जो हालात बने, उसे देखते हुए नोटिफिकेशन में राज्य को एक सुरक्षा सलाहकार नियुक्त करने की सलाह दी गई और उसे संयुक्त मुख्यालय का चेयरमैन बना दिया गया। लेकिन, नोटिफिकेशन के एक पैरे में कहा गया है कि सीएम जब चाहें बैठक बुला सकते हैं और उस बैठक की अध्यक्षता वही करेंगे।
इसलिए मेरी समझ के अनुसार वास्तव में अधिकार मुख्यमंत्री के पास ही हैं और यूनिफाइड हेडक्वॉर्टर पर उन्हीं का नियंत्रण है। वैसे भी संविधान के अनुसार, कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है। ऐसे में यह मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है कि वह सिक्यॉरिटी अडवाइजर या चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी के जरिये कानून-व्यवस्था को देखने का संवैधानिक कर्तव्य निभाएं। ये सभी लोग कम्बाइंड हेडक्वॉर्टर और यूनिफाइड हेडक्वॉर्टर का हिस्सा हैं।
पहला कदम है हिंसा पर तुरंत नियंत्रण पाना। इसके लिए हमें कुछ कड़े कदम उठाने होंगे। भारत-म्यांमार सीमा को पूरी तरह से सील करना होगा ताकि हथियारों की तस्करी न हो सके। घाटी के अंदरूनी इलाकों पर नियंत्रण रखना होगा ताकि हथियारबंद उपद्रवियों की आवाजाही को रोका जा सके।
हथियारों और युद्ध शुरू करने वाले सामानों की बरामदगी के लिए इंटेलिजेंस बेस्ड ऑपरेशन करने की जरूरत है। दूसरा कदम है, दोनों समुदायों के बीच बातचीत शुरू करना, जिससे अविश्वास को कम किया जा सके। दोनों की विशेष शिकायतों का गंभीरता से समाधान किया जाना चाहिए। मेरा सुझाव है कि शांति और सुलह के लिए एक आयोग का गठन किया जाए। इसमें ऐसे तटस्थ सदस्य हों, जिन्हें दोनों समुदाय स्वीकार करें।
संघर्ष शुरू होने के बाद कई सारे जांच आयोग बैठाए गए थे और कुछ मामलों को CBI ने भी संभाला था। इन सभी मामलों को बंद किया जाना चाहिए ताकि लोगों को पता चले कि केंद्र सरकार ईमानदार प्रयास कर रही है। साथ ही, इस संघर्ष में जिन लोगों ने अपना बहुत कुछ खोया है, उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए। मुझे लगता है कि दोनों समुदायों को जोड़ने में समाज के सभी वर्गों को शामिल होना चाहिए। यह केवल राजनीतिक संवाद नहीं है। मणिपुर के बाहर की सिविल सोसायटी, मीडिया और अन्य को भी इसमें शामिल होना चाहिए।