13 सैनिक शहीद, सिर्फ 3 आतंकी मारे गए!

नई दिल्ली: करीब 20 सालों तक शांत रहे जम्मू में आखिर ऐसा क्या हो गया कि करीब तीन साल से वहां आतंकी कई वारदातों को अंजाम दे चुके हैं? घात लगाकर सिक्योरिटी फोर्स को ही नहीं बल्कि आम नागरिकों को भी निशाना बना रहे हैं।

सुरक्षा बलों के गहन अभियानों के बावजूद आतंकी अपने मंसूबों में सफल हो जा रहे हैं। जुलाई का महीना अभी पूरा गुजरा भी नहीं है कि भारतीय सेना के नौ सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं। ढाई महीने में सुरक्षा बलों के कुल 13 सैनिकों की शहादत हुई है जबकि आतंकी सिर्फ तीन मारे गए हैं।

आतंकी कम्युनिकेशन के लिए हाईलेवल इनक्रिप्टेड सेट, अल्ट्रा सेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह रेडियो कम्युनिकेशन सेट चीन मेड है और पाकिस्तान की सेना भी इसका इस्तेमाल करती है। मेजर जनरल यश मोर (रिटायर्ड) कहते हैं कि पहले हम आतंकवादियों की कम्युनिकेशन पकड़ लेते थे और इससे उनके मंसूबों का पता चल जाता था,

पिछले 1-2 साल में आतंकियों के पास अल्ट्रा सेट हैं जो पकड़ में नहीं आते इसलिए हमारी सिक्यॉरिटी फोर्स उन्हें पकड़ नहीं पा रही है। मेजर जनरल मोर के मुताबिक यह एक बड़ी वजह है जिससे आतंकी अपने मंसूबों में सफल हो पा रहे हैं क्योंकि उनकी भनक नहीं लग पा रही है।

मेजर जनरल मोर कहते हैं कि जिस तरह से आतंकी हमला कर रहे हैं उससे साफ है कि वे काफी ट्रेंड हैं। वे उन जगहों पर अटैक कर रहे हैं जहां सिक्यॉरिटी फोर्स हमले की सबसे कम आशंका मान रही है और वे सरप्राइज दे रहे हैं। साथ ही झूठी जानकारी या दूसरे तरीकों से ट्रैप कर रहे हैं और फिर घात लगाकर हमला कर रहे हैं। लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी (रिटायर्ड) ने डोडा, पुंछ, रजौरी इलाके की टेरेन बताते हुए कहा कि वहां विजिबिलिटी काफी कम होती है और अगर ऊंचाई से कोई घात लगाकर हमला करे तो वह उसके पक्ष में होता है।

यहां आतंकी अपने टाइम पर पूरी रेकी कर हमला कर रहे हैं। इसलिए हर वक्त सतर्क रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ये इलाके कई सालों तक शांत रहे लेकिन आतंकी अब इन्हें चुन रहे हैं तो सिक्यॉरिटी फोर्स को एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) का पूरा पालन करना होगा। शांत माने जा रहे इलाके में भी रिस्क नहीं लिया जा सकता और हर वक्त अलर्ट रहना होगा।

आतंकी जिस तरह वारदात कर भागने में सफल हो रहे हैं, उससे ह्यूमन इंटेलिजेंस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। विदेशी आतंकी इलाके में हैं और वारदात कर रहे हैं लेकिन उनकी जानकारी क्यों नहीं मिल पा रही है? लेफ्टिनेंट जनरल कुलकर्णी कहते हैं कि मैंने खुद डोडा एरिया में कमांड किया है। किसी भी ऑपरेशन के लिए लोकल सोर्स बेहद अहम होते हैं। लोकल ही हमारे आंख-कान होते हैं। वे बताते हैं कि कहीं कोई संदिग्ध व्यक्ति दिख रहा है या कोई संदिग्ध हरकत दिख रही है।

यह जानकारी भी लोकल से ही मिलती रहती थी कि बाहर से कब कहां कोई आया है। वह कहते हैं कि ह्यूमन इंटेलिजेंस पर ध्यान देने की जरूरत है। मेजर जनरल मोर भी सवाल उठाते हैं कि हम्यूमन इंटेलिजेंस बेस कैसे खत्म हो गया जबकि इतने सद्भावना के कार्यक्रम चलते हैं। वह कहते हैं कि ह्यूमन इंटेलिजेंस के लिए लगातार प्रयास करना होता है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर पुलिस से समन्वय से क्यों जानकारी नहीं मिल पा रही है।

चार साल पहले जब चीन के साथ तनाव शुरू हुआ तो इस इलाके से सैनिकों को वहां भेजा गया। भारतीय सेना की आरआर फोर्स- रोमियो, डेल्टा, यूनिफॉर्म फोर्स के पास यहां अलग-अलग इलाके का जिम्मा था। लेकिन करीब चार साल पहले जब ईस्टर्न लद्दाख में चीन के साथ एलएसी पर तनाव बढ़ा और स्थिति हिंसक झड़प तक पहुंच गई तब यहां से यूनिफॉर्म फोर्स को हटाकर एलएसी पर भेज दिया गया।

यहां से तीन ब्रिगेड जितने सैनिकों को कम किया गया। उनकी संख्या कम होने की वजह से बाकी फोर्स के पास उन इलाकों का जिम्मा भी आ गया जहां यूनिफॉर्म फोर्स तैनात थी। जानकारों के मुताबिक इसका फायदा भी आतंकियों ने उठाया और खुद को फिर से खड़ा करने के लिए काम किया।

पिछले कुछ समय में भारतीय सेना ने इन इलाकों में गैप भरने के लिए ज्यादा सैनिकों की तैनाती की है लेकिन सूत्रों के मुताबिक अब भी वह पुराने नंबर को मैच नहीं करते, यानी उतनी फोर्स नहीं है जितनी चार साल पहले थी। मेजर जनरल यश मोर (रिटायर्ड) कहते हैं कि जो आरआर फॉर्मेशन को चीन फ्रंट पर भेजा गया था उसे वापस लाया जाना चाहिए।

लेफ्टिनेंट जनरल कुलकर्णी (रिटायर्ड) कहते हैं कि फौज ने 22-23 साल पहले वह इलाका आंतकियों से मुक्त कर सिविल एडमिनिस्ट्रेशन को दे दिया तो उनकी जिम्मेदारी बनती थी कि वे उस इलाके को शांत रखें, इंटेलिजेंस इक्ट्ठा करें और आतंकियों को फिर पनपने ना दें।

वह कहते हैं कि फौज थ्रेट परसेप्शन के हिसाब से तैनाती करती है और रीडिप्लॉयमेंट करती है। उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय सीआरपीएफ, बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी को बढ़ा रहा है और इंटरनल सिक्योरिटी उनका काम है, फौज का काम एक्सटर्नल सिक्योरिटी है।

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